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किसान आंदोलनः गतिरोध दूर करने को आइफा का सात सूत्री सुझाव

Shiv Kumar Mishra
30 Dec 2020 3:38 AM GMT
किसान आंदोलनः गतिरोध दूर करने को आइफा का सात सूत्री सुझाव
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डॉ त्रिपाठी ने कहा कि अगर सरकार इन सात सूत्री सुझावों को मान कर कानून में संशोधन को तैयार हो जाती है तो न केवल किसानों का आंदोलन खत्म होगा बल्कि देश की कृषि में व्यवस्था में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा.

- प्रधानमंत्री व केंद्रीय कृषि मंत्री को भेजा सुझाव पत्र

- 45 किसान संगठनों से वर्चुअल संवाद के बाद तैयार किया गया सात सुझाव

- एमएसपी को कानून में वैधानिक प्रावधान बनाने पर जोर

भारतीय कृषक महासंघ राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने 45 किसान संगठनों से वर्चुअल संवाद के बाद तैयार किया गया सात सुझाव पत्र सरकार को भेजा है. जिससे यह गतिरोध समाप्त हो सके.

डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय कृषि व किसानों की दशा दिशा सुधारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जो तीन कृषि सुधार कानून लाये गये हैं, इसे लेकर देशभर के किसान उद्वेलित, आक्रोशित व आंदोलित है. लेकिन भारतीय कृषक महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि- एकबारगी यह कहना उचित नहीं होगा कि ये तीनों कानून कृषि व किसानों के हितों के एकदम से प्रतिकूल है, लेकिन कई ऐसे चीजें हैं जो कि किसानों के हितों के प्रतिकूल है तथा यह कृषि सुधार के प्रयासों को बाधित करेंगे

.डॉ त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय कृषक महासंघ (आइफा), जो कई किसान संगठनों का एक महासंघ है, तीनों कानून के पूर्व जब सरकार द्वारा बीते 5 जून को अध्यादेश लाया गया था, तभी इसमें संशोधन की मांग करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर को सात सूत्री सुझाव पत्र भेजा था लेकिन उन सुझावों पर गौर ना करते हुए सरकार द्वारा उन अध्यादेशों को संसद के मानसून सत्र में पारित करा कर कानून का रूप दे दिया गया. डॉ त्रिपाठी ने कहा कि आइफा ने देश के चारो जोन के जोनल संयोजकों और 45 किसान संगठनों के साथ वर्चुअल संवाद कर यह सुझाव पत्र तैयार किया था. आज उन्हीं मुद्दों व आशंकाओं को लेकर किसान आंदोलित हैं.

डॉ त्रिपाठी ने कहा कि सरकार एमएसपी की गारंटी मौखिक या लिखित देने के बजाय इसे कृषि सुधार कानून में शामिल कर संवैधानिक प्रारूप दे सकती है औऱ साथ ही कांट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खेती करने वाले किसानों के हितों को सुरक्षित करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है. फसल न होने या बर्बाद होने पर कॉन्ट्रैक्ट देने की कंपनी तो फसल बीमा योजना के तहत अपने नुकसान की भरपायी कर लेगी लेकिन किसानों के श्रम व जमीन के किराये का क्या होगा? इस समस्या का समाधान भी कानून के तहत निकालना होगा. उन्होंने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित विवादों के निपटान की व्यवस्था एसडीएम/ डीएम के अंतर्गत ना होकर इसके लिए अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था की जानी चाहिए और अब तक कृषि जीएसटी के दायरे से बाहर है, लेकिन उक्त कानून के तहत कृषि एक सेवा व्यवसाय के रूप में उल्लेखित किया गया है, लिहाजा कृषि के जीएसटी के दायरे में भी आने की आशंका है. उक्त कानून के तहत गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस को स्पष्टता के साथ वर्णित नहीं किया गया है. ऐसे में कांट्रैक्ट फार्मिंग कराने वाली कंपनियां ज्यादा उपज हासिल करने के लिए अनियंत्रित रसायनिक खाद का इस्तेमाल कर खेती की उर्वरकता को नष्ट कर देगी और सस्टनेबल फार्मिंग (टिकाऊ खेती) की अवधारणा विफल हो जाएगी. डॉ त्रिपाठी के अनुसार कृषि व मूल्य लागत आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाना अब आवश्यक हो गया है तथा एमएसएम का निर्धारण स्वामीनाथन समीति की अनुशंसा सी-2 प्लस के तहत किये जाने का प्रावधान कानून के अंतर्गत किया जाए.

डॉ त्रिपाठी ने कहा कि अगर सरकार इन सात सूत्री सुझावों को मान कर कानून में संशोधन को तैयार हो जाती है तो न केवल किसानों का आंदोलन खत्म होगा बल्कि देश की कृषि में व्यवस्था में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा.

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