भोपाल

बिसाहू की माफी के बाद का सवाल?

अरुण दीक्षित
29 Nov 2021 12:21 PM GMT
बिसाहू की माफी के बाद का सवाल?
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अरुण दीक्षित

भोपाल।आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा और उनके जननायक टंट्या भील सहित तमाम आदिवासी हस्तियों को सम्मान दिलाने की मुहिम चला रही भाजपा की सरकार का मध्यप्रदेश में नेतृत्व कर रहे शिवराज सिंह ने अपनी कैबिनेट के वरिष्ठ आदिवासी सदस्य बिसाहूलाल सिंह से सार्वजनिक माफी मंगवा कर राजपूतों का गुस्सा ठंडा कर दिया है।बिसाहू की माफी के साथ ही शिवराज सिंह ने यह भी कहा है कि उन्होंने बिसाहू को सख्त चेतावनी दी है।मां बहन बेटी देवी तुल्य हैं।हम इनका सम्मान करते हैं-यह भी शिवराज सिंह ने कहा है।यह अलग बात है कि महिलाओं के प्रति अपराध में मध्यप्रदेश पहली पंक्ति में खड़ा है!

पहले बात बिसाहू के गुनाह की!खांटी आदिवासी नेता बिसाहू लाल सिंह ने गत 25 नवम्बर को अनूपपुर जिले के फुनगा गांव में एक बयान दिया था।उनके इस बयान के बाद प्रदेश के सभी राजपूत नेता और उनका संगठन करणी सेना उनसे बहुत नाराज हो गए थे।प्रदेश भर में बिसाहू के खिलाफ नाराजगी जताई जा रही थी।भोपाल में तो भाजपा कार्यालय के भीतर करणी सेना ने उनकी गाड़ी घेर ली थी।उनके सरकारी निवास पर भी प्रदर्शन हुआ था।

दरअसल बिसाहू लाल ने एक सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित नारी रत्न सम्मान में अपने समाज की महिलाओं का जिक्र करते हुए एक जाति विशेष का उल्लेख करते हुए कहा था कि वे लोग अपनी महिलाओं को घरों में बंद रखते हैं और हमारी महिलाओं से सब काम कराते हैं।बराबरी तो तब होगी जब उनकी महिलाओं को घर से निकाल कर उनसे काम करवाया जाए।

उनके इस बयान के बाद ही हंगामा हो गया था।आदिवासी नेता ने जिस तरह की तुलना करके अपनी बात कही, उसे किसी भी दृष्टि से उचित नही माना जा सकता।लेकिन उनके मुंह से जो निकला है वह मध्यप्रदेश क्या पूरे देश का एक कडबा सच है।

पहले बात मध्यप्रदेश की!यह सब जानते हैं कि पूरे प्रदेश में बेगार और मजदूरी के लिए आदिवासी समाज की ओर सबसे पहले देखा जाता है।हर जमींदार,जागीरदार, ठिकानेदार ,व्यापारी और बड़े किसान आदिवासियों के भरोसे ही अपना कारोबार चलाते हैं।एक पहलू यह भी है कि आदिवासी हमेशा अपने परिवार को लेकर ही निकलता है।राज्य में काम करना हो या राज्य से बाहर जाना हो ,आदिवासी पत्नी बच्चों के साथ ही जाता है।गांवों में भी वे यदि किसी दूसरे के यहां काम करते हैं तो परिवार साथ होता है।महिलाएं अपने पतियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करती हैं।

खुद मुख्यमंत्री भी यह जानते हैं कि हर बड़े किसान की खेती आदिवासी हरवाहे के भरोसे ही चलती है।भोपाल के आसपास के इलाकों में बड़े नेताओं,अफसरों और किसानों के फार्महाउस इन अदिवासियों के भरोसे ही चलते हैं।शहरों में घरों में भी आदिवासी लड़कियां ही काम करती मिलेंगी।यह स्थिति कमोबेश हर बड़े शहर में देखने को मिल जाएगी।

शिवराज सिंह 2005 से राज्य के मुखिया हैं।कमलनाथ के 15 महीने छोड़ दें तो राज्य उनकी अगुवाई में ही चल रहा है।प्रदेश में आदिवासियों की क्या हालत है,यह उनसे बेहतर कौन जान सकता है।

