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15 अगस्त : राजनेता महज सत्ता पाने की कवायद में जुटे है , समाज और सामाजिक मुद्दों से कोई सरोकार नहीं

Shiv Kumar Mishra
15 Aug 2020 2:43 AM GMT
15 अगस्त : राजनेता महज सत्ता पाने की कवायद में जुटे है , समाज और सामाजिक मुद्दों से कोई सरोकार नहीं
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स्वतंत्रता संग्राम के जाने-अनजाने क्रांतिवीरों को भूल जाना उनकी शहादत का अपमान होगा। इसलिए इसदिन हम देश व समाज के हित में बलिदानी वीर-वीरांगनाओं को याद कर उनके बताये मार्ग पर चलने के लिए संकल्पित होते हैं।

रामभरत उपाध्याय

15 अगस्त, 1947 को भारत के प्रत्येक जाति, धर्म, सम्प्रदाय तथा मज़हब के लाखों भारतवासियों ने लाखों कुर्बानियां देकर ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के गौरव का प्रतीक है हमारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस ।

स्वतंत्रता संग्राम के जाने-अनजाने क्रांतिवीरों को भूल जाना उनकी शहादत का अपमान होगा। इसलिए इसदिन हम देश व समाज के हित में बलिदानी वीर-वीरांगनाओं को याद कर उनके बताये मार्ग पर चलने के लिए संकल्पित होते हैं।

राजनीतिक रूप से आज हम सभी भारतवासी प्रतिवर्ष 15 अगस्त को आजादी की वर्षगांठ मनाते हैं। भारत में आजादी के अर्थ निरंतर बदलते रहे। सबने अपने-अपने ढंग से आजादी का मतलब निकाला है। गरीब आदमी के लिए आजादी का अर्थ गरीबी से आजादी है। अशिक्षित व्यक्ति के लिए आजादी का अर्थ अशिक्षा से आजादी है। ऐसे ही सभी वर्गों और व्यक्तियों के लिए आजादी के अलग-अलग मायने है ।

लेकिन इस समय कोरोना, पूंजीवाद, साम्प्रदायिकता, आतंकवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार से आजादी अनिवार्य हो गई है। जिस अर्थ और भाव के साथ सबने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हमें जो 'अर्थ' दिया था, हम कहीं-न-कहीं उससे भटक गए हैं। कुव्यवस्था की विडम्बना ने उसे विद्रूप बना दिया है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए स्थानीय सरकार अथवा पंचायत व नगर निकायों को मजबूत करने की दिशा में हमारी गति धीमी है।

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है। हर कोई अपनेआप में ही खोया हुआ है। पैसा कमाने की अंधी दौड़ में आज मानव की संवेदनाएं कहीं गुम हो गई हैं। देश हित और समाज के उत्थान की बातें महज किताबी होकर रह गई हैं।

यदि राजनेताओं की ही बात करें तो ये विडम्बना ही है कि हमारे देश के राजनेता महज सत्ता पाने की कवायद में जुटे नजर आते हैं उन्हें समाज और सामाजिक मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। चुनाव नजदीक आते ही हमारे नेता लोकलुभावनी घोषाणाएं करते हैं और कुर्सी मिलते ही सबभुलाकर अपनी जेबें भरने में व्यस्त हो जाते हैं।

ऐसा है हमारा लोकतंत्र जहां आवाज उठाने पर भी इंसाफ नहीं मिलता, देश में बढ़ रहे अपराध और महिलाओं पर हो रहे जुल्मों की घटनाएं ये बयां करने के लिए काफी है कि हमारी मानसिकता किस हद तक गिर चुकी है। स्वतंत्र होने के बाबजूद आज भी भारत में बहुतेरी महिलाओं को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार शायद नहीं है ।

हमको अपने आजादी के मायने बदलने होंगे। जिस तरह स्वतंत्र भारत की तस्वीर अपने दिल, दिमाग तथा आंखों में बसाये हमारे क्रांतिवीरों ने भारत मां को आजाद कराने के लिए अपना बलिदान दिया था। हमें उनके सपनों को साकार करना होगा।

स्वतंत्रता दिवस पर सभी भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनायें | जय हिन्द....

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