राष्ट्रीय

मनरेगा के नए नियम और एसआईआर के तहत कटते नाम – खतरे का संकेत?

Shiv Kumar Mishra
19 Dec 2025 10:52 AM IST
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मनरेगा से संबंधित चर्चा में कई मुद्दे आए हैं – गोदी मीडिया इनपर चर्चा क्यों नहीं करता?

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 में लागू हुआ था, जो भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के रूप में लोकप्रिय हुआ। पहले इसका नाम नरेगा था बाद में मनरेगा हुआ।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में इसके बारे में कहा था, मनरेगा बंद नहीं होगा, क्योंकि यह कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक है। अब उसमें जो संशोधन किए गए हैं और नया नाम रखा गया है उससे यह बंद ही होगा पर अभी वह मुद्दा नहीं है। अभी जो मुद्दा है वह इसके नाम से महात्मा गांधी का नाम हटाना और ऐसा नाम रखना कि यह संक्षेप में वीबी जी राम जी हो गया है। इसके लिए, नाम को अंग्रेजी हिन्दी मिलाकर बनाया गया है। नाम ऐसा है कि इसे वीबी जी राम जी ही कहना पड़ेगा। पूरा नाम इस तरह है – “विकसित भारत- गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण): VB-G RAM G बिल 2025” नाम रखा गया है। इस तरह सुनिश्चित किया गया है इसे VBGRAMG विधेयक के रूप में छोटा नहीं किया जा सकता है। तथ्य यह है कि किसी संसदीय बिल का नाम शायद ही कभी शॉर्ट फॉर्म में पूरे नाम के साथ कोष्ठक के बजाय कोलन से जोड़ा गया है – इससे यह नाम का ही हिस्सा बन गया है। इस तरह यह पक्का किया गया है हर कोई इसे स्वीकृत तरीके से ही लिखे-बोले। यही नहीं, नाम के संक्षिप्त रूप में स्पेस शायद ही कहीं दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट अपने मुख्य जॉब प्रोग्राम के पीछे के कानून को “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)” बताती है।


एनडीटीवी की एक पुरानी खबर के अनुसार, मनरेगा के बारे में नरेन्द्र मोदी ने कहा था और मैं पढ़ रहा हूं, कोट "मेरी राजनैतिक सूझबूझ कहती है, मनरेगा कभी बंद मत करो... मैं ऐसी गलती कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है... आज़ादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा... यह आपकी विफलताओं का स्मारक है, और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा... दुनिया को बताऊंगा, ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 सालों के पापों का परिणाम हैं... इसलिए मेरी राजनैतिक सूझबूझ पर आप शक मत कीजिए... मनरेगा रहेगा, आन-बान-शान के साथ रहेगा, और गाजे-बाजे के साथ दुनिया में बताया जाएगा... हां, एक बात और ज़रूरी है, क्योंकि मैं देशहित के लिए जीता हूं और इससे देश का अधिक भला कैसे हो, उन गरीबों का भला कैसे हो, उसके लिए इसमें जो जोड़ना पड़ेगा, हम जोड़ेंगे..." अनकोट

अगर मनरेगा पहले की सरकार की विफलताओं का स्मारक है और इसे बंद नहीं किया जाना था तो बीच के वर्षों में जो सब हुआ वह बंद करना ही है। कम से कम बंगाल में तो बंद ही है। वहां साल 2019 में जो हुआ उसके बाद भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्र ने ना केवल आगे का बजट रोक दिया, बल्कि हजारों मजदूरों की बकाया मजदूरी भी जारी नहीं की गई है। भ्रष्टाचार मजदूरों ने नहीं किया, जिन्होंने किया उन पर कोई कार्रवाई हुई कि नहीं पता नहीं, लेकिन दंडित मजदूरों को होना पड़ा। दूसरी ओर, नोटबंदी से लेकर जीएसटी, एफसीआरए की शर्तें, बैंकों में खाता खोलने की शर्तें और न्यूनतम बचत आदि के नियम से देश का भला होता होगा, नागरिक तो परेशान हैं। बेरोजगारी एक उदाहरण है लेकिन सुनवाई कहां है। मनरेगा में तो लोग काम करके खाते थे मुफ्त राशन देने की मजबूरी किसका स्मारक है। रेवड़ी का विरोध करते-करते नकद बांटने लगे वह अलग कहानी है। अभी यह मुद्दा नहीं है लेकिन सच है।


तथ्य है कि मनरेगा केंद्र सरकार की योजना थी, मोदी सरकार ने उसे ढंग से चलने नहीं दिया। कम से कम 100 दिन काम की गारंटी थी पर औसतन 51 दिन ही काम मिलने की खबर है उसमें भी कई राज्यों के पैसे बकाया हैं या समय पर नहीं दिए गए। अभी तक पैसे केंद्र सरकार देती थी। अब काम की गारंटी तो 125 दिन कर दी गई है लेकिन गारंटी से सरकार का काम चलता होता तो बिहार में 10,000 रुपए का एडवांस भुगतान क्यों करना पड़ता उसके लिए चुनाव आयोग के आंख-कान-मुंह पर पट्टी नहीं बांधनी पड़ती। लेकिन वह अलग मुद्दा है।

