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किसानों को खुशहाल बनाना है तो उन्हें विकलांग बनाने वाली बीमारी फाइलेरिया से मुक्ति दिलानी होगी

Special Coverage News
7 Jan 2019 6:42 PM IST
किसानों को खुशहाल बनाना है तो उन्हें विकलांग बनाने वाली बीमारी फाइलेरिया से मुक्ति दिलानी होगी
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लेखिका- शिवानी पांडेय

इस समय देश में किसानों की चर्चा है। चर्चा की वजह उनका एक बड़ा वोट बैंक होना है। देश में किसानों की आबादी करीब 70 फीसदी है। अपने वोट बैंक की ताकत से ये जिसे चाहें उसे सत्ता नशीन कर सकते हैं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनवानें में किसानों की अहम भूमिका रही। लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दल उन पर एक बार फिर से डोरे डालने लगे हैं। उनके कर्ज माफी की बात हो रही है। उनकी आय दुगनी करने और फसल उत्पादन बढ़ाने का सपना दिखाया जा रहा है। लेकिन उनकी असल समस्या स्वास्थ्य पर कोई बात नहीं हो रही है। जबकि हमारे किसानों पर फाइलेरिया जैसी बीमारी का खतरा मडरा रहा है। विश्व में सबसे ज्यादा विकलांग बनाने वाली दुनिया की दूसरे नंबर की यह बीमारी सबसे ज्यादा किसानों को ही प्रभावित कर रही है। ग्रामीण इलाकों में ज्यादा पाई जाने वाली यह बीमारी किसानों को विकलांग बना रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 65 करोड़ भारतीयों पर फाइलेरिया रोग का खतरा मड़रा रहा है। यानी देश की करीब आधी आबादी इसकी चपेट में है। 21 राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के 256 जिले फाइलेरिया से प्रभावित हैं। 52 देशों में करीब 85.6 करोड़ लोग फाइलेरिया के खतरे की जद में हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार, ये दोनों देश के खेती-किसानी वाले बड़े राज्य हैं। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के 51 और बिहार के 38 जिले फाइलेरिया से प्रभावित हैं। इस बीमारी की वजह से किसानों की आय प्रभावित होती है क्योंकि शारीरिक विकलांगता और अक्षमता की वजह से उनकी श्रम शक्ति और उत्पादकता घट जाती है। लिहाजा न तो वे खेतों में काम कर पाते हैं और न ही खेती पर पूरा ध्यान दे पाते हैं। ऐसे में गरीबी के दुष्चक्र में फंसा किसान और लाचार हो जाता है।

फाइलेरिया एक लाइलाज बीमारी है। केवल रोकथाम ही इसका समाधान है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का दुर्भाग्य यह है कि संक्रमण के लंबे समय बाद इसका पता चल पाता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। फाइलेरिया को हाथीपांव या फीलपांव के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग मच्छरों द्वारा फैलता है। जब कोई मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है। फिर जब यह मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के विषाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देते हैं।

फाइलेरिया रोग के बढ़ते प्रभाव से दुनिया के तमाम देश चिंतित हैं। इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सन 2000 में वैश्विक फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम शुरु किया। फाइलेरिया को सन 2020 तक दुनिया से समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत भी इस बीमारी को लेकर गंभीर है और फाइलेरिया के उन्मूलन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के लक्ष्यों में शामिल किया है। फाइलेरिया रोकने के लिए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन नामक योजना है। जिसके तहत लोगों को साल में एक बार फाइलेरिया रोधी दवाओं की खुराक दी जाती है।

फाइलेरिया से बचने के लिए लोगों को दो तरह की दवा खिलाई जाती है। सरकार ने हाल ही में इस फाइलेरिया रोधी दवा में एक दवा और शामिल कर दी। फाइलेरिया रोधी यह "ट्रिपल ड्रग" पहले के मुकाबले ज्यादा प्रभावकारी और लाभदायक है। हाल ही में बिहार के अरवल जिले में भारत सरकार ने गैरसरकारी संस्था डब्ल्यूएचओ, पीसीआई, जीएचएस, पीएटीएच और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फांउडेशन के साथ मिलकर "ट्रिपल ड्रग" को लांच किया। यह एक अच्छा प्रयास है और उम्मीद है कि इस कारगर दवा के सकारात्मक नतीजे हासिल होंगे और देशवासियों को इस बीमारी से निजात मिलेगी।




लेकिन, केवल प्रभावी दवा की व्यवस्था ही पर्याप्त नहीं है। सरकार को फाइलेरिया की समाप्ति के लिए और भी कारगर कदम उठाने होंगे। दवाइयों को संक्रमित इलाकों के लोगों के घर-घर तक पहुंचाने की कारगर व्यवस्था करनी होगी। अभी यह एक बड़ी चुनौती है। यह काम आशा वर्कर के जिम्मे है। मास ड्रग्स एडमिनेस्ट्रेशन प्रोग्राम के तहत 1000 लोगों पर एक आशा की नियुक्ति की जाती है और उन्हें कम से कम 750 लोगों को दवा पिलाने का लक्ष्य दिया जाता है। जाहिर है कि 250 लोग दवा से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में आशा वर्कर की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही तीन दिन के दवा खिलाने के कार्यक्रम के लिए उन्हें प्रतिदिन 200 रूपये के हिसाब से महज 600 रूपये दिया जाता है। यह रकम भी कम है और तीन दिन का समय भी। रकम बढ़ाने के साथ-साथ दवा खिलाने की समय सीमा भी 3 दिन से बढ़ा कर 5 दिन करने की जरूरत है। रकम बढ़ने से आशा वर्करों का उत्साह बढ़ेगा और वे इस कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरे मन से जुटेंगी।

फाइलेरिया को लेकर लोगों में जागरुकता का आभाव भी है। दवा के बारे में तरह-तरह की भ्रांतियां भी हैं। लोग यह कहते हुए दवा खाने से इनकार कर देते हैं कि उन्हें जब कुछ हुआ ही नहीं है तो दवा क्यों खाएं? यह भी कि ऐसी दवाएं नपुसंकता को बढ़ावा देती हैं। सरकार को इस बीमारी के बारे में बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाना चाहिए। इसे स्वच्छता अभियान से भी जोड़ा जा सकता है, क्योंकि इस रोग के वाहक मच्छर गंदगी की वजह से ही पनपते हैं। हमारे किसानों की खुशहाली उनकी अच्छी सेहत पर टिकी है। स्वस्थ्य किसान अधिक उत्पादन करेगा। अधिक उत्पादन से न केवल उसकी आय अधिक होगी, बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था की सेहत भी अच्छी होगी। अगर राजनीतिक दल सच में किसानों का भला चाहते हैं तो उन्हें किसानों के स्वास्थ्य की चिंता करनी चाहिए।

(सामाजिक मुद्दों पर लेखन करने वाली शिवानी पांडेय डाक्यूमेट्री फिल्ममेकर, स्वतंत्र पत्रकार और फोटोग्राफर हैं। भारत से लेकर अमेरिका तक में उनकी फिल्मों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है और फोटो एक्जीबिशन लगाई जा चुकी है।)

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