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International Women's Day: "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"

Shiv Kumar Mishra
8 March 2022 9:32 AM GMT
International Womens Day: यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
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International Women's Day

International Women's Day


"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः"

अर्थात्- जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।

नारी को नारायणी प्राचीन काल से ही माना जाता रहा है। आज से लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व वैदिक काल में जैसी स्थिति नारी की रही है, वैसी स्थिति मध्य काल में नहीं रही है।

*वैदिक काल में कोई भी धार्मिक कार्य बिना नारी के संभव नहीं होता था, पति के साथ पत्नी का होना आवश्यक था।

*नारी को राजनीति में भी पुरुषों के समान ही समानता हासिल थी,वैदिक काल की नारियां घुड़सवारी और तलवारबाजी का शौक रखती थीं, और राजपाट भी संभालती थीं।

*वैदिक काल की नारियां धर्म में काफी रुचि रखती थीं, वे वेद पढ़ती थीं और लोगों को वेदों के महत्व के बारे में भी बताती थीं।

उस युग में गार्गी, मैत्रियी, घोषा, अपाला जैसी विदुषी नारियों का जन्म हुआ था, जिन्हें लोग आज भी पढ़ते हैं और उनके जीवन चरित्र को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं।

*नारी को वैदिक युग में देवी का दर्जा प्राप्त था, सतपथ ब्राह्मण में तो कहा गया है कि नारी, नर की आत्मा का आधा भाग है,बिना नारी के नर का जीवन पूर्ण नहीं है

*वैदिक युग में जहां स्त्रियां पतिव्रता होती थीं तो पुरुष भी अपनी पत्नी से विचार विमर्श करके ही कोई काम करते थे।

*उस युग में बाल विवाह प्रचलित नहीं था, पुरुषों के बराबर ही उसे धनुर्विद्या, तलवारबाजी,घुड़सवारी, नृत्य-संगीत सीखने का अधिकार मिला हुआ था। नारी से पूछकर ही उसका विवाह किया जाता था।

*प्राचीन समय में नारियों के विवाह के लिए स्वंवर आयोजित किए जाते थे, जिसमें नारी अपने पसंद के पुरुष के साथ विवाह करती थी।

**मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन(पराभव)-

*मध्यकाल वह दौर था, जहां अफगानों (इस्लाम) का आक्रमण होता है और स्त्रियों की दशा में एक उत्तरोतर परिवर्तन होता है।

या यूं कहें तो स्त्रियों की स्थिति में जितना पतन मध्यकाल में हुआ उतना पतन किसी भी काल में नहीं हुआ।

स्त्रियों को भोग की वस्तु समझा जाने लगा, समाज में उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। नारी को शुद्र की श्रेणी में रखा जाने लगा, "स्त्री शूद्रो नाधीताम"

श्री रामचरिततममानस में तो तुलसीदास ने यह तक कह दिया कि,"ढोल,गवार,शुद्र,पशु,नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी"

पर्दाप्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसे कुप्रथाओं का जन्म मध्यकाल में ही हुआ। अफगानों ने बलपूर्वक नारियों के साथ विवाह रचाएं और उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया, उन्हें केवल उपभोग की वस्तु समझा।

*यह वही समय था जब चित्तौड़ गढ़ की रानी पद्मावती ने अलाउद्दीन खिलजी से अपने सम्मान की रक्षा के लिए हजारों स्त्रियों के साथ अग्निकुंड में कूदकर जौहर कर लिया था।

**वर्तमानयुग और नारी की स्थिति-

वर्तमानयुग में नारी की स्थिति मध्यकाल जैसी नहीं है। स्त्रियां हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं, उन्हें हर क्षेत्र में पुरुषों के समान ही समानता का अधिकार मिला है।

आधुनिकयुग में महिलाएं राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, मंत्री जैसे सत्ता के शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं और अपनी योग्यता व कुशलता का लोहा मनवायीं हैं।

तो वहीं सेना में,प्रशानिक अधिकारी, पायलट, डॉक्टर, इंजीनियर बनकर देश की सेवा की हैं।

स्त्रियों के बारे में कहा जाता है कि यदि पुरुष शिक्षित होगा तो वह केवल अपने कुल को शिक्षित करेगा लेकिन यदि एक बेटी शिक्षित होगी तो वह दो कुलों को संवारेगी, शिक्षित करेगी।

नारी की अच्छी स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब जहां नारियों को नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था की गई है तो वहीं राजनीतिक दलों ने भी अपनी अपनी पार्टियों में नारियों को चुनाव लड़ने के लिए सीटों को आरक्षित कर दिया है।

निःसंदेह नारी की स्थिति पहले से बहुत ही बेहतर हुई है और समाज के निर्माण में उनकी सहभागिता देखने को मिल रही है।

**अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है-

महिला दिवस की शुरुआत साल 1908 में न्यूयॉर्क से हुई थी, उस समय वहाँ मौजूद महिलाओं ने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर अपनी नौकरी में समय को कम करने की मांग को लेकर एक मार्च निकाला था, इसी के साथ उन महिलाओं ने अपने वेतन बढ़ाने और वोट डालने के अधिकार की भी मांग की थी, इसके एक वर्ष पश्चात अमेरिका में इस दिन को राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया ।

फिर इसके बाद साल 1910 में क्लारा जेटकिन ने कामकाजी महिलाओं के एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का सुझाव दिया, इस सम्मेलन में 17 देशों के करीब 100 कामकाजी महिलाएं उपस्थित थी, इन सभी महिलाओं ने क्लेरा जेटकिन के सुझाव का समर्थन किया, इसके बाद साल 1911 में सर्वप्रथम 8 मार्च के दिन कई देशो में यह दिन एक साथ मनाया गया, इस तरह से प्रथम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत हुई।

"कोमल है कमज़ोर नहीं तू.

शक्ति का नाम ही नारी है.

जग को जीवन देने वाली.

मौत भी तुझसे हारी है!!

लेखक : सत्यपाल सिंह कौशिक

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