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मैं राष्ट्रद्रोही नहीं हूँ, न ही हिंदू विरोधी , हाँ किसी का अंधभक्त भी नहीं हूँ- पूर्व आईएएस

मैं राष्ट्रद्रोही नहीं हूँ, न ही हिंदू विरोधी , हाँ किसी का अंधभक्त भी नहीं हूँ- पूर्व आईएएस
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श्रद्धेय अटल जी का अस्थि-कलश(मृतावशेष/स्मृतिचिन्ह) अब उत्तर प्रदेश में ज़िला-२ घूमकर वोट माँगेगा. अटल की मृत्यु पर उनकी प्रशंसा से अधिक मीडिया में अन्ध्भक्ति का जादू अधिक देखने को मिल रहा है. सहानुभूति का राजनीतिक लाभ लेने के लिए रात-दिन एक किया जा रहा है . अटल जी को देश (पक्ष/विपक्ष सहित) ने राजनीति से ऊपर उठकर प्यार दिया है। मृत्यु के बाद अब वे किसी दल विशेष के नहीं रहे, वे पूरे राष्ट्र व पूरे जनमानस के हो गए हैं....

अस्थि कलश यात्रा में अटल जी के परिवार के सदस्यों को भी धकेल कर पीछे कर दिया गया. शुरू में तो दिखायी दिए लेकिन बाद में सहानुभूति व निकटता दिखाने के चक्कर में उन्हें धकेल कर गाड़ी से ही बाहर कर दिया।

युग पुरुष की मौत का 'राजनीतिक लाभ' किसी भी दृष्टि से 'नैतिकता' की परिभाषा में तो नहीं आएगा। देश का जनमानस इतना मूर्ख भी नहीं कि कुछ भी परोसो और वह समझ भी न पाए कि नेता क्या करने की कोशिश में हैं।

क्या सत्ता का इस खेल में सब कुछ जायज़ है ? आज विचारों की नहीं, व्यक्ति पूजा का दौर चल रहा है . पता नहीं कहाँ जाकर रुकेगा ये लोकतंत्र . युवा भी भटकाव में है. आम जन वही देख पा रहा है जो दिखाया जा रहा है .मीडिया ग़ुलाम हो चुका है। टीवी बहसों में ऐंकर ऐसी चाकरी कर रहें हैं कि पूछो नहीं . बेशर्मी की हद है। अभी तो झूँठे Exit Polls का दौर चलेगा. लोगों को मूर्ख बनाया जाएगा।

सत्ता में आते ही पार्टियों के आम कार्यकर्ता की दर किनारे कर वहीं दलाल, चाटुकार सभी पार्टियों में छा जाते हैं . ईमानदार अच्छे लोग बिना पैसे के/निर्दलीय भी चुनाव नहीं जीत सकते . किसी न किसी पार्टी/संगठन का सहारा ही चाहिए और पार्टियाँ हैं कि ख़ाली कहने व दिखावे के लिए अच्छे ईमानदारी की बात करते हैं लेकिन वास्तव में चाहिए हैं, कैसे लोग ? मुझे बताने की ज़रूरत नहीं। अधिकांश पार्टियाँ झूँट व फ़रेव से वोट का सौदा कर रही हैं।

किसी लोकप्रिय जननेता की मृत्यु को भुना लेना . अस्थि कलश को वोट के लिए यहाँ-वहाँ विचरण करा देना .सहानुभूति की लहर पैदा कर वोट माँगना, आज की राजनीति की मजबूरी है या फिर आवश्यकता मुझे ज्ञात नहीं. यदि 'सबका साथ-सबका विकास' हो ही चुका/रहा है तो ते सब करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी है .

विकास हुआ है या नहीं, महँगाई कम हुई या नहीं, भ्रष्टाचार कम हुआ है या नहीं, युवाओं को रोजगार मिला है या नहीं, किसान की आय दोग़ुनी हुई या नहीं . ये सब तो पता नहीं लेकिन लोग तो आज अवश्य निराश हुए हैं, इसमें किसी को ही शंका नहीं होनी चाहिए।

मेरे साथ भी लाखों युवा जुड़े हैं और मुझे कृपापूर्ण प्यार व सम्मान देते हैं. उनसे ऐसा फ़ीड्बैक ही मुझे मिल रहा है।

क्या कहते हैं आप ?

विश्वास दिलाता हूँ कि मैं राष्ट्रद्रोही नहीं हूँ. और न ही हिंदू विरोधी . हाँ, किसी का अंधभक्त भी नहीं हूँ। कोई कहे कि मैं सभी का विरोध करता हूँ, यह सही नहीं है लेकिन सत्ता के झूँठ, फ़रेव, भ्रष्टाचार का विरोधी ज़रूर हूँ चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो . शायद Anti-Estabishment (व्यवस्था विरोधी) भी अवश्य हूँ।

आपके स्नेह व सम्मान का सहृदय कोटि-२ आभार !!

लेखक पूर्व आईएएस अधिकारी रहे है ये उनके निजी विचार है.

पूर्व आईएएस सूर्यप्रता�

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