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28th July is Namvar ji's birthday : जब तक हिन्दी भाषा रहेगी नामवर जी उसकी स्मृतियों में बने रहेंगे

Shiv Kumar Mishra
28 July 2021 5:18 AM GMT
28th July is Namvar jis birthday : जब तक हिन्दी भाषा रहेगी नामवर जी उसकी स्मृतियों में बने रहेंगे
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28 जुलाई नामवर जी का जन्मदिन है

रंगनाथ सिंह की फेसबुक से साभार

आज (28 जुलाई) नामवर का जन्मदिन है। जीवन में बहुत कम मौकों पर मैं सही साबित हुआ हूँ। नामवर जी के बारे में मेरा एक अनुमान सही साबित हो रहा है जिसकी वजह से मैं कभी-कभी थोड़ा खुश हो लेता हूँ। काफी पहले एक नौजवान कवि से कहा था, नामवर जी को मरने दो उसके बाद देखना उनका कद और बढ़ेगा।

नामवर जी 2019 में मरे। पिछले दो सालों पर नजर डालने के बाद कह सकते हैं कि नामवर जी अभी कई सालों तक कुछ लोगों की छाती पर मूँग दलते रहेंगे। यह जुमला नामवर जी ने तब कहा जब उनकी उम्र 90 हो चुकी थी। देह कृशित, वाणी कम्पित और स्मृति जरा मद्धिम हो गयी थी। उन्होंने यह जुमला दो केंद्रीय मंत्रियों पर तंज करते हुए कहा था। अप्रतिम विद्वता के साथ यह जीवट और यह ठसक ही उन्हें नामवर बनाती थी। जब तक हिन्दी भाषा रहेगी नामवर जी उसकी स्मृतियों में बने रहेंगे। समयाभाव के कारण मैं चाहते हुए भी नामवर जी पर कुछ नया नहीं लिख पा रहा इसलिए 10 साल पहले लिखा एक किस्सा नीचे थोड़ा माँजकर पेश कर रहा हूँ। यह किस्सा 2011 में लिखा था और घटना उसके तीन-चार साल पहले की रही होगी।

पाकिस्तान के एक चर्चित विद्वान लेखक की नई-नई किताब आई थी. किताब का विषय हिन्दी-उर्दू भाषा था. किताब अंग्रेजी में थी. अंग्रेजी के एक विश्वस्तरीय प्रकाशक ने छापी थी. नई दिल्ली स्थित एक केन्द्रीय विश्विद्यालय ने उस किताब पर परिचर्चा रखी. किताब के लेखक पकिस्तान के नामी विद्वान थे. उस किताब पर नामवर जी बोलने आ रहे थे, इस कारण सभागार में हिन्दी जबान वालों की संख्या कहीं ज्यादा थी.

किताब पर बोलने के लिए मंच पर जो लोग भी बैठे थे उनमें एकमात्र नामवर सिंह ऐसे दिख रहे थे जिनके हिन्दी में बोलने की संभावना थी. मंच पर जो अंग्रेजीदाँ वक्ता मौजूद थे वो भी हल्के-फुल्के वाले अंग्रेजी-धकेल नहीं थे. मामला आक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज वाला था. माहौल कुछ ऐसा था कि हम जैसे कई लोगों के मन में यह सवाल बार-बार आ रहा था कि क्या नामवर जी अंग्रेजी में बोलेंगे!

कार्यक्रम शुरू हुआ. जैसी उम्मीद थी वक्ताओं ने अपनी-अपनी शैली की नफीस अंग्रेजी में बात रखनी शुरू की. न जाने क्या वजह है कि जहाँ भी नफीस-अंग्रेजी बरस रही हो वहाँ खांटी-हिन्दी वाले कार्यक्रम भर "सावधान" की मुद्रा में दिखाई देते हैं. वहाँ भी ऐसा ही माहौल था. 'अंग्रेजी-श्रोता' बेतकल्लुफी के साथ सुन रहे थे और 'हिन्दी-उर्दू-श्रोता' अति-सजगता के साथ.

गेंद घूम कर नामवर जी के पाले में पहुंची. नामवर जी ने बोलने से पहले एक बार अपने दायें देखा, फिर बायें देखा, फिर सभागार पर विहंगम दृष्टि डाली और बोले, "मुझे तो समझ में नही आया कि मुझे यहाँ कैसे बुला लिया गया ! फिर श्रोताओं कि तरफ मुखातिब होकर कहा इन लोगों ने सोचा होगा कि, "शेख की दावत में मय का क्या काम? मगर एहतियातन कुछ मांग ली जाए"

नामवर जी का आशय था कि, शराब (हिन्दी) को हराम मानने वालों की दावत में मय (नामवर जी) इसलिए मँगा लिए गए होंगे कि शायद कोई पीने वाला (हिन्दी श्रोता) भी आ जाएँ.

नामवर जी के इस औचक विस्फोट से मंच पर बैठे मुख्य-आयोजक क्षण-भर को थोड़े सकुचाए लेकिन तब तक हाल तालियों और कहकहों से गूंज चुका था. श्रोताओं के साथ ही आयोजक, किताब के लेखक भी दिल-खोल कर हंस रहे थे. नामवर जी मंद-मंद तिर्यक मुस्कान बिखर रहे थे.

मैंने नोटिस किया है कि जब हाल में उनके कहे पर तालियाँ बज रही हों तब नामवर जी मौन रह कर उनका पूरा रस लेते हैं और जब तक तालियाँ सम पर नहीं आ जातीं वो अगला वाक्य नहीं बोलते. उस दिन भी करीब मिनट-दो मिनट की जोरदार तालियों के सम पर आने के बाद नामवर जी ने दूसरा विस्फोट कर दिया. जो अपने प्रभाव में पहले विस्फोट से उलट था. पहले से हँसी फूटी थी तो अबकी हाल में सकपकाहट फैल गई. मंच पर विराजमान सज्जनों का चेहरा तो खासतौर पर देखने लायक था.

शेख और मय वाली शेरो-शायरी के बाद नामवर जी का पहला वाक्य था कि- "मैंने यह किताब नहीं पढ़ी है" किताब पर कार्यक्रम है और वक्ता ने पढ़ी ही नहीं है, यह सुनकर आयोजक,किताब के लेखक और श्रोताओं का असहज हो जाना स्वाभविक ही था. (इस बयान के बाद हिन्दी वालों में यह खुसपुसाहट होने लगी कि क्या आज नामवर जी इन लोगों को 'ध्वस्त' करने के इरादे से आए हैं क्या ??)

नामवर जी ने किताब ना पढ़ पाने के पीछे शायद किताब के देर से मिलने जैसी कोई वजह दी। उसके बाद उन्होंने कई मिनट लम्बे पॉज के बाद अपना वाक्य पूरा करते हुए कहा कि, कार्यक्रम में बोलने के लिए उन्होंने किताब का एक एक खास अध्याय पढ़ा है और वो उसी पर बोलेंगे.

नामवर जी उस एक अध्याय पर बोला, बढ़िया बोला. बीच-बीच में तालियाँ बजती रहीं। किताब के लेखक समेत तमाम लोग उनके वक्तव्य से काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे.

सभा-विसर्जन के बाद नामवर जी की खूब जय-जय हुई. 'हिन्दी वाले' 'नफीस-अंग्रेजी वालों' की सभा से गदगद भाव से बाहर निकले. ज्यादातर हिन्दी श्रोता इसी बात से गौरवान्वित थे कि नामवर जी ही हैं जो ऑक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज वालों के बीच भी महफिल पर छा सकते हैं.


Shiv Kumar Mishra

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