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इस चाणक्य ने कांग्रेस का पूर्वोत्तर का तिलिस्म तोडा, कभी तुमने किया था मिलने से मना, बीजेपी ने लिया था हाथोहाथ!
कभी पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस का डंका बजता था. उस समय कांग्रेस के पास संघठन के नेता हुआ करते थे. बीते साल जब आसाम में कांग्रेस की सरकार थी. तब उसी सरकार में मौजूद वरिष्ठ मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस के मौजूदा उपाध्यक्ष से मिलने का समय माँगा था. तब राहुल ने मिलने से इंकार कर दिया था. शायद उस भूल का कांग्रेस को अब एहसास हो रहा होगा. उसी मंत्री ने चाणक्य का रोल निभाते हुए पूर्वोत्तर राज्य से कांग्रेस का सफाया कर दिया जिसका पूरा श्रेय हेमंत बिस्वा सरमा को जाता है.
चुनाव परिणाम आ रहे थे तीनों राज्यों में से कांग्रेस को एक राज्य में अपनी स्तिथि ठीक नजर आ रही थी. जबकि बीजेपी को मात्र दो सीट पर जीत मिली थी. लेकिन बीजेपी के बड़े चाणक्य अमित शाह का पूर्वोत्तर के चाणक्य को फोन आता है कि इस राज्य से भी कांग्रेस की रुखसती हो सकती है क्या? छोटे चाणक्य ने कहा ये दायें बांये हाथ का खेल है. जबकि कांग्रेस अपने चार धुरंधर नेतओं को दिल्ली से मेघालय के लिए भेज चुकी थी. कहीं मणिपुर और गोवा जैसी गलती न हो जाय. और वही हुआ.
बिना एक क्षण गंवाए हेमंत बिस्वा सरमा शिलांग पहुंचे और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी एनपीपी नेता कोनराड संगमा के साथ छह विधायकों वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता डोनकूपर रॉय से मिलने पहुंचे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जब वह डोनकूपर रॉय के घर पहुंचे तो उस वक्त वहां पहले से ही कांग्रेस नेता मुकुल संगमा मौजूद थे. वह भी समर्थन की अपेक्षा के साथ डोनकूपर रॉय के घर पहुंचे थे. इन दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद डोनकूपर रॉय ने स्पष्ट कर दिया कि वह गैर-कांग्रेसी सरकार का हिस्सा होंगे और इस तरह हेमंत बिस्वा सरमा ने पूरी बाजी अकेले दम पलट दी. कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को बैरंग शिलांग से वापस लौटना पड़ा और एनपीपी(19), यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट(6), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(4), हिल स्टेट डेमोक्रेटिक पार्टी (2), भाजपा (2) और 1 निर्दलीय विधायकों के दम पर एनडीए ने सरकार बना ली. मंगलवार को कोनराड संगमा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. कहा जा रहा है कि एनडीए के लिए सत्ता की स्क्रिप्ट हेमंत बिस्वा सरमा ने अकेले दम पर लिखी.
कौन है हेमंत बिस्वा सरमा (49)
कभी असम के दिग्गज कांग्रेसी नेता तरुण गोगोई के प्रिय शिष्य रहे हेमंत बिस्वा सरमा उनकी सरकार में कई पदों पर रहे. 2015 में उन्होंने तरुण गोगोई से मतभेद के चलते राहुल गांधी से संपर्क साधा. बाद में उन्होंने राहुल गांधी की आलोचना करते हुए कहा कि जब वह असम की समस्याओं के मसले पर उनसे चर्चा करना चाह रहे थे तो पहले तो राहुल गांधी ने उनको समय नहीं दिया और जब उनसे मुलाकात हुई तो उनकी बात पर ज्यादा गौर नहीं किया. उपेक्षित सरमा ने कांग्रेस को छोड़ दिया और बीजेपी का दामन थाम लिया. उसके एक साल बाद 2016 में हेमंत बिस्वा सरमा ने सर्बानंद सोनोवाल के साथ मिलकर असम में पहली बार बीजेपी को सत्ता में पहुंचाया. उनकी क्षमताओं को देखते हुए असम के इस मंत्री को बीजेपी ने नॉर्थ-ईस्ट का रणनीतिकार बनाया. लिहाजा बीजेपी ने उनको नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस(नेडा) का संयोजक बनाया.
हेमंत बिस्वा सरमा को सही चुनावी गठबंधन करने और अथक प्रयास करने वाले नेताओं में गिना जाता है. अरुणाचल प्रदेश में जब पूरी कांग्रेसी सरकार का बीजेपी में विलय हुआ तो उसके पीछे उनको ही सूत्रधार माना जाता है. उसके बाद 2017 में मणिपुर चुनावों के बाद बीजेपी की सरकार बनाने का श्रेय उनके ही खाते में जाता है.
त्रिपुरा में बीजेपी नेताओं के विरोध के बावजूद उन्होंने आदिवासी समुदाय के मुद्दों को उठाने वाली आईपीएफटी के साथ गठबंधन में सफलता हासिल की. इस फैसले को गेमचेंजर इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि आदिवासी बहुल इलाके की 20 सीटों में से 18 सीटों पर इस गठबंधन को कामयाबी मिली. पहले इस अंचल को लेफ्ट का गढ़ माना जाता था. इसी अपराजेय बढ़त के चलते बीजेपी ने त्रिपुरा में कामयाबी हासिल की.
आज फिर कांग्रेस के बड़े नेता अहमद पटेल, कमलनाथ जैसे चार दिग्गज नेताओं को वहां सरकार बनाने की संभावना के साथ भेजा था. देखते रह गये. कभी उन्ही के आदेश का पालन करने वाले हेमंत बिस्वा सरमा ने उनको एसी पटखनी दी है जिसे वो कभी भुला नहीं सकते है. और कांग्रेस का हाल फिर मणिपुर और गोवा जैसा ही रह गया. ये कोई ख़ास बात नहीं है सत्ता की दम पर कांग्रेस भी यह खेल खेलती रही है. लकिन इतना नहीं इस बार कुछ ज्यादा हो गया है. राहुल की एक गलती ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त कर दिया. जबकि बीजेपी अपने रूठों को भी अहमियत देती है.