
- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्यप्रदेश
- /
- भोपाल
- /
- ज्योतिरादित्य...
ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने की भविष्यवाणी... बड़ा सवाल- क्या मौकापरस्त सिंधिया को स्वीकार कर पायेगा बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व?

विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन
मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर गहमागहमी का दौर शुरू हो गया है। इस बार गहमागहमी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर है। दरअसल पिछले दिनों ग्वालियर में एक कार्यक्रम के दौरान जैन मुनि विजयेश सागर महाराज ने भविष्यवाणी की है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे। बाबा के बयान के बाद सियासी हलचलें पैदा कर दी हैं। हर तरफ कयास लगाए जाने लगे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इस भविष्यवाणी को कोई तरजीह नहीं दी है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस पूरे मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन सियासी विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर की गई भविष्यवाणी पर सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया हो, लेकिन वे भी अब इस बात को लेकर चिंतित नजर आने लगे हैं। अब सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस से गददारी करने वाले मौकापरस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व स्वीकार कर पायेगा? क्या सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान जैसे संवेदनशील, मिलनसार और एक जमीनी नेता की तरह बन सकते हैं, जिसे प्रदेश की जनता अपना नेता मान सके? कहना मुश्किल है क्योंकि हम जानते हैं कि सिंधिया जमीन से न जुड़ने वाले नेता हैं। उनकी छवि एक घमंडी, गुस्सैल और अड़ीबाज नेता की तरह है। उनमें सबको साथ लेकर चलने की काबिलियत बिल्कुल नहीं है। निश्चित है कि यदि को अगले चुनाव में सीएम प्रोजेक्ट किया जाता है तो नुकसान बीजेपी को होना है।
यह भी सच है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व और प्रदेश का नेतृत्व सिंधिया की फितरत को पहचानता है। सत्ता और सिंहासन के लिए सिंधिया किस हद तक गिर सकते हैं। यह सब जानते हैं। एक पद की खातिर सिंधिया ने मध्यप्रदेश में एक पूर्ण बहुमत से चुनी हुई कमलनाथ सरकार को गिरा दिया था। यह वह समय था जब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश के हित में और प्रदेश की जनता के हित में कई महत्वपूर्ण कार्य कर रहे थे। उनके कार्य शीर्ष पर ही चल रहे थे कि सिंधिया ने ऐसी बिसात बिछाई कि जनमत की कमलनाथ सरकार गिर गई और प्रदेश की जनता पर एक बार फिर मध्यावधि चुनावों का भार आया।
अब यदि ऐसे मौकापरस्त नेता के हाथ में प्रदेश की कमान आती है तो अंदेशा लगाया जा सकता है कि सिंधिया अपने हित के लिए किस हद तक गिर सकते हैं और प्रदेश की जनता के साथ कितना बड़ा अन्याय कर सकते हैं।
गुपचुप तरीके से पदाधिकारियों से कर रहे मुलाकात
दरअसल कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जबसे भाजपा का साथ थामा है, तभी से वे लगातार केंद्रीय नेतृत्व और संघ के पदाधिकारियों के पास मधुर रिश्ते कायम करने की जुगाड़ में लगे हुए हैं। प्रदेश के हर दौरे पर वो भोपाल स्थित समिधा कार्यालय पहुंचते हैं और समय मिलते ही गुपचुप तरीक से संघ मुख्यालय नागपुर में भी आमद देते हैं। हालांकि संघ सिंधिया को कितना पसंद करता है या नहीं यह बता पाना अभी तो मुश्किल है।
क्या काबिल मुख्यमंत्री साबित होंगे सिंधिया?
एक बड़ा सवाल हर बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर मन में उठता है वो है यदि भाजपा नेतृत्व सिंधिया को प्रदेश की कमान सौंपते है तो क्या सिंधिया एक काबिल मुख्यमंत्री साबित हो पाएंगे। उनकी छवि एक घमंडी और गुस्सैल नेता के रूप में दिखाई पड़ती है। ऐसे में प्रदेश की जनता ने जिस तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रेम और सहयोग दिया है जनता के उस प्रेम के भाव को हासिल कर पाना उतना ही मुश्किल है। क्योंकि सिंधिया यदि मुख्यमंत्री बने तो प्रदेश में भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती, लूटपाट, छेड़छाड़ के मामलों में निश्चित ही बढ़ोत्तरी होना स्वभाविक है।
चोर-चोर मौसेरे भाई
सिंधिया हो या उनके समर्थित नेता जो शिवराज सरकार में प्रमुख विभागों के मंत्री बने बैठे हुए हैं। अगर सिंधिया को कमान प्रदेश की सौंप दी गई तो सिंधिया समर्थित नेता महेंद्र सिंह सिसोदिया, गोविंद राजपूत, डॉ. प्रभुराम चौधरी जैसे नेता खुलकर प्रदेश में भ्रष्टाचार फैलाने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे। ऐसे में चोर-चोर मौसेरे भाई वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठेगी। इसलिए प्रदेश की जनता का एकमत यही होना चाहिए प्रदेश की कमान किसी भी हालत में ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथ में न सौंपी जाए। नहीं तो शांति का टापू कहे जाने वाले इस मध्यप्रदेश में अशांति कब अपना स्थान बना लेगी मालूम भी नहीं चलेगा।
भ्रष्टाचार और अड़ीबाजी करते हैं सिंधिया
मध्यप्रदेश की जनता इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का स्वभाव भ्रष्टाचारी, स्वार्थी और अड़ीबाजी नेता के रूप में है। उन्होंने ग्वालियर में कई एकड़ जमीन सिंधिया ट्रस्ट के नाम से कब्जा कर रखी हुई है। वर्षों पुरानी मंदिर की जमीन को ट्रस्ट का बताकर प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के साथ मिलकर उसे सिंधिया ट्रस्ट के नाम पर करवाने का पाप किया है। यही नहीं ग्वालियर सहित प्रदेश के प्रमुख स्थानों पर उन्होंने जमीनों पर कब्जा कर रखा है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के पतन के बाद बनी भाजपा सरकार के अंदरूनी समीकरण बदलने लगे हैं। इससे प्रदेश के कई कद्दावर नेताओं में बेचैनी है। इसकी वजह पार्टी में उनके कद का घटना और नए नेताओं का उभरना शामिल है। इन सबके बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मजबूत नेता बनकर उभरे हैं।