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Kailash Satyarthi Biography in Hindi | नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के जन्मादिन पर विशेष

Special Coverage Desk Editor
11 Jan 2023 2:21 PM IST
Kailash Satyarthi Biography in Hindi | नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के जन्मादिन पर विशेष
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Kailash Satyarthi Biography in Hindi | नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के जन्मादिन पर विशेष, श्री कैलाश सत्यार्थी के 69वें जन्मदिन पर जानते हैं उनके व्यक्तित्व के कुछ अनसुने मगर रोचक तथ्य...

Kailash Satyarthi Biography in Hindi | नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के जन्मादिन पर विशेष, श्री कैलाश सत्यार्थी के 69वें जन्मदिन पर जानते हैं उनके व्यक्तित्व के कुछ अनसुने मगर रोचक तथ्य...

1 . मोटरबाइक के दीवाने

पहाड़ों और खासतौर से खतरनाक रास्तों पर बाइक और कार चलाना कैलाश सत्यार्थी को रोमांचित करता है। वे कहते हैं, 'पहाड़ों में मोटरसाइकल चलाना मेरा जुनून रहा है। जब भी मौका मिलता, मैं अपनी मोटरसाइकल लेकर निकल जाता था।' हालांकि बाल मजदूरी के खिलाफ अभियानों में उन पर कई बार जानलेवा हमले होने के कारण शरीर में कई तरह की परेशानियां हैं। इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें मोटरसाइकल चलाने की इजाजत नहीं दी है लेकिन उनके अंदर का 'बाइक लवर' अकसर जाग जाता है।

2 . फोटोग्राफी के शौकीन

फोटोग्राफी कैलाश सत्यार्थी का पैशन है। उनके पुराने साथी बताते हैं कि अगर सत्यार्थी ने अपने लिए कभी कुछ खरीदने की इच्छा जताई या योजना बनाई, तो वह कैमरे के लिए ही थी। बकौल सत्यार्थी, 'विदेश यात्राओं के दौरान एयरपोर्ट पर खाली समय मैं कैमरों की दुकानों पर विंडो शॉपिंग करते बिताया करता था।' हालांकि विंडो शॉपिंग की इस आदत ने उन्हें अपना पहला कैमरा भी दिला दिया।

सूरीनाम के उनके एक मित्र ने नोटिस किया कि सत्यार्थी एयरपोर्ट पर अपना समय अकसर या तो कैमरों की दुकानों में बिताते हैं या फिर बैठने की कोई ऐसी जगह देखते हैं जहां से कैमरे की दुकानें दिखती हों। उन्होंने फोटोग्राफी का उनका प्रेम भांप लिया और एक रीफर्बिश कैमरा (पुराना कैमरा) सत्यार्थी को गिफ्ट किया। यह एक साधारण कैमरा था लेकिन सत्यार्थी अपनी हर यात्रा में उससे खूब तस्वीरें लेते।


इसके बाद उनके एक पाकिस्तानी मित्र जिया-उल-हक जो अमेरिका में बस गए थे, ने उन्हें एक बढ़िया कैमरा गिफ्ट किया। सत्यार्थी याद करते हैं, "जिया भाई ने मुझे एक छोटी रील वाला कैसेट कैमरा भेंट किया। इसमें छोटे साइज की रील लगती थी और इसे आसानी से छुपाया भी जा सकता था।" इसी कैमरे से पत्थर खदानों में बाल शोषण की बहुत सी तस्वीरें खींचीं जो अदालतों में सबूत बनीं।

तो कैलाश सत्यार्थी ने अपना पहला कैमरा कब खरीदा? वे बताते हैं, "ग्लोबल मार्च के दौरान मैंने पहला डिजिटल कैमरा खरीदा। यह कोडेक का कामचलाऊ छोटा कैमरा था जिसमें रील डालने की जरूरत नहीं होती थी। कम खर्च में यही सबसे अच्छा विकल्प था।" उनके घर में बाघों और प्राकृतिक दृश्यों की एक से एक सुंदर तस्वीरें दिख जाती हैं जो उन्होंने खुद खींची हैं।

3 . पाककला में निपुण

कैलाश सत्यार्थी खाने के उतने शौकीन नहीं लेकिन अपने हाथों से कुछ पकाकर लोगों को खिलाना उन्हें बड़ा पसंद है। उनके एक पुराने साथी बताते हैं कि वे सत्यार्थी के हाथ के बने कम से कम 20 तरह के पराठों का स्वाद ले चुके हैं। सत्यार्थी के बच्चों को अपने पिता के हाथ का टमाटर के अंदर कई प्रकार की सब्जियां और मसाले भरकर बना स्टफ्ड टोमैटो सबसे ज्यादा पसंद है जबकि उनकी सास उनसे 15 से 20 परतों वाला स्पेशल पराठा बनवाकर खाती थीं। सत्यार्थी कहते हैं, "मैं पराठों को बेलने के दौरान उसे दबाकर 20 परतें तक बना लेता हूं और हर परत प्याज के छिलके की तरह खुल जाती है। खाना बनाना एक आनंद है। जायका मसालों का नहीं होता, प्रेम का होता है।" स्टफ्ड टोमैटों के अलावा बाटी चोखा, मालवे के स्पेशल बाफले, आलूदम, ब्रेड पकोडे और गुलाब जामुन बनाना उन्हें विशेष रूप से पसंद है।



4 - पशुप्रेमीः

कैलाश सत्यार्थी को पशुओं से बड़ा लगाव है। विराट नगर के बाल आश्रम में कुत्तों के अलावा गायें, खरगोश बत्तख आदि देखे जा सकते हैं। सुबह की सैर से पहले वे गौशाला की गायों के बीच थोड़ा समय बिताते हैं। सत्यार्थी बताते हैं, 'मैंने बचपन से ही घर में गायों, कुत्तों, बिल्लियों और तोतों को पलते देखा है। मेरे लिए यह देखना बड़ा मजेदार होता था कि तोते के पिंजरे खोल दिए जाते और वे पिताजी की थाली में ही खाने लगते। आंगन में लगे अमरूद के पेड़ से कुछ गिलहरियां भी उतरकर आ जातीं उनकी थाली से खाने लगतीं।'

फिलहाल सत्यार्थी के फरीदाबाद के घर, दिल्ली के मुक्ति आश्रम और विराटनगर के बाल आश्रम में कुत्ते हैं। बाल आश्रम गाय, खरगोश, और बत्तखों के अलावा एक पामेरियन नस्ल की कुतिया भी है, जो सत्यार्थी की बेटी अस्मिता को मुंबई के किसी पार्क में घायल मिली थी। उसका मालिक उसे पार्क में छोड़ गया था। अस्मिता ने उसका इलाज कराया और बाल आश्रम लेकर आईं।

5- कविहृदय

बहुत कम लोगों को पता है कि कैलाश सत्यार्थी बहुत छोटी उम्र से नियमित रूप से डायरी और कविताएं लिखते रहे हैं। उनका एक कविता संग्रह 'चलो हवाओं का रूख मोड़ें' आ चुका है। बाल दासता विरोधी आंदोलन के जितने भी गीत, जो बहुत लोकप्रिय भी हुए हैं, वे स्वयं सत्यार्थी ने लिखे हैं। विश्वयात्रा का थीम सॉन्ग 'हम निकल पड़े हैं...' उन्होंने ही लिखा है। कविता संग्रह के अलावा इनकी अन्य कई किताबें भी प्रकाशित हैं। हाल ही में उनके द्वारा लिखी 12 सत्य कथाओं का एक संकलन- 'तुम पहले क्यों नहीं आए' प्रकाशित हुआ है जिसकी काफी चर्चा है।


6 . मैचमेकर

कैलाश सत्यार्थी के संगठन में ऐसे अनेक दंपत्ति काम करते देखे जा सकते हैं जिनका विवाह उन्होंने कराया है। कॉलेज के दिनों में उन्होंने दर्जनभर से अधिक ऐसे मुश्किल प्रेम विवाह कराए हैं जहां जातिबंधन से लेकर सामाजिक हैसियत जैसी बाधाएं तो थीं ही, परिवार भी खून-खराबे को आमादा थे। वे एक पुरानी घटना याद करते हैं, 'मेरे एक मित्र जिन्होंने वकालत की तो थी लेकिन वे प्रैक्टिस के बजाए खेती-बाड़ी में ही खुश थे... उन्हें हमारे शहर की पहली महिला डॉक्टर से प्रेम हो गया। उन्होंने ठान ली कि शादी या तो इन्हीं से करेंगे या फिर अविवाहित रहेंगे। मैंने उन डॉक्टर को मुंहबोली बहन बनाया और उनकी पसंद-नापसंद के बारे में मित्र को बताने लगा। मित्र के लिए दफ्तर खुलवाया गया ताकि वे कामकाज करें और बात आगे बढ़े। कई साल के प्रयास के बाद आखिर उनका विवाह करा ही दिया।'

क्या किसी का घर बसाने के फेर में उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं? वे एक घटना सुनाते हैं, 'हमारे शहर में एमएससी की एक छात्रा को एक कम पढ़े-लिखे समाजसेवी युवा से प्रेम हो गया। जातीय बाधाएं भी थीं। लड़की की दादी ने कह दिया कि ये शादी हुई तो मैं जान दे दूंगी। बड़ी मुश्किल से शादी को दोनों परिवार तैयार हुए लेकिन बारात आने से पहले दादी की हालत बिगड़ गई। मैंने एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया और फिर शादी में शामिल हो गया। इसी बीच डॉक्टर मित्र ने दादी के मरने की खबर भिजवाई। जयमाला शुरू ही होने वाली थी। मैंने डॉक्टर को कहलवाया कि चुपचाप रहें और ऐसा दिखाएं कि मरीज का इलाज चल रहा है। विवाह संपन्न होने के बाद मैंने बताया। लड़की के पिता मुझ पर बिफर गए। मामला बिगड़ गया। गनीमत रही कि मैं अस्पताल में नहीं था नहीं तो मेरे ऊपर आरोप लग जाता कि मैंने ही उन्हें मार दिया है।' उन्होंने खुद भी विदिशा से दिल्ली आकर प्रेम और फिर विवाह किया है। उनके बेटे और बेटी ने भी प्रेम विवाह किए हैं।


7 - वेद और अध्यात्म में गहरी रुचि

कोई व्यक्ति जो कैलाश सत्यार्थी को पहचानता न हो, यदि उन्हें वेद ऋचाओं का सस्वर पाठ करते देख ले तो एक पल को वेदपाठी पुरोहित ही समझ ले। सैकड़ों वेदसूक्त उन्हें कंठस्थ हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ ही उन्होंने भारतीय विद्या भवन से संस्कृत भाषा कोविद की उपाधि ली। सत्यार्थी कहते हैं, 'मेरा मानना है कि आपको किसी देश को समझना हो तो सबसे पहले आपको उसके आर्ष साहित्य का ज्ञान होना चाहिए। मैं देश की बहुत सी भाषाएं सीखना चाहता था। लेकिन कामकाज की व्यस्तताओं में ऐसा हो नहीं पाया। इसका मुझे अफसोस भी है। वेद ऋचाएं हमें आदर्श जीवन पद्धति सिखाती हैं। संस्कृत पढ़ने से मैं वेद और वेदांत को बेहतर समझ पाया हूं।'

शायद ही ऐसा कोई मंच हो जहां से दिए अपने भाषण में सत्यार्थी ने वेद ऋचाएं न पढ़ी हों। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद अपने धन्यवाद भाषण की शुरुआत और समापन दोनों ही वेद मंत्रों से किया था। यहां तक कि कई इस्लामिक मंचों से भाषण के दौरान भी उन्होंने भारतीय परंपरा और दर्शन का हवाला देने के लिए मंत्रों का पाठ किया है।

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