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मध्यप्रदेश विवाद: विवाद का नुक़सान सिंधिया को होगा या कमलनाथ को?
"आपकी मांग मैंने चुनाव के पहले भी सुनी थी. मैंने आपकी आवाज़ उठाई थी. और यह विश्वास मैं आपको दिलाना चाहता हूं कि आपकी मांग, जो हमारी सरकार के मैनिफेस्टो में अंकित है, वह मैनिफेस्टो हमारे लिए हमारा ग्रंथ बनता है. सब्र रखना. और अगर उस मैनिफेस्टो का एक-एक अंक पूरा न हुआ, तो आपके साथ सड़क पर, अकेले मत समझना, आपके सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा." कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ये बातें 13 फरवरी को टीकमगढ़ जिले के कुड़ीला गांव में कहीं. संत रविदास जयंती के मौके पर जब सिंधिया यह बोल रहे थे, तब सभा में मौजूद गेस्ट टीचर ने खूब जोश में तालियां बजाईं. मध्य प्रदेश में गेस्ट टीचर को अतिथि विद्वान कहा जाता है.
कांग्रेस का वचनपत्र हमारे लिए किसी ग्रंथ से कम नही, एक-एक वचन पूरा करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। यदि कहीं कोई समस्या आयी तो आपकी लड़ाई मैं लडूंगा, आपकी ढाल भी और आपकी तलवार भी मैं बनूँगा। pic.twitter.com/MXwnDmzncd
— Jyotiraditya M. Scindia (@JM_Scindia) February 13, 2020
अतिथि विद्वान यानी मध्य प्रदेश के कॉलेजों में संविदा पर पढ़ाने वाले अध्यापक. ये अध्यापक खुद को नियमित करने की मांग लेकर राजधानी भोपाल समेत प्रदेशभर में सड़कों पर हैं. इससे पहले कि सिंधिया के बयान से अतिथि विद्वानों का कुछ भला होता, सियासत ने मजमा लूट लिया. 15 फरवरी को जब मुख्यमंत्री कमलनाथ से सिंधिया के बयान पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने दो टूक कहा, "तो उतर जाएं". इसी के साथ बहस अतिथि विद्वानों से हटकर मध्य प्रदेश की सियासी खींचतान पर चली गई.
मध्यप्रदेश के अतिथि विद्वानों की क्या मांगें हैं?
मध्य प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत बीबीसी को बताते हैं कि शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए मध्य प्रदेश की पिछली सरकारों ने अतिथि शिक्षक और अतिथि विद्वानों की नियुक्ति की थी. अतिथि शिक्षक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाते हैं, जबकि अतिथि विद्वान कॉलेजों में पोस्ट ग्रैजुएशन तक के छात्रों को पढ़ाते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में अतिथि शिक्षकों और विद्वानों को नियमित करने का वादा किया था. ऐसे में सूबे के करीब 6,000 अतिथि विद्वान नियमित होने के इंतज़ार में हैं. उनके हिसाब से सरकार देरी कर रही है, इसलिए वे पिछले 68 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं.
अतिथि विद्वानों को नियमित करने में देरी क्यों?
इस सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय यादव बीबीसी को बताते हैं, "अभी राज्य की आर्थिक स्थिति इस बात की इजाज़त नहीं दे रही है कि हम सभी अतिथि विद्वानों को एक साथ नियमित कर दें. पिछली बीजेपी सरकार राज्य पर 2 लाख करोड़ रुपए का कर्ज छोड़कर गई है. राज्य में करीब 5,000 अतिथि विद्वान नियमित होने के इंतज़ार में हैं, लेकिन अभी राज्य के पास बजट नहीं है. बीच में बीजेपी वालों ने यह अफवाह भी फैला दी कि हम अतिथि विद्वानों को निकालने जा रहे हैं. ऐसा नहीं है."
यह सरकार का पक्ष है, लेकिन ब्रजेश राजपूत के मुताबिक हालात इससे कहीं जटिल है. ब्रजेश कहते हैं, "सरकार की प्रक्रिया धीमी है. जब सरकार अतिथि विद्वानों को नियमित करेगी, तो उसमें आरक्षण और पात्रता जैसे कई मसले पेश आएंगे. कई अतिथि विद्वान उम्र निकलने और पीएचडी न होने की वजह से अपात्र हैं, जिन्हें असिस्टेंट प्रफेसर नहीं बनाया जा सकता. दूसरे राज्यों की सरकारें ऐसी स्थिति में बीच-बीच में कुछ सीटें खाली करके भर्ती करती है, लेकिन मध्य प्रदेश के उच्चशिक्षा मंत्री जीतू पटवारी इस झटके में समाधान चाहते हैं. वहीं सरकार के एक और मंत्री गोविंद सिंह कह रहे हैं कि ये शिक्षक अपात्र हैं, जिन्हें काम चलाने के लिए रख लिया गया था."
कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव के मुताबिक सरकार अतिथि विद्वानों से सीएससी टेस्ट में बैठने को कह रही है. मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी के लिए पीएससी एग्ज़ाम देना होता है. यादव के मुताबिक सरकार एग्ज़ाम में बैठने वाले अतिथि विद्वानों को बोनस अंक भी देगी, लेकिन अतिथि विद्वान बिना किसी परीक्षा के खुद को नियमित करने की मांग कर रहे हैं. वहीं मंत्री गोविंद सिंह का कहना है, "धन की कमी से कुछ वादे पूरे नहीं हो पाए हैं. सरकार ने पांच साल में मैनिफेस्टो के वादे पूरे करने के लिए कहा है, एक साल में नहीं."
