राष्ट्रीय

सहकारिता के 'शाह' हैं अमित शाह

Shiv Kumar Mishra
19 July 2021 8:39 AM GMT
सहकारिता के शाह हैं अमित शाह
x

आदर्श तिवारी

अभी कुछ दिनों पूर्वमंत्रिमंडल विस्तार से ठीक पहले केंद्र सरकार ने सहकार से समृद्धि के मूलमंत्र के साथ सहकारिता मंत्रालय का गठन किया है. जैसे ही इस मंत्रालय का नाम सामने आया हर कोई चौक गया, ठीक वैसे ही जब केंद्र सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय का गठन का किया था. नरेंद्र मोदी सरकार की यह विशेषता रही है कि वह अपने नवाचारों से सबको चकित करती रहती है. देश में सहकारी समितियों की स्थिति क्या है यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है.

सहीं मायने में कुछ पहलुओं को छोड़ दें तो सहकारिता का सहकार अब प्रभावहीन हो गया है, लोग इसे अविश्वसनीयता की दृष्टि से देखने लगे हैं. सहकारी बैंक कृषिविकासके मानचित्र से लुप्त सेहो गए हैं. कुलमिलाकरअवसरों की असीम सीमाओं के बावजूद सहकारी संस्थानों को लेकर आम जनता के मन में एक संशय की भावना खड़ी हो गई है. इन्हीं सब बारीकियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने यह कारगरप्रयास किया है. इस मंत्रालय के कामकाज के दृष्टिगत सरकार की तरफ से कहा गया है कि यहमंत्रालयसहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिएप्रशासनिक, क़ानूनी और नीतिगत ढ़ांचा प्रदान करने का काम करेगा.गौरतलब है कि इन तीन बिंदुओं पर अगर सरकार तेज़ गति से काम करती है तो सहकारिता आंदोलन को नई दिशा प्राप्त होगी. इसका भरोसा इसलिए भी अधिक हो जाता है कि क्योंकि नरेंद्र मोदी नेकठोर परिश्रम कर तय समय में अपने लक्ष्य को साधने वाले नेता अमित शाह को यह जिम्मेदारी दी है.इसमें संशय नहीं कि प्रबंधन का दंश झेल रहे सहकारिता विभाग को नए नीति- नियंता की आवश्यकता थी,जो जर्जर अवस्था में पड़े सहकारिता क्षेत्र को पुनर्स्थापित कर सके. यह दुष्कर कार्य वही व्यक्ति कर सकता जिसका इस क्षेत्र में व्यापकअनुभव रहा हो.

अमित शाह को जब यह मंत्रालय दिया गया तो तरह-तरह की बातें और सवाल भी उठने लगे थे. स्वभाविक है कि ऐसे सवालों कोतर्कपूर्णजवाब तर्क वतथ्य को समझने वाले लोगों को ही दिया जा सकता है, लेकिन ऐसे लोगों को जवाब देना उचित नहीं है, जो एक विचार परिवार से घृणा के वास्ते विषय वस्तु को समझे बगैर आलोचना के लिए लालायित रहते हैं. ये वही लोग हैं जो सहकारिता के नाम पर वर्षों से लूट-खसोट मचाए हुएहैं. जैसे ही यह मंत्रालय अमित शाह को मिला इन लोगों पर मानों आसमान टूट पड़ा. वास्तव में अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून के बाद से तथाकथित बुद्दिजीवियों के निशाने पर सबसे पहले शाह ही हैं. उसकी बानगी भी हमें समय-समय पर देखने को मिलती रहती है. देश के अधिकतर लोग अमित शाह के राजनीतिक प्रबंधन का लोहा मनाते हैं परन्तुउनके कार्यक्षमता की विवधता से बहुत लोग परिचित नहीं हैं. जाननादिलचस्प है कि दो दशक पहले अमित शाह सहकारी संस्थानों कीचुनौतियों से लोहा लेतेलेते हुए सफलता का झंडा बुलंद कर चुके हैं. सहकारिता मंत्रालय के लिए शाह उपयुक्त इसलिए भी हैं क्योंकि वह इस क्षेत्र की बारीकियों से पूरी तरहवाफिफ हैं. अब सवाल यह उठता है कि शाह ने ऐसा क्या करिश्मा किया हैकि उन पर भरोसा किया जाए.

गौरतलब है कि अमित शाह मात्र 36 वर्ष की उम्र में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बनें. यहाँ शाह के लिए चुनौतियों का बड़ा पहाड़ था एक तरफ जहाँ अहमदाबाद जिलासहकारी बैंक 20करोड़ से अधिक के घाटे में चल रहा था, तोवहीँ जमाकर्ताओं का लाभांश भी वर्षों से नहीं दिया जा रहा था. स्वभाविक है जब बैंक घाटे में है तो जमाकर्ताओं कोउसका लाभ कैसे मिल सकता है. बैंक की सभी स्थितिको जानने के उपरांत शाहयह समझ चुके थे कि बड़े परिवर्तन करने की बाद ही स्थिति को सुधारा जा सकता है. अत: अमित शाह ने अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के पुनरूद्धार का प्रस्ताव रखा था. उनके व्यक्तिगत वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार इस प्रस्ताव का सार्वजनिक उपहास किया गया . परन्तुशाह विचलित हुए बगैर अपनेनिश्चय और संकल्प पर अडिग रहे, जिसके परिणामस्वरूप एक साल के अंदर इस बैंक का कायाकल्प ही बदल गया.

