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राष्‍ट्रीय वायु गुणवत्‍ता मानकों पर खरा उतरने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का मज़बूत होना ज़रूरी

Shiv Kumar Mishra
3 Nov 2020 7:29 AM GMT
राष्‍ट्रीय वायु गुणवत्‍ता मानकों पर खरा उतरने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का मज़बूत होना ज़रूरी
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इंसान की सेहत की सुरक्षा का ही सवाल था कि हमें यह कानून बनाने पड़ी। इनके लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य को नीति निर्धारण के केंद्र में रखना होगा।’’

नयी दिल्‍ली : भारत में वायु प्रदूषण के विकराल होते परिणामों के बीच एक ताजा अध्‍ययन में खुलासा हुआ है कि इस पर नियंत्रण के लिये जिम्‍मेदार केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) तथा राज्‍यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बजट और तकनीकी दक्षता के गम्‍भीर अभाव से जूझ रहे हैं। इन इकाइयों के मूल लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिये अत्‍यधिक पेशेवर रवैया अपनाने के साथ-साथ हालात की वास्‍तविकता समझने और उसके समाधान निकालने के लिये तकनीक और प्रौद्योगिकी में दक्ष लोगों को जिम्‍मेदारी दिये जाने की जरूरत है।

दिल्‍ली स्थित सेंटर फॉर क्रॉनिक डिसीस कंट्रोल (सीसीडीसी) ने आज एक नयी रिपोर्ट जारी की। 'स्‍ट्रेंदेनिंग पॉल्‍यूशन कंट्रोल बोर्ड्स टू अचीव द नेशनल एम्बिएंट एयर क्‍वालिटी स्‍टैंडर्ड्स इन इंडिया' (भारत में राष्‍ट्रीय वातावरणीय वायु गुणवत्‍ता मानकों पर खरा उतरने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को मजबूत करना) विषय वाली इस रिपोर्ट में पूरे देश में नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स (एनएएक्‍यूएस) के लक्ष्यों को हासिल करने में आ रही संस्थागत और सूचनागत बाधाओं को समझने की कोशिश की गई है। साथ ही उन्हें दूर करने के उपाय भी सुझाए गए हैं। अध्ययन के मुताबिक राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले दो दशक के दौरान भले ही अपने दायरे को विस्तृत कर लिया हो और अपने काम को बढ़ा लिया है लेकिन उनके पास इतना बजट और कर्मचारी नहीं है कि वे इसे ठीक से संभाल पाएं।

इस अध्ययन के लिए प्राथमिक अनुसंधान का काम देश के आठ चुनिंदा शहरों में किया गया। इनमें लखनऊ, पटना, रांची, रायपुर, भुवनेश्वर, विजयवाड़ा, गोवा और मुंबई शामिल हैं। इस दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और संबंधित राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के प्रतिनिधियों तथा सदस्यों से गहन बातचीत की गई। इसके अलावा एक व्यापक परिप्रेक्ष्य हासिल करने के लिए अधिकारियों, शिक्षा जगत से जुड़े लोगों, पर्यावरण विदों तथा सिविल सोसायटी के सदस्यों से भी इस सिलसिले में व्यापक चर्चा की गई।

एनवायरमेंटल हेल्थ की प्रमुख और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल हेल्थ की उपनिदेशक डॉक्‍टर पूर्णिमा प्रभाकरण ने कहा ''वायु प्रदूषण के अत्यधिक संपर्क में रहना भारत में सेहत के लिए जोखिम पैदा करने वाला सबसे बड़ा कारण है। सिर्फ पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) और ओजोन के संपर्क में आने से ही हर साल 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। भारत ने हवा की गुणवत्ता के स्वीकार्य न्यूनतम मानकों को हासिल करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए अंतरिम लक्ष्यों के अनुरूप खुद अपने राष्ट्रीय वातावरणीय वायु गुणवत्ता मानक (एनएनएक्यूएस) तैयार किए हैं। भारत में वायु गुणवत्ता संबंधी मानक वैश्विक मानकों के मुकाबले कम कड़े हैं, मगर इसके बावजूद हिंदुस्तान के ज्यादातर राज्य इन मानकों पर भी खरे नहीं उतर पाते। ऐसे में वायु गुणवत्ता में सुधार की योजनाओं को जमीन पर उतारने में व्याप्त खामियों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।