तो इसमें सियासत कहां से घुसी?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस पर निगाह रखने वाले पत्रकार वीरेंद्र राजपूत बताते हैं, "प्रदेश अध्यक्ष और आगामी राज्यसभा चुनाव को लेकर सिंधिया अतिथि विद्वानों के सहारे पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाना चाहते हैं. विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री न बनाए जाने और लोकसभा चुनाव हारने के बाद सिंधिया को लगता है कि उनके हाथ में ताकत नहीं है. हालांकि, राज्यभर में उनकी सभाओं में खूब युवा उमड़ते हैं. शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह को लगता है कि सिंधिया के मज़बूत होने से एक समानांतर सरकार खड़ी हो जाएगी. इसीलिए दबाव की यह राजनीति अब खुले तौर पर दिख रही है."
दो राज्यसभा सीटों का गणित
मध्य प्रदेश में तीन राज्यसभा सीटों के लिए संभवतः अप्रैल 2020 में चुनाव होगा. इनमें से दो सीटों पर कांग्रेस जीत सकती है. इन दो में से एक सीट से खुद दिग्विजय सिंह रिटायर हो रहे हैं. सिंधिया की नज़र इन्हीं दो में से एक सीट पर है. ब्रजेश राजपूत बताते हैं, "14 फरवरी को कमलनाथ और सोनिया गांधी की बैठक के बाद मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और पीसी वर्मा ने एक सीट से प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्यसभा भेजने की वकालत की है." ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इन दो सीटों से किसे राज्यसभा भेजती है.
प्रदेश अध्यक्ष की पॉलिटिक्स
अभी मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ ही प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. वीरेंद्र राजपूत बताते हैं, "कमलनाथ का ध्यान आदिवासियों पर ज़्यादा है, क्योंकि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी कोटे की 47 में से 31 विधानसभा सीटें जीती थीं. कमलनाथ आदिवासी समुदाय के किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, ताकि आदिवासियों में अच्छा मेसेज जाए. इस रेस में बाला बच्चन, उमंग सिंघार और ओमकार सिंह मरकम का नाम चल रहा है." वैसे कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव का कहना है कि राज्यसभा सीट और प्रदेश अध्यक्ष पद का मसला एक साथ ही सुलझेगा और फैसला कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा ही लिया जाएगा.
कमलनाथ और सोनिया गांधी की मुलाकात
14 फरवरी की शाम कमलनाथ ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कमलनाथ ने राज्यसभा चुनाव, प्रदेश अध्यक्ष और सिंधिया के बगावती तेवरों के बारे में बात की.
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव का कहना है कि यह एक सामान्य और रूटीन मुलाकात थी. अजय कहते हैं, "सोनिया गांधी नियमित तौर पर मैनिफेस्टो के वादों का अपडेट लेती रहती हैं. कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो का 70 फीसदी काम पूरा कर लिया है. तो यह एक रूटीन मीटिंग थी."
रोचक बात यह है कि कमलनाथ ने सोनिया के साथ इस मीटिंग के बाद ही सिंधिया के बयान को सिरे से खारिज कर दिया. फिर 16 फरवरी को मंत्री गोविंद सिंह ने डैमेज कंट्रोल करते हुए कहा, "ज्योतिरादित्य पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. उन्हें सार्वजनिक रूप से ऐसे बयान नहीं देने चाहिए. शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी को जो काम दिया है, वह हमारी पार्टी के नेताओं द्वारा नहीं किया जाना चाहिए."
कमलनाथ और सिंधिया के पिछले झगड़े
मध्य प्रदेश कांग्रेस के इन शीर्ष नेताओं के बीच संघर्ष नया नहीं है. 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जीतने के बाद सिंधिया और कमलनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार थे, लेकिन बाज़ी हाथ लगी कमलनाथ के. तब इसे राहुल खेमे पर सोनिया खेमे की तरजीह के तौर पर देखा गया.2018 विधानसभा चुनाव जीतकर जब सिंधिया भोपाल एयरपोर्ट से मध्य प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचे थे, तह वह अपने समर्थकों के सामने गाड़ी पर खड़े होकर अभिवादन स्वीकार करते रहे. तब उनका अंदाज़ कुछ वैसा था, मानो वह कह रहे हों कि कमलनाथ उनके चलते ही मुख्यमंत्री बने हैं. फिर 2019 लोकसभा चुनाव में सिंधिया को मध्य प्रदेश के बजाय पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाया गया. इस फैसले को सिंधिया को मध्य प्रदेश से दूर रखने के तौर पर देखा गया और इसके पीछे कमलनाथ और दिग्विजय खेमे का हाथ माना गया.
सिंधिया को इसका काफी नुकसान भी हुआ. वह गुना से अपना लोकसभा चुनाव तो हारे ही, साथ ही, पश्चिमी यूपी में उनके प्रभार में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई. दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हारने पर सिंधिया ने अपनी नाराज़गी खुलकर ज़ाहिर की थी. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों पर सवाल पूछे जाने पर सिंधिया ने कहा, "दिल्ली के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए बहुत ही निराशाजनक आए हैं. नई सोच, नई विचारधारा और नई कार्यप्रणाली की कांग्रेस को सख्त ज़रूरत है."
वहीं 'सड़कों पर उतरने' वाले बयान के बाद कमलनाथ के आवास पर समन्वय बैठक से भी सिंधिया बीच में ही बाहर निकल आए थे. देखना यह है कि इन हालात में अतिथि विद्वानों का कैसे और क्या भला होता है!