अपनी कुशल कार्यक्षमता से बैंक को नुकसान से बाहर निकालते हुए शाहने इसे छह करोड़ से अधिक के लाभ पर पहुँचाया इसके साथ जमाकर्ताओं को लाभांश का वितरण करके सहकारिता को लेकर डगमगाए उनके भरोसे को भी पुनरस्थापित किया. बतौरअध्यक्ष अमित शाह ने यहाँ बहुत से नवाचारों के बल पर सलफता का कीर्तिमान स्थापित किया. शाह के ही कार्यकाल में बैंक ने अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार करते हुए सरकारी सुरक्षा निधि को क्रेडिट केतहत बैंक ने 262 फीसदी काअभूतपूर्व लाभ अर्जित किया. शाह के इन सब अथक प्रयासों की बदौलत अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक समूचे गुजरात में शीर्ष स्थान पर काबिज हो गया. सहकारिता के क्षेत्र में अमित शाह ने कई उल्लेखनीय कार्य करने के साथकई ऐसे प्रभावी निर्णय लिए जो किसानों और मजदूरों के हित में थे. जैसेकिसानोंऔरखेतिहर मजदूरों की पीड़ा को समझते हुएशाह ने इनको मिलने वाली बीमा सुरक्षा कीरकम में पांच गुना कीअप्रत्याशित बढोत्तरी की.

माधेपुरा बैंक के पुनरुद्धार का प्रण-

राष्ट्रीय राजनीति में जब अमित शाह सक्रिय हुए तब उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति से लोग वाकिफ नहीं थे आज भी राजनीति के इतर उनके अन्य क्रियाकलापों और अभूतपूर्व कार्यों का मूल्यांकन ठीक से नहीं होता है. यह ऐसी घटना है जिसको लेकर आप इस बात को स्वीकार करने के लिए मजबूत हो जाएंगे कि शाह शुरू से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खुद को खपाने वाले व्यक्ति हैं. हुआ यूँ कि उनके इस कार्यकाल के दौरान ही गुजरात के माधेपुराबैंकबंद होने से तीन लाख खाताधारकों सहित सहकारी बैंको के आठ सौ करोड़ रूपये डूबने की पूरी संभावना थी. इसघटना सेगुजरात के सहकारी बैंको के आस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा था. जिनके पैसे डूब रहे थे वह पूरी तरह निराश हो चुके थे. यहाँ तक कि अमित शाह के विधानसभा क्षेत्र सरखेज के एक व्यक्ति ने मौत को चुन लिया था. इस घटना से अमित शाह को बहुत दुःख पहुंचा. संवेदनशीलव्यक्तित्व के अमित शाह ने प्रण लिया कि जबतक माधेपुरा बैंक का पुनरूद्धार नहीं हो जाता तबतक दाढ़ी ट्रिम नहीं कराऊंगा. यहसंकल्प केवल एक बैंक को बचाने का नहीं था बल्कि यह संकल्प गुजरात में सहकारिता आंदोलन को बचाने का था, निराशा के घोर अँधेरे में डूबे लोगों को रौशनीप्रदान करने का संकल्प था. इसके लिए शाहसभी संभावनाओं को टटोलने लगे.

राज्य में सहकारिता क्षेत्र में प्रमुख लोगों से बात करना हो अथवा राष्ट्रीय स्तर के वित्तीय संस्थानों से संवाद करना हो, अमित शाह ने इसके लिए अथक प्रयास किए. आख़िरकार शाह का परिश्रम सार्थक सिद्ध हुआ. उनकीकुशल नीतियों व कार्य योजना के कारण बदहाल की कगार पर खड़े माधेपुरा बैंक को संजीवनी मिल गई. अमित शाह निपुणताऔर प्रबंधन के कारण माधेपुराबैंक का पुनरुद्धार तो हुआ ही इसके साथ डिपाजिट इंश्योरेंस योजना के द्वारा 400 करोड़रूपये खाताधारकों और डिपोजिटर्सको वापस दिलाये.उनकी इस सफलता की गूंज राष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई पड़ी. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपने सहकारिता प्रकोष्ट का राष्ट्रीय संयोजक का दायित्व प्रदान किया. यहीं परउन्हें सहकारिता आंदोलन के पितामह की उपाधि मिली. यह अपनेआप सहकारिता के क्षेत्र में अमित शाह की कार्य क्षमता की कहानी कोबयाँ कर रहे हैं. इन सभी तथ्यों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में सहकारिता मंत्रालयदेश में सुस्त पड़े सहकारिता संस्थानों को नई गति प्रदान होगी.

Next Story