राष्ट्रीय

दिल्ली में किसानों की बड़ी बैठक में बोले डॉ राजाराम त्रिपाठी, 'रासायनिक खाद के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपए और जैविक खेती के लिए जीरो बजट का बेसुरा झुनझुना'

Arun Mishra
3 Jun 2022 1:54 PM GMT
दिल्ली में किसानों की बड़ी बैठक में बोले डॉ राजाराम त्रिपाठी, रासायनिक खाद के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपए और जैविक खेती के लिए जीरो बजट का बेसुरा झुनझुना
x
पहली बार देश के प्रमुख किसान नेता एक मंच पर एक साथ दिखे, ना दिल मिले ना सुर मिला पर देश हित के लिए आए एक साथ...

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने दिल्ली में आयोजित देश के प्रमुख किसान नेताओं की एक राउंड टेबल मीटिंग में कहा कि हमें ऐसी खेती की तरफ जाना पड़ेगा जिसमें उर्वरकों और पानी का इस्तेमाल कम हो, और आमदनी भी ज्यादा हो। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले वर्ष मैं स्वयं तथा किसान नेता युद्धवीर सिंह जी छत्तीसगढ़ के साथ बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव के नवाचारी किसान नेता डॉ राजाराम त्रिपाठी के खेतों पर जाकर उनके द्वारा पिछले कई सालों से बिना रासायनिक खाद और दवाई के की जा रही बहुस्तरीय जैविक खेती का सफल मॉडल अपनी आंखों से देखा है। बिना एक ग्राम रासायनिक खाद तथा दवाई के उपयोग के एक एकड़ जमीन से 50 एकड़ जमीन के बराबर लाभ कैसे लिया जा सकता है यह वहां जाकर आप देख और सीख सकते हैं। वहां पर जैविक पद्धति से की जा रही काली मिर्च ऑस्ट्रेलियन ठीक और जड़ी-बूटियों की खेती को किसानों को और सरकार को भी जाकर देखना, समझना और सीखना चाहिए।

रूरल वॉयस और सॉक्रेटस फाउंडेशन द्वारा रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद पैदा उर्वरकों के मौजूदा संकट पर मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित एक राउंड टेबल कांफ्रेंस में देश भर के प्रमुख किसान संगठनों के पदाधिकारियों ने कई महत्वपूर्ण सुझाव शायद यह पहला मौका है जब देश विभिन्न मत वाले संगठनों के प्रमुख किसान नेता किसानों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक मंच पर एक साथ मौजूद रहे।

सॉकरेटस ने बताया कि पिछले एक साल से अभी तक उर्वरकों की कीमतों व अंतरराष्ट्रीय बाजार और घरेलू आयात की स्थिति की जानकारी और आंकड़े पेश किये गये।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह ने कृषि के लिए योजना आयोग जैसी अलग संस्था बनाने की जरूरत बताई और कहा कि अभी जो लोग नीतियां बनाते हैं उन्हें खेती के बारे में कुछ नहीं मालूम। सरकार की नीतियों में ऑर्गेनिक को प्राथमिकता नहीं मिलती है। आखिर हम कब तक आयातित उर्वरकों के मोहताज रहेंगे। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य किया जाना बहुत जरूरी है वह किसानों के जीवन रेखा है।।

किसान आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव ने अल्पकालिक और दीर्घकालिक सुझाव दिए। उन्होंने कहाकि सरकार उद्योगों को सब्सिडी न दे, किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी दे। एमएसपी को जिला स्तरीय कृषि आर्थिकी से जोड़ना चाहिए। खास जिले या क्षेत्र में खास फसलों के लिए ही एमएसपी दी जानी चाहिए, सबके लिए नहीं।

भारतीय किसान सभा के महासचिव और वरिष्ठ सीपीआई नेता अतुल अंजान ने कहा, ऑर्गेनिक खेती को सरकार को ही बढ़ावा देना पड़ेगा।। युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए कृषि को बदलना जरूरी है। उन्होंने भी कृषि आयोग जैसी संस्था गठित करने का समर्थन किया और कहा कि इसकी राज्यवार बैठक होनी चाहिए।


भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि हमारे तथा सहयोगी किसानों द्वारा तो 25 साल से ऑर्गेनिक खेती की जा रही है, उन पर रूस यूक्रेन युद्ध का कोई असर न पड़ा है और ना ही पड़ेगा। डॉ त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू की गई गोबर खरीदी तथा गौठान योजना जैसे प्रयासों को जैविक खेती तथा खाद के मामले में में आत्म निर्भर होने के लिए जरुरी बताया। ऐसे सार्थक पहल को अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय बताया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार लाखों करोड़ों रुपए का बजट रासायनिक खाद के लिए देती है, इस साल भी 1.05 लाख करोड़ रूपया रासायनिक खादों के लिए अनुदान दिया गया है, और इसे भी नाकाफी बताया जा रहा है। और जब जैविक खेती की बात आती है तो सरकार उसे फंड मुहैया कराने के बजाय जीरो-बजट का बेसुरा झुनझुना थमा देती है। बिना रूपए खर्च किए जीरो बजट वाली खेती की अवधारणा व्याअवहारिक है जबकि हमें खेती में इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य चीजों पर खर्च करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि किसान खेती तथा उत्पादन के जो आंकड़े बताए जाते हैं उनमें ज्यादातर गलत होते हैं, लगता तो यही है कि सरकारें झूठे आंकड़ों के पिरामिड पर बैठी है।

भारतीय किसान संघ के प्रमोद चौधरी ने कहा कि अभी जो उर्वरक सब्सिडी दी जाती है वह होती तो किसानों के नाम पर है लेकिन वह सब्सिडी इंडस्ट्री को मिलती है। उन्होंने सुझाव दिया कि हर किसान को प्रति एकड़ 6000 रुपए के हिसाब से सब्सिडी की रकम दे दी जाए फिर किसान खुद तय करे कि उसे कौन सा उर्वरक इस्तेमाल करना है।

एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) के नचिकेत ने बताया कि भारत तैयार उर्वरकों के साथ कच्चे माल का भी आयात करता है। इसलिए अब रासायनिक खादों के बजाय हमें अन्य विकल्प देखना पड़ेगा।

जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पूर्व विधायक यावर मीर भी इस कांफ्रेंस में मौजूद थे। उन्होंने बताया, कश्मीर में बागवानी की खेती ही अधिक होती है परन्तु सरकार की नीतियां किसानों के लिए नहीं बल्कि व्यापारियों के लिए हैं। स्थिति यह है कि आज किसानों के पास किसान क्रेडिट कार्ड से लिए गए कर्ज लौटाने तक के पैसे नहीं हैं।

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि सरकार की नीतियों के कारण सबसे अधिक जम्मू राजस्थान के दलहन किसानों को नुकसान होता है। उदाहरण के तौर पर सरकार ने दालें खरीदने की घोषणा तो की लेकिन साथ में तय कर दिया कि 25 फ़ीसदी से ज्यादा उपज नहीं खरीदी जाएगी। उन्होंने कहा कि फसल विविधीकरण और फसल चक्र भारतीय किसानों के स्वभाव में था। सरकारी नीतियों के कारण ही मामला बिगड़ा है। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम संयोजक वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह ने सभी को धन्यवाद दिया।

Arun Mishra

Arun Mishra

Sub-Editor of Special Coverage News

Next Story