महाराष्ट्र

धर्म संसद में धर्म गुरुओं के बीच हुई झड़प, जानें पूरा मामला

Sakshi
1 Jun 2022 6:53 AM GMT
धर्म संसद में धर्म गुरुओं के बीच हुई झड़प, जानें पूरा मामला
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हनुमान जन्मस्थान को लेकर शास्‍त्रार्थ के दौरान संतों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई। एक संत की टिप्पणी के बाद गोविंदानंद सरस्वती को माइक से मारने की कोशिश की गई।

हनुमान जन्मस्थान को लेकर शास्‍त्रार्थ के दौरान संतों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई। एक संत की टिप्पणी के बाद गोविंदानंद सरस्वती को माइक से मारने की कोशिश की गई। हालांकि, सुरक्षाबलों ने स्थिति को नियंत्रण में लिया। बहरहाल, तीन घंटे तक चला यह शास्त्रार्थ बेनतीजा रहा।

मंगलवार को नासिक जिले के त्रयंबकेश्वर में शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया था। इसका मकसद ये पता लगाना था कि हनुमान जी का जन्मस्थल कहां है। इस धर्म संसद में शामिल होने के लिए नासिक, त्रयम्बकेश्वर, कर्नाटक और शोलापुर के करीब 20-25 साधु-संत त्र्यंबकेश्वर पहुंचे थे। ये सारा हंगामा तब हुआ जब नाशिक के संतों ने पूछा कि गोविंदानंद सरस्वती किसके शिष्य हैं? तब उन्होंने जगतगुरु शंकराचार्य का नाम लिया, जिस पर सुधीरदास पुजारी नाम के संत ने कहा कि वो तो कांग्रेस को समर्थन करते हैं।

सुधीरदास की टिप्पणी पर पर गोविंदानंद सरस्वती ने उंगली दिखाते हुए कहा कि आप उन्हें कांग्रेसी बोल रहे हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई? माफी मांगिए।जिसके बाद सुधीरदास ने गोविंदानंद को मारने के लिए माइक उठा लिया। मौके पर मौजूद पुलिस ने गोविंदानंद सरस्वती को एक कमरे में ले जाकर बैठा दिया और बाकी सभी से भी हॉल खाली कराया।

बताया जा रहा है कि शास्‍त्रार्थ शुरू होने के पहले ही आसन और बैठने पर विवाद की स्थिति निर्मित हुई थी। दरअसल नाशिक और त्रयंबकेश्वर के धर्माचार्यों ने कर्नाटक से आए गोविंदानंद सरस्वती के सोफे पर बैठने की व्यवस्था और स्थानीय संतो को नीचे गद्दे पर बैठाने का विरोध किया। त्रयंबकेश्वर के अनिकेत शास्त्री का कहना था कि सब की व्यवस्था समान होनी चाहिए।

जबकि गोविंदनंद का कहना था, 'मैं एक घंटे से खड़ा था, तब तक कोई नही आया। मैं सोफे पर बैठा तब आकर हंगामा कर रहे हैं, मैं नीचे बैठने को तैयार हूं। उन्होंने आरोप लगाया कि इन लोगों के पास प्रमाण नहीं है तो आसन का बहाना बना रहे हैं। बाद में बहिष्कार की धमकी पर कर्नाटक के गोविंदानंद सरस्वती भी नीचे जमीन पर बैठने को तैयार हुए। जब सभी साधु संत नीचे बैठकर चर्चा के लिए तैयार हो गए तो चर्चा शुरू हुई। हालांकि, सभी संत ये जरूर कह रहे हैं हम चर्चा करने के लिए आए हैं लेकिन कोई एक-दूसरे की सुनने को तैयार नहीं था।

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