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किसी ने नहीं बताया, आख़िर कश्मीर की याद कैसे आई?

Shiv Kumar Mishra
25 Jun 2021 11:29 AM GMT
किसी ने नहीं बताया, आख़िर कश्मीर की याद कैसे आई?
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संजय कुमार सिंह

आज की खबर तो जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करने की प्रधानमंत्री की कोशिश ही है। एक दिन अचानक जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद स्थानीय नेताओं को जेल में बंद करके सबसे लंबे समय का इंटरनेट प्रतिबंध चलाने और दो साल तक कश्मीर को लगभग जेल बनाकर रखने के बाद अब बातचीत का ख्याल क्यों आया इसपर आज के अखबारों में कोई अटकल भी नहीं है। बताने का तो रिवाज भी खत्म हो गया लगता है। ऐसी हालत में जब प्रधानमंत्री ने उनलोगों से बात की जिन्हें केंद्रीय गृहमंत्री ने खुद गुपकर गैंग कहा था तो अखबारों में कुछ विविधता होने की उम्मीद थी। पर जो है वह बिल्कुल निराशाजनक। द टेलीग्राफ को छोड़कर बाकी सब में सरकार की सफलता और सद्भावनापूर्ण माहौल की चर्चा है।

आइए, शीर्षक और रेखांकित खास बातों से यह समझने की कोशिश करें कि मकसद क्या हो सकता है। मेरा मानना है कि यह उत्तर प्रदेश चुनाव की तैयारी है। जो करना था, जैसे करना था कर दिया गया। मामला दो साल से सुप्रीम कोर्ट में है और राज्य में चुनाव करवाना सरकार की मजबूरी है। हालांकि, माना जाता है कि कश्मीर के मामले में भारत की कोई भी सरकार कभी भी मजबूर नहीं रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में जीतना एक सूत्री लक्ष्य हो सकता है। अखबार 'सरकार' के ऐसे इरादों को पूरा करने में रोड़ा नहीं बनते और अभी तो टीके के लिए प्रधानमंत्री जी को बधाई वाले विज्ञापनों से लाखों का 'दान' भी मिला है। इसलिए जो, जैसे छपा है उससे भी बहुत कुछ समझा जा सकता है।

1.हिन्दुस्तान टाइम्स

केंद्र ने जम्मू और कश्मीर चुनाव के लिए दरवाजे खोल दिए। राजनेताओं के साथ पहली राजनीतिक बैठक सद्भावनापूर्व माहौल में हुई। इसके साथ दो कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, कोई समझौता नहीं जम्मू व कश्मीर की पार्टियों ने कहा कि 370 की वापसी पर कोई ढिलाई नहीं। इसके साथ तीन कोट हैं तीनों की फोटो के साथ। पहला नरेन्द्र मोदी का, सरकार दिल्ली की दूरी के साथ-साथ दिल की दूरी कम करना चाहती है। दूसरा है, उमर अब्दुल्ला का, हमलोंगों ने प्रधानमंत्री से कहा कि हम अनुच्छेद 370 के साथ जो किया गया उसके साथ नहीं हैं। हम इससे अदलत मे लड़ेंगे। यहां तीसरा कोट, महबूबा मुफ्ती है। उन्होंने कहा है, जम्मू और कश्मीर के लोग संवैधानिक, लोकतांत्रिक ढंग से लड़ेंगे … हम अनुच्छेद 374 बहाल करेंगे। ऐसे में आप सद्भावनापूर्ण माहौल में हुई बातचीत का लाभ समझ सकते हैं। लेकिन इस बारे में लिखा किसी ने नहीं है।

2. टाइम्स ऑफ इंडिया

प्रधानमंत्री ने जम्मू और कश्मीर में शीघ्र चुनाव करवाने की तैयारी की, शीघ्र परिसीमन के लिए सहायता मांगी।

3.इंडियन एक्सप्रेस

प्रधानमंत्री ने कहा, पहले चुनाव राज्य का दर्जा बाद में। पार्टियों ने सरकार के कदम का स्वागत किया। पीडीपी ने अनुच्छेद 370, पाकिस्तान के साथ व्यापार की बात की। अन्य पार्टियों ने राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग की।

4.द हिन्दू

प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर में परिसीमन के प्रयास और जमीनी स्तर के लोकतंत्र का समर्थन किया। राजनीतिक नेताओं के साथ अपनी तरह की पहली बैठक सद्भावनाबपूर्ण माहौल में हुई।

5.द टेलीग्राफ

परेशान और अपमानित किए जाने के बाद बड़े लोगों से वार्ता – अखबार ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के 17 नवंबर 2020 (अनुच्छेद 370 खत्म करने के एकतरफा, मनमाने फैसले के एक साल से भी ज्यादा बाद) के एक ट्वीट का हवाला दिया है जिसमें उन्होंने कश्मीरी नेताओं के इसी समूह को गुपकर गैंग कहा था और फिर 24 जून को कल की बैठक के बाद आधिकारिक तौर पर जो कहा गया उसमें कोई तालमेल नहीं है। और खबर यही है। इतना ही नहीं, अखबार ने कल पीएमओ द्वारा ट्वीट की गई फोटो में लोगों की पहचान के साथ बताया है कि कौन कितने दिन जेल में रहा। इस तरह खबर में बताया गया है कि दिल की दूरी कम करने की बातों से उलट इस बैठक में यह आश्वासन भर दिया गया कि परिसीमन के प्रयास में सहयोग किया गया तो राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।

इसके बावजूद बैठक में भाग लेने वाले खुश लगे क्योंकि वे प्रधानमंत्री से वह सब कह सके जिसके लिए लोगों को रोज जेल में डाल दिया जाता है। कहने की जरूरत नहीं है कि इन्हें राजनीतिक हाशिए पर कर दिया गया था और जेल में रखा गया। कल सबको प्रधानमंत्री के साथ खड़े होने और बैठने का मौका मिला। बाद में नरेन्द्र मोदी ने भी अपने ट्वीट में इन्हें जम्मू और कश्मीर के लोगों का नेता कहा। अखबार ने लिखा है, प्रधानमंत्री ने किसी छूट की पेशकश नहीं की और परिसीमन तथा विकास पर केंद्रित रहे। परिसीमन जम्मू कश्मीर में भाजपा का बचा हुआ अंतिम एजंडा है। स्पष्टतः इसके जरिए वह जम्मू के हिन्दू बहुल क्षेत्रों के पक्ष में काम करना चाहती है।

इसके अलावा, आज द हिन्दू के पहले पन्ने की दो खबरो में डेमोक्रेसी शब्द आया है। पहली बार तो कश्मीर वाली खबर में जब प्रधानमंत्री एकदम निचले स्तर के लोकतंत्र की बात करते हैं और दूसरी बार किसान आंदोलन के संबंध में। खबर का शीर्षक है, "किसान लोकतंत्र बचाओ दिवस मनाएंगे।" इसके तहत देश भऱ में सभी राजभवनों पर प्रदर्शन किया जाएगा और इमरजेंसी के 46 वर्ष पूर्ण होने को याद किया जाएगा।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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