
बिहार में नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता,जानिए क्या है कारण

एक समय था जब बिहार में जंगलराज व्याप्त था। चोरी, डकैती, अपहरण, रंगदारी बिहार की पहचान हुआ करती थी। बिहार में निवेश तो दूर लोग जाना भी पसंद नहीं करते थे खराब कानून व्यवस्था से लोगों का जीवन दूभर हो गया था। शाम ढलते ढलते लोग बाजार जाना बंद कर देते थे ग्रामीण इलाकों की दशा और भी बुरी थी। नेता खुलेआम बाहुबलियों के साथ माफियाओं के साथ गलबहियां करते नजर आते थे। विकास तो दूर के ढोल सुहावने हो गए थे टूटी सड़कें खराब शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था की तो और भी बुरी दशा थी। यह समय लालू प्रसाद यादव के समय का दौर था और उनकी पत्नी जो बाद में मुख्यमंत्री बनी फिर भी यह दौर चला आ रहा था। ऐसे समय में 2005 के विधानसभा चुनाव होते हैं और नीतीश कुमार प्रचंड बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनते हैं। बिहार के लोगों में सर चढ़ कर नीतीश कुमार की लोकप्रियता बोल रही थी। अपराधियों का नक्सलियों का एनकाउंटर हो रहा था। अपराधी सरेंडर कर रहे थे। माफिया हों या नेता सभी के लिए जेले खुल चुकी थी अपराध करने पर कोई बख्शा नहीं जा रहा था। चाहे शहाबुद्दीन हों या सूरजभान कानून का राज पूरी तरह से कायम हो चुका था । बिहार में विकास हो रहा था, सड़कों का जाल बिछ रहा था, अपराधमुक्त बिहार बनाने की तरफ नीतीश सरकार बढ़ रही थी।
शायद यही कारण रहा की 2010 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार फिर से सत्ता में वापसी करते हैं और अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराते हैं। लेकिन बिहार के लोगों की मानें तो नीतीश कुमार के काम में अब वो दम नहीं रह गया था जो उनके पहले कार्यकाल में था। शिक्षा हो या स्वास्थ्य व्यस्था अब पहले जैसी नहीं रह गई थी, हां कुछ एक-दो जगहें जरूर थीं जहां पर सुधार हुआ लेकिन बाकी सभी जगहों पर पहले कार्यकाल जैसी स्थिति नहीं रह गई।
फिर आता है 2015 का विधानसभा चुनाव इस चुनाव में नीतीश की लोकप्रियता घट गई और उनकी पार्टी जेडीयू दूसरे नंबर की पार्टी बन गई, जबकि पहले नंबर पर लालू की आरजेडी कायम हो गई। नीतीश की घटती लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां पिछले दो चुनावों में उनकी पार्टी को जबरदस्त बहुमत मिला तो वहीं 2015 के चुनाव में उनकी पार्टी दूसरे नंबर पर आ गई और मजबूरी में उनको आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। नीतीश की हताशा कहिए या अतिमहत्त्वाकांक्षा की उन्होंने गठबंधन की इस सरकार को गिरा दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली।
नीतीश के 2015 के कार्यकाल में उनके ऊपर बहुत से आरोप लगे, जिसमें मुख्यरूप से परीक्षाओं के पेपर लीक होने की घटनाएं आम थीं। चाहे वह दरोगा पेपर लीक का मामला हो या पुलिस भर्ती में धांधली की घटना। युवाओं का नीतीश पर से भरोसा अब उठता जा रहा था। बेरोजगारी बिलकुल चरम पर थी , बेरोजगारी को कम करने में नीतीश की कोई खास दिलचस्पी नही थी। विश्विद्यालयों की परीक्षाएं समय पर नहीं होती हैं। सत्र हमेशा से ही देर चलता है।
देखते ही देखते 2020 का विधानसभा चुनाव भी आ गया और इस चुनाव में नीतीश की लोकप्रियता मे जबरदस्त गिरावट देखने को मिली और उनकी सत्तासीन पार्टी जेडीयू तीसरे नंबर पर आ गई, हालत यह हो गई कि नीतीश ने खुद कह दिया की (बीजेपी जोकि जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी) चाहे तो खुद अपना मुख्यमंत्री बना ले। लेकिन बीजेपी ने अपने चुनाव पूर्व किए वायदे पर कायम रहती है और नीतीश को मुख्यमंत्री बनाती है।लेकिन देखा जाए तो उनके इस कार्यकाल में भी पेपर लीक की घटनाओं पर कोई अंकुश नहीं लगा है और इसका हालिया उदाहरण है बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) का पेपर लीक हो जाना। इस पेपर लीक की घटना ने नीतीश सरकार की खूब किरकिरी करवाई और उनको पेपर को रद्द करने पर विवश कर दिया। अपनी घटती लोकप्रियता की वजह से ही नीतीश ने बिहार में जाति आधारित जनगणना कराने की मांग कर डाली क्योंकि उनको पता है कि बिहार राज्य में सवर्ण उनको पसंद नहीं करते, ओबीसी और दलित ही उनके वोट बैंक हैं तो अगर हम जाति आधारित जनगणना की मांग करेंगे तो ओबीसी और दलित बढ़ चढ़कर हमारे साथ आ जायेगा। लेकिन उनकी इस मांग को बीजेपी ने खारिज कर दिया।
नि:संदेह उन्होंने बिहार को आरडेजी के जंगल राज से बाहर निकाला और कानून-व्यवस्था में सफलतापूर्वक सुधार किया लेकिन विकास के मोर्चे पर उनका ग्राफ निराशाजनक ही है। बिहार अब भी नए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए नए निवेश की प्रतीक्षा कर रहा है। बिहार के युवा रोजी-रोटी की तलाश में अब भी देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर रहे हैं. जाति-आधारित जनगणना पहले से ही जाति के आधार पर बुरी तरह विभाजित बिहार के समाज को और विभाजित कर सकती है। यह नीतीश कुमार और लालू यादव जैसों के अलावा तीसरे किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं होगा क्योंकि ये दोनों नेता अपने समर्थन करने वाली जातियों की जातिगत जनगणना के माध्यम से पहचान कर सकेंगे और उनके लिए काम करेंगे ताकि इनके घटते वोट बैंक को थोड़ा सहारा मिल सके।
इन्हीं सब कारणों की वजह से नीतीश कुमार अब जनता में उतने लोकप्रिय नहीं रह गए हैं,जीतने की पहले हुआ करते थे।
Satyapal Singh Kaushik
न्यूज लेखन, कंटेंट लेखन, स्क्रिप्ट और आर्टिकल लेखन में लंबा अनुभव है। दैनिक जागरण, अवधनामा, तरुणमित्र जैसे देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वर्तमान में Special Coverage News में बतौर कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।