अध्ययन में अनेक प्रमुख ढांचागत तथा संस्थागत बाधाओं का खुलासा हुआ है, जिनकी वजह से पहले से ही स्थापित नियमों पर प्रभावी अमल नहीं हो पा रहा है और ना ही हवा की गुणवत्ता के मानकों को व्यापक रूप से हासिल किया जा पा रहा है। इनमें से मुख्य बाधाएं इस प्रकार हैं-

संस्थागत क्षमता- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दायरे और कार्य में पिछले दो दशकों के दौरान विस्तार देखा गया है लेकिन उनके पास इसे संभालने के लिए न तो बजट है और ना ही पर्याप्त कर्मचारी।

नेतृत्व से जुड़ी चुनौतियां- प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में नेतृत्व का जिम्मा लोक सेवकों पर होता है, जिनके पास इन बोर्डों में अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने के लिए जरूरी विशेषज्ञता की अक्सर कमी होती है और उन्हें आमतौर पर प्रशासनिक पदों पर देखा जाता है।

प्रेरणा और जवाबदेही- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी अक्सर अपनी भूमिका और जिम्मेदारी को लेकर तंग नजरिया रखते हैं। इसलिये उनसे जिस भूमिका की उम्मीद की जाती है, वह नहीं निभाई जा पाती। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनेक अधिकारी संबंधित मौजूदा कानूनों के तहत खुद को मिली जिम्मेदारियों के बारे में पूरी तरह से नहीं जानते।

बहुक्षेत्रीयता और नौकरशाही- केंद्र तथा राज्य स्तरीय विभिन्न सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी के कारण विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनेक ऐसे निर्देश लागू ही नहीं हो पाते जिन्हें अमलीजामा पहनाने का जिम्मा संबंधित विभागों पर होता है। कुछ राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी यही कहना है कि नौकरशाही संबंधी रुकावटें मौजूद हैं। नौकरशाही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में मानव स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने के बजाय सिर्फ फाइलें निपटाने को ही अपना काम मानती है।

चुनौतियों की निगरानी करना- हालांकि पिछले एक दशक के दौरान हवा की गुणवत्ता की निगरानी करने का काम तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों में शामिल रहा है, मगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास इतने कर्मचारी और इतनी विशेषज्ञता नहीं है कि वह अपने काम को अपेक्षित मुस्तैदी और गुणवत्‍ता से कर सकें। साथ ही साथ कार्रवाई करने के आधार के तौर पर देखे जाने के बजाए निगरानी को ही अंतिम कार्य मान लिया जाता है

सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना- देश में बने पर्यावरण संबंधी प्रमुख कानूनों का उद्देश्य मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना है लेकिन राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में वायु प्रदूषण संबंधी तथ्यों की गलत समझ या गलत सूचनाएं महामारी विज्ञान पर हावी हो जाती हैं। अगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अपने उद्देश्यों में सफल होना है तो इन गलतफहमियों को दूर करना बहुत जरूरी है।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) की इस रिपोर्ट के लेखकों में शामिल भार्गव कृष्णा ने कहा ''हाल के अध्यादेश समेत विधिक ढांचे को मजबूत करने वाले कदम स्वागत योग्य तो हैं मगर उन्हें लागू करने वाली नियामक इकाइयों को जब तक तकनीकी और वित्तीय संसाधनों के जरिए मजबूत नहीं किया जाएगा, तब तक यह सारे प्रयास बेकार साबित होंगे। इंसान की सेहत की सुरक्षा का ही सवाल था कि हमें यह कानून बनाने पड़ी। इनके लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य को नीