राष्ट्रीय

Mahua Moitra cash for Query Case: क्या महुआ मोइत्रा को वापस मिल सकती है सांसदी? जानें क्या हैं कानूनी विकल्प

Special Coverage Desk Editor
8 Dec 2023 10:04 PM IST
Mahua Moitra cash for Query Case: क्या महुआ मोइत्रा को वापस मिल सकती है सांसदी? जानें क्या हैं कानूनी विकल्प
x
Mahua Moitra cash for Query Case: कैश और गिफ्ट के बदले सवाल पूछने के मामले में लोकसभा की सदस्यता गवां बैठी तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा देश के किसी भी हाईकोर्ट या सर्वोच्च अदालत में रिट याचिका दाखिल कर सकती हैं.

Mahua Moitra cash for Query Case: कैश और गिफ्ट के बदले सवाल पूछने के मामले में लोकसभा की सदस्यता गवां बैठी तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा देश के किसी भी हाईकोर्ट या सर्वोच्च अदालत में रिट याचिका दाखिल कर सकती हैं. मोइत्रा नैसर्गिक न्याय के उल्लंघन समेत विभिन्न आधारों पर लोकसभा से उनकी सदस्यता खारिज करने के फैसले को शीर्ष न्यायपालिका में चुनौती दे सकती हैं. अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट न्यायिक समीक्षा कर सकता है.

कानूनविदों के अनुसार निजी अधिकारों के हनन के आधार पर कोई भी व्यक्ति हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है. ऐसे में उसे अदालत के समक्ष अपनी दलीलों और दस्तावेजों से यह साफ करना होगा कि सदन की अमुक कार्यवाही में पक्ष रखने का सही से मौका नहीं दिया गया. जांच राजनीति से प्रेरित है, जांच की प्रक्रिया में खामियां हैं या फिर झोल है. अगर ऐसे तमाम आधार मोइत्रा के पास हैं तो उनके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का मौका अभी शेष है. सदस्यता खारिज करने से इतर अगर अभियोग चलाया जाता है तो ऐसे में सर्वोच्च अदालत पहले से ही सीता सोरेन के एक अहम मामले में विचार कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में दी जा सकती है चुनौती

संविधानविद् ज्ञानंत सिंह, सुप्रीम कोर्ट के वकील अनुपम मिश्रा के मुताबिक रिट याचिका में सदस्यता खारिज करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. यह अदालत के विवेक पर है कि मोइत्रा कि याचिका पर वह कोई हस्तक्षेप करती है या नहीं, क्योंकि विधायिका के क्षेत्राधिकार में सदन के सभापति का फैसला अंतिम होता है, लेकिन जब बात नैसर्गिक न्याय और किसी व्यक्ति के खिलाफ चलायी गई प्रक्रिया में खामी हुई हो तो अदालत रिट याचिका में सुनवाई कर सकती है. अभियोजन का मसला अलग है. गत सितंबर में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ संसद और राज्य विधानसभाओं में वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए सांसदों और विधायकों को दी गई अभियोजन से छूट के संबंध में सुनवाई पर सहमत हुआ है.

1998 का वो फैसला

कानूनविदों के मुताबिक सात जजों की पीठ 1998 के उस फैसले पर विचार करेगी, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम के सांसदों के खिलाफ रिश्वतखोरी का मामला खारिज कर दिया गया था, क्योंकि संविधान अनुच्छेद 105(2) में कहा गया है कि संसद की कार्यवाही पर कोई भी सदस्य किसी भी बात के संबंध में अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा. कानूनविद् कहते हैं कि 2007 का राजा रामपाल मामले के फैसले ने स्थितियां पलट दी, जिन पर भी 7 जजों की पीठ गौर करेगी। यह स्पष्ट है कि अब सुप्रीम कोर्ट अपने 25 साल पुराने (1998) फैसले की फिर से जांच करने पर सहमत हो गया। जहां पांच न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया था. 1998 में पांच जजों की संविधान पीठ ने माना था कि सांसदों को अभियोजन से छूट है, भले ही सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव में नरसिम्हा राव सरकार के पक्ष में वोट करने के लिए पैसे लिए हों.

2007 का राजा रामपाल मामला

हालांकि 2007 में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने राजा रामपाल के मामले में फैसला सुनाया कि जो लोग संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसे लेते हैं, उन्हें सदन से स्थायी रूप से निष्कासित किया जा सकता है. इस मामले में स्पष्टता न होने की वजह से भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले को सात-न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया. ऐसे में अगर अभियोग शुरू किया गया तो भी मोइत्रा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं. वह इस मामले में हाईकोर्ट में भी रिट दायर कर सकती हैं, लेकिन चूंकि पिछले फैसले सर्वोच्च अदालत से जुड़े हैं। ऐसे में उनके लिए बेहतर विकल्प सुप्रीम कोर्ट ही होगा.

सीता सोरेन के मामले में ये हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने जब सीता सोरेन के मामले को सात जजों की पीठ के समक्ष भेजने का निर्णय लिया. उस पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने पीठ से कहा था कि मौजूदा मामले में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह मामला राजनीति की नैतिकता से संबंधित है. ऐसे में कानून को सही करने का मौका नहीं चूकना चाहिए. जब भी विरोधी विचारों में टकराव हो तो कानून को सही तरीके से स्थापित किया जाना चाहिए. यह मामला झारखंड की विधायक सीता सोरेन से संबंधित है, जिन पर 2012 के राज्यसभा चुनावों में मतदान के लिए कथित रूप से रिश्वत लेने के लिए सीबीआई द्वारा मुकदमा चलाया गया था.

नई नहीं है मोइत्रा की कहानी

कानूनविद् के मुताबिक मोइत्रा की कहानी नई नहीं है, क्योंकि ऐसे मामले पहले भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आए हैं. सीता सोरेन से पहले उनके अपने ससुर और झामुमो नेता शिबू सोरेन को 1998 के संविधान पीठ के फैसले से बचा लिया गया था, जिसमें कहा गया था कि पैसे लेकर राव सरकार के पक्ष में मतदान करने वाले सांसदों को अभियोजन से छूट दी गई थी. हालांकि, इसने फैसला सुनाया था कि जिन लोगों ने झामुमो सांसदों को रिश्वत दी थी, वे अभियोजन से प्रतिरक्षित नहीं थे. गौरतलब है कि अनुच्छेद 105(2) में साफ है कि संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरूद्ध संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.

Next Story