नाम बदलने और किए गए बदलाव के समर्थन में कहा जा रहा है कि पहले इसमें भ्रष्टाचार की गुंजाइश थी - मुझे लगता है कि संशोधन के बाद भी है और अब जब पैसा राज्य सरकार को देना है तो डबल इंजन वाले राज्यों में मिल बांट कर खाने की अच्छी और ज्यादा गुंजाइश है लेकिन वह अलग मुद्दा है।

3 मार्च 2016 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में कांग्रेस की आलोचना करते हुए नरेन्द्र मोदी ने मनरेगा के कार्यान्वयन में खराबी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को स्वीकार किया था।

तब विपक्ष ने कहा था कि प्रधानमंत्री ने मनरेगा जैसी योजना में भ्रष्टाचार स्वीकार कर लिया है या इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया।

दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक में भी भ्रष्टाचार की शिकायत थी और और शिकायत तो दिल्ली के स्कूलों में कमरों के निर्माण को लेकर भी थी। सारी योजनाएं ठंडे बस्ते में चली गईं लेकिन सड़कें बन रही हैं क्या उनमें कोई भ्रष्टाचार नहीं है? किसी नए वीएन राय ने मोहल्ला क्लिनिक में 65,000 से अधिक “घोस्ट (नकली) मरीजों” के नाम पर फर्जी लैब टेस्ट किये जाने जैसे मामले बनाए थे, इनके फोन नंबर नहीं थे – ठीक है ऐसा हो सकता है लेकिन जब इलाज फ्री है, जो आए उसका इलाज होना है तो सबकी पहचान नहीं ली जा सकती है। और भ्रष्टाचार न हो यह सुनिश्चित करना होगा। इस सरकार ने केवाईसी का नया नियम लागू किया है। उससे जो मुसीबत है वह अपनी जगह है और सरकार को उससे मतलब नहीं है लेकिन मतदाता सूची में नाम के मामले में फोन नंबर, फोटो तो छोड़िए – पिता का नाम और मकान नंबर तक होना जरूरी नहीं है। मोदी सरकार जो करे वह सही, दूसरी सरकारें जो करें वह गलत – इस पर भी अलग बात हो सकती है और अभी मुद्दा नहीं है।

नागरिकों को काम देने के लिए आधार और मतदाता सूची को आवश्यक कर दिया जाए तो लाखों लोगों को काम नहीं मिलेगा और अब जिस ढंग से एसआईआर हो रहा है, मतदाता सूची से नाम हटाए जा रहे हैं और आधार से नागरिकता प्रमाणित नहीं होती है तो भविष्य में जो होने वाला है उसका अंदाजा इस बदलाव से लगता है।

हालांकि, नए बिल का उद्देश्य पिछले 100 दिन के रोजगार की गारंटी को 125 दिनों तक बढ़ाना बताया जा रहा है।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कहा है कि यह प्रस्ताव मनरेगा को कमजोर करेगा और रोजगार के अधिकार को घटा देगा।

दूसरी ओर

✔️ बजट में कमी और भुगतान में देरी जैसे मुद्दे उठाए गए हैं। The Economic Times

✔️ नए विधेयक से रोजगार क़ानूनी “गारंटी” से हटकर नीति/परियोजना के रूप में बदलने का डर है।

📌 केंद्रीय बजट आवंटन पर सवाल उठ रहे हैं कि वह ग्रामीण रोजगार की बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर रहा। The Economic Times

🔹 मोदी शासन ने मनरेगा को जारी रखा है, लेकिन अब इसे बदलकर नये नाम/कानून के तहत लागू करने की प्रक्रिया तेज़ है। यह नाम रखने, सोचने, ढूंढ़ने में देरी के कारण भी हो सकता है।

🔹 यह बदलाव नीति, गारंटी के ढांचे और बजटीय जिम्मेदारियों को बदल सकता है (जैसे केंद्र-राज्य वित्त साझेदारी) — जिसे लेकर विपक्ष नाराज़ हैं।

🔹 राजनीतिक और सामाजिक बहस मुख्य रूप से रोज़गार गारंटी की स्थिरता, नाम/इतिहास के सरंक्षण और ग्रामीण कार्यकर्ताओं के अधिकार के इर्द-गिर्द घूम रही है।

Feb 18, 2025

मनरेगा: बिहार के 20 लाख परिवारों का 1131 करोड़ रुपये मजदूरी बकाया

May 18, 2025

बिहार के 12 लाख से ज्यादा मनरेगा मजदूरों को राहत; जल्द मिलेगा बकाया वेतन, केंद्र ने जारी किए 2102 करोड़

