ग्वालियर

इंसानियत के सिपाही, वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक की बिटिया शची ने प्लाज़्मा डोनेट किया, दो कोरोना मरीज़ों के काम आएगा

Shiv Kumar Mishra
25 April 2021 3:07 AM GMT
इंसानियत के सिपाही, वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक की बिटिया शची ने प्लाज़्मा डोनेट किया, दो कोरोना मरीज़ों के काम आएगा
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आप सबसे अनुरोध है कि जो लोग कोरोना संक्रमण से मुक्त हुए हैं वे प्लाज़्मा देने आगे आएं।

वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक ने कहा कि हमारी बिटिया शची पाठक ने आज कोरोना मरीज़ों के लिये जयारोग्य अस्पताल,ग्वालियर के ब्लड बैंक में प्लाज़्मा डोनेट किया। शची का दो यूनिट प्लाज़्मा ग्वालियर में दो दो अलग अलग मरीज़ों को दिया जा रहा है।शची कुछ दिन पहले कोरोना संक्रमण से मुक्त हुई है।

आप सबसे अनुरोध है कि जो लोग कोरोना संक्रमण से मुक्त हुए हैं वे प्लाज़्मा देने आगे आएं।

■ प्लाज़्मा के बारे में ज़रूरी बातें..

कोरोना संक्रमण से स्वस्थ हुए व्यक्ति से प्लाज़्मा लेने से पहले कुछ ज़रूरी बातें जान लेना चाहिए।

संक्रमण से मुक्त हुए व्यक्ति का दस,पंद्रह दिन बाद एंटीबॉडी टेस्ट

SARS-COV -2(covid- 19) IgG ANTY BODY करवाना होगा। इस टेस्ट से ही एंटीबॉडी का होना निर्धारित होता है।

कोविड से ठीक हुए व्यक्ति में एंटीबॉडी डेवलप होने में 10 से 15 दिन लगते हैं। जिनके शरीर में ठीक होने के दो हफ्ते के अंदर एंटीबॉडी बन जाती है उनकी इम्युनिटी ज्यादा बेहतर मानी जाती है। ऐसे लोग ज्यादा समय तक प्लाज़्मा डोनेट कर सकते हैं।

यह ज़रूरी नहीं कि कोविड से नेगेटिव हुए हर व्यक्ति में एंटीबॉडी बन ही जाए। आमतौर पर 100 में से 70 , 80 लोगों में ही एंटीबॉडी बनती हैं।

प्लाज़्मा देने वाले की बाक़ी मेडिकल हिस्ट्री की पड़ताल भी होती है। जैसे उसका पूर्व में कैंसर जैसी किसी बीमारी का इलाज़ तो नहीं हुआ। महिला है तो वह गर्भवती तो नहीं है।

दानदाता की आयु 18 से 60 वर्ष के बीच होना चाहिए। वजन 50किलो से अधिक और हीमोग्लोबिन 12 से अधिक होना चाहिए।

कमज़ोरी या अन्य किसी कारण से बहुत से लोग प्लाज़्मा देने को तैयार नहीं होते।

यद्यपि प्लाज़्मा देने से शरीर को कोई नुक़सान या असुविधा नहीं होती। कोई भी स्वस्थ व्यक्ति एक बार प्लाज़्मा देने का बाद 15 दिन बाद दुबारा प्लाज़्मा दे सकता है।

● अन्तिम बात : किसी कोविड मरीज़ को प्लाज्मा चढ़ाया जाना उसका कोई अंतिम उपाय नहीं है।

विशेषज्ञों के मुताबिक प्लाज्मा सहायक हो सकता है शर्तिया इलाज़ नहीं।

ICMR ने अपने अध्ययन में इसे कॉरोना के इलाज़ के लिए ज्यादा कारगार नहीं माना है। फिर भी अगर इससे किसी को लाभ होता है तो कोई गुरेज नहीं।

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