महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के टीचर ने जीता 10 लाख अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार, बोले- आधा इनके साथ करूंगा शेयर

Arun Mishra
4 Dec 2020 4:03 AM GMT
महाराष्ट्र के टीचर ने जीता 10 लाख अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार, बोले- आधा इनके साथ करूंगा शेयर
x
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव के रंजीत सिंह दिसाले (32) अंतिम दौर में पहुंचे दस प्रतिभागियों में विजेता बनकर उभरे हैं.

लंदन/महाराष्ट्र : भारत के एक प्राथमिक स्कूल शिक्षक को बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने एवं देश में त्वरित कार्रवाई (क्यूआर) कोड वाली पाठ्यपुस्तक क्रांति में महती प्रयास के लिए 10 लाख डॉलर के वार्षिक ग्लोबल टीचर प्राइज, 2020 का विजेता घोषित किया गया है. महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव के रंजीत सिंह दिसाले (32) अंतिम दौर में पहुंचे दस प्रतिभागियों में विजेता बनकर उभरे हैं. वारके फाउंडेशन ने असाधारण शिक्षक को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पुरस्कृत करने उद्देश्य से 2014 में यह पुरस्कार शुरू किया. दिसाले ने घोषणा की कि वह अपनी पुरस्कार राशि का आधा हिस्सा अपने साथी प्रतिभागियों को उनके 'अतुल्य कार्य' में सहयोग के लिए देंगे.

उन्होंने कहा, '' कोविड-19 महामारी ने शिक्षा और संबंधित समुदायों को कई तरह से मुश्किल स्थिति में ला दिया. लेकिन इस मुश्किल घड़ी में शिक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए यथाश्रेष्ठ देने का प्रयास कर रहे हैं कि हर विद्यार्थी को अच्छी शिक्षा सुलभ हो.''

उन्होंने कहा, '' शिक्षक असल में बदलाव लाने वाले लोग होते है जो चॉक और चुनौतियों को मिलाकर अपने विद्यार्थियों के जीवन को बदल रहे हैं. वे हमेशा देने और साझा करने में विश्वास करते हैं. और इसलिए मैं यह घोषणा करते हुए खुश हूं कि मैं पुरस्कार राशि का आधा हिस्सा अपने साथी प्रतिभागियों में उनके अतुल्य कार्य के लिए समान रूप से बांटूंगा. मेरा मानना है कि साथ मिलकर हम दुनिया को बदल सकते हैं क्योंकि साझा करने की चीज बढ़ रही है.''

पुरस्कार के संस्थापक और परमार्थवादी सन्नी वारके ने कहा, '' पुरस्कार राशि साझा करके आप दुनिया को देने का महत्व पढ़ाते हैं. '' इस पहल के साझेदार यूनेस्को में सहायक शिक्षा निदेशक स्टेफानिया गियानिनि ने कहा, '' रंजीत सिंह जैसे शिक्षक जलवायु परिवर्तन रोकेंगे तथा और शांतिपूर्ण एवं न्यायपूर्ण समाज बनायेंगे. रंजीतसिंह जैसे शिक्षक असमानताएं दूर करेंगे और आर्थिक वृद्धि की ओर चीजें ले जायेंगे.''

दरअसल जब दिसाले 2009 में सोलापुर के पारितवादी के जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय पहुंचे थे तब वहां स्कूल भवन जर्जर दशा में था तथा ऐसा लग रहा था कि वह मवेशियों की रहने की जगह और स्टोररूम के बीच का स्थान है. उन्होंने चीजें बदलने का जिम्मा उठाया और यह सुनिश्चित किया कि विद्यार्थियों के लिए स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तक उपलब्ध हो.

Next Story