यह भी गज्जब संयोग है कि मध्यप्रदेश में पिछली 15 नवम्बर से आदिवासियों को सम्मान देने की मुहिम चलाई जा रही है।खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुहिम की शुरुआत की थी।उन्होंने आदिवासियों में भगवान माने जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती हर साल मनाने का ऐलान किया था।साथ ही आदिवासी रानी कमलापति के नाम पर भोपाल के एक रेलवे स्टेशन का नामकरण किया था।शिवराज ने प्रदेश के आदिवासी हीरो टंट्या भील के नाम पर एक रेलवे स्टेशन और इंदौर के एक चौक का नामकरण किया है।अन्य आदिवासी हस्तियों के नाम पर भी संस्थानों के नामकरण किये जा रहे हैं।मेडिकल कालेज भी बनाये जा रहे हैं।

एक तरफ वहुप्रचारित सम्मान और दूसरी तरफ एक आदिवासी मंत्री के एक बयान पर उससे हाथ जोड़ कर सार्वजनिक माफी मंगवाना कहाँ तक उचित है?

यह ठीक बात है कि मंत्री ने एक जाति विशेष का उल्लेख करके किसी भी दृष्टि से सही नही किया।उनके इस बयान से उस समाज का नाराज होना स्वाभाविक है।क्योंकि मध्यप्रदेश में कोई एक जाति या वर्ग ही नही कमोवेश हर संम्पन वर्ग आदिवासियों का शोषक रहा है और है।मंत्री ने जो कुछ अपने समाज की महिलाओं के बारे में कहा है वह अक्षरशः सच है।उससे बड़ा सच यह है कि आजादी के बाद से आज तक कोई भी आदिवासी नेता अपने समाज के उत्थान के लिए आगे नही आया है।हर नेता ने अपना स्वार्थ देखा।यही हाल भाजपा और कांग्रेस या आदिवासियों के नाम पर बने दलों का रहा है।

आदिवासियों की बात सब करते हैं।लेकिन आज तक एक भी आदिवासी नेता मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाया है।कांग्रेस ने उपमुख्यमंत्री बना कर झुनझुना थमा दिया था। भाजपा ने तो वह भी नही दिया है।

जहाँ तक बिसाहू लाल सिंह का सवाल है वे उम्र के चौथे चरण में चल रहे हैं।पूरी जिंदगी कांग्रेस में रहे थे।दिग्विजय सरकार में मंत्री भी रहे थे।उसी दौरान उन्होंने संपन्नता को करीब से देखा।कोठी,बंगला, कार और होटल के मालिक भी हैं।अब तीर कमान की जगह बंदूक और रिवॉल्वर रखते हैं।कमलनाथ ने उन्हें अपनी कैबिनेट में नही लिया था।इसलिये कुर्सी के चक्कर में भाजपा में आये।शिवराज को मुख्यमंत्री बनवाया और खुद मंत्री बने।खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति जैसा मलाईदार विभाग भी मिला।

यह कुर्सी का ही खेल है कि उन्होंने अपने समाज की महिलाओं के बारे में सच तो बोला,लेकिन उस पर कायम नही रह पाए।आदिवासी महिलाओं की हालत के बारे में खुद मुख्यमंत्री और बिसाहू लाल बहुत अच्छे से जानते हैं।लेकिन दूसरे समाज से उनकी तुलना ने इस सच को दबा दिया!समाज ने दबाव बनाया तो मुख्यमंत्री झुक गए।उन्होंने बिसाहू लाल सिंह को घुटनों पर लाकर माफी मंगवा दी।मजे की बात यह है कि बिसाहू के बयान पर सबसे ज्यादा नाराज कांग्रेस के वे नेता थे जो कल तक उनके साथ गलबहियां करते थे।

पर कडबा सच यह है कि आदिवासी महिलाओं की स्थिति उससे भी ज्यादा खराब है जो उनके अपने मंत्री ने बताई है।बस मंत्री तुलना गलत कर गए।दरअसल कोई एक नही हर ताकतवर समाज आदिवासियों का शोषण कर रहा है।

शिवराज सिंह ने बिसाहू से माफी मंगवाकर एक समाज का गुस्सा तो शांत कर दिया है लेकिन क्या वे बिसाहू के बोले सच पर भी गौर करेंगे!यह सवाल हवा में तैर रहा है।

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

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