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दलित एक्ट के विरोध में धधक रहा देश, देर से ही सही, समय पर जागे सवर्ण पिछड़े!
व्यक्तिगत कारणों से मैं कुछ दिनों से फेसबुक पर पहले जैसा सक्रिय नहीं हूं. लेकिन दलित एक्ट को लेकर जिस तरह से सवर्णों एवं पिछड़े वर्गों में क्रोध की ज्वाला भभक रही है, उसे देख मैं भी अपने को इस संदर्भ में दो शब्द लिखने से रोक नहीं सका. वास्तव में जिस उम्मीद एवं आशा के साथ सवर्णों ने भाजपा को केन्द्र के साथ कई राज्यों में सत्तासीन किया, इन्होंने इनके अरमानों पर पानी फेर दिया.
दलित एक्ट के हो रहे दुरुपयोग को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में आरोपों की जांच के बाद ही एफआईआर करने का आदेश दिया. फिर क्या इसको लेकर सियासत शुरू हो गई. संसद में जिस समय इस कानून पर चर्चा चल रही थी, किसी भी दल के सांसद ने इसका विरोध नहीं किया. इसलिए हमें आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में किसी दल का समर्थन नहीं करना चाहिए. चुनाव में भाग लेकर नोटा की बटन दबा कर हमें अपनी ताकत का सभी दलों को एहसास जताना है. एकजुटता से ही अपना स्वाभिमान फिर से मिल सकता है.
मैं किसी भी दलित के शोषण के पक्ष में नहीं हूं, लेकिन यह भी नहीं होना चाहिए कि इस कानून का दुरुपयोग कर किसी सवर्ण या पिछड़े वर्ग को प्रताड़ित किया जाए. यदि सरकार इस भंवर से बाहर निकलना चाहती है तो इसमें इतना भर संशोधन कर दे कि यदि आरोप झूठा साबित हुआ तो उसी धारा के तहत आरोप लगाने वाले पर मुकदमा चलाया जाए.
इस कानून का खामियाजा हमारे कई सवर्ण एवं पिछड़ी जातियों के मित्र भुगत चुके हैं और भुगत रहे हैं. इसी मई माह में मैं अपने जनपद प्रतापगढ़ गया था. एक वकील मित्र से मिलने कचहरी पहुंच गया. एक अदालत में मैं लगभग 90 वर्ष के बुजुर्ग को देखा, वे लाठी के सहारे चल रहे थे. मैं सोचा, किस केस में इन्हें अदालत आने के लिए मजबूर होना पड़ा. पूछने पर बुजुर्ग ने बताया कि उन्हीं के पड़ोसी के उकसाने पर एक हरिजन ने उनके परिवार के 5 सदस्यों के खिलाफ पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करवा दी.
इसी मुकदमे में मुझे भी अदालत आने के लिए मजबूर होना पड़ा. लाठी के सहारे चलने वाला 90 वर्ष का बुजुर्ग भला कैसे हट्टे-कट्टे युवक को प्रताड़ित कर सकता है. यही नहीं, ऐसे कई झूठे मामलों में हमारे युवक अदालत का चक्कर लगाते-लगाते थक चुके हैं. उनके सामने इससे निकलने का कोई रास्ता सूझ नहीं रहा है. देर से ही सही, सही समय पर सवर्णों एवं पिछड़े वर्गेों में आग की ज्वाला उठी है, यह आग धीरे-धीरे पूरे देश में फैल रही है. ध्यान रहे, इसका फायदा कोई पार्टी उठा न सके. क्योंकि सभी दल इस कानून का विरोध आज तक नहीं कर रहे हैं. जय परशुराम
लेखक राकेश पाण्डेय पत्रकार है. यह उनके निजी विचार है