खबरों से यह पता नहीं चला है कि भुगतान हो गया कि नहीं और काम चल रहा है कि नहीं या क्या स्थिति है।

Jul 18, 2025

हाईकोर्ट ने केंद्र को 1 अगस्त से बंगाल में MGNREGA फिर से शुरू करने का आदेश दिया, सत्तारूढ़ TMC ने कहा कि राज्य सरकार सही साबित हुई। लेकिन काम शुरू होने के बारे में खबर नहीं मिली।

आइए अब यह भी देख लें कि केंद्र ने कुल कितने फंड जारी किए हैं

राज्यसभा में लिखित उत्तर के अनुसार

🔹 FY 2025-26 (अब तक): केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत ₹68,393.67 करोड़ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जारी किए हैं। इसमें से ₹57,853.62 करोड़ मज़दूरी (wage) के लिए, ₹10,540.05 करोड़ सामग्री व प्रशासन के लिए है।

📌 इसके लिए कुल बजट ₹86,000 करोड़ निर्धारित था — यानी अब तक लगभग 80% राशि जारी हो चुकी है।

💰 2) केंद्र की बकाया देयताएँ (Pending Liabilities) — राज्यवार देंखें तो

संसद में सरकार के जवाब के अनुसार (November 26, 2025 तक) ⬇️

💠 कुल बकाया देयता: लगभग ₹10,127.58 करोड़ — जिसमें मजदूरी, सामग्री और प्रशासन के हिस्से शामिल हैं।

📉 3) राज्यों ने केंद्र से बड़ी बकाया माँगी है

✔️ West Bengal पर केंद्र सरकार का कहना है कि वहाँ तक फंड रोक दिए गए हैं और वे ₹3,000+ करोड़ के आसपास बकाया हैं (लोकसभा/राज्यसभा में बताया गया)।

✔️ Bihar ने केंद्र से ₹3,257.49 करोड़ मजदूरों के भुगतान के लिए कहा है (PMAY-G व MGNREGA के साथ कुल ₹7,748.49 करोड़ मांग)

✔️ Punjab + Haryana को लगभग ₹376.6 करोड़ का बकाया बताया गया (मज़दूरी व सामग्री सहित)।

मजदूरों का बकाया भुगतान — स्थिति क्या है?

बिहार खबरों के अनुसार,

🔸 करीब 20 लाख परिवारों की मजदूरी का ₹1,131 करोड़ बकाया था (कुछ महीने पहले की स्थिति), हालांकि केंद्र ने बाद में ₹2,102 करोड़ जारी किए।

🔸 पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि मजदूरों का बड़ा हिस्सा बकाया है, और उन्हें ₹3,000 करोड़+ का भुगतान केंद्र से चाहिए; केंद्र से विवाद के कारण फंड रोके गए हैं।

🔸 संसद में उठाये गए सवालों के अनुसार, दोनों राज्यों को बकाया भुगतान/डेले की शिकायतें हैं।

– केरल में महंगाई-अनुपात और तीन महीने के बकाया का मुद्दा उठा।

– तमिलनाडु ने ₹4,034 करोड़ तक के देय भुगतान की बात कही है।

📌 5) केंद्र का रुख

अधिकारियों का कहना है:

✔️ मनरेगा एक demand-driven योजना है — काम के अनुरोध के आधार पर फंड रिलीज़ होता है।

✔️ देरी पर ब्याज (0.05%/दिन) लागू होता है |

✔️ केंद्र का दावा है कि हर राज्य को प्रतिबद्धता अनुसार फंड जारी किया गया है और प्राथमिकता से भुगतान किया जाता है।

--- समाप्त ----

📍 बकाया (pending liabilities): ~₹10,127 करोड़ (केंद्र राज्यों को बकाया)

➤ बकाया LIABILITY (मुख्य राज्यवार आंकड़े)

राज्य / UT मजदूरी (Wage) बकाया सामग्री/वर्क (Material) प्रशासन (Admin)

Andhra Pradesh ₹381.02 करोड़ ₹530.45 करोड़ ₹27.51 करोड़

Kerala ₹248.42 करोड़ (नहीं स्पष्ट अलग) —

Mizoram ₹91 करोड़ — —

Madhya Pradesh ₹64.14 करोड़ ₹655.03 करोड़ —

Gujarat ₹46.98 करोड़ ₹668.80 करोड़ —

Uttar Pradesh — ₹1,007.58 करोड़ —

Rajasthan — ₹880.00 करोड़ —

Maharashtra — ₹668.80 करोड़ —

अन्य राज्यों का उल्लेख नहीं — — —

(ध्यान दें: कई राज्यों के लिए अलग-अलग घटक अलग से नहीं दिए गए)

Business Standard

📌 West Bengal के लिए कोई बकाया LIABILITY नहीं दिखती, क्योंकि वहां 2022 से फंड जारी नहीं किए जा रहे हैं (केंद्र-राज्य विवाद के कारण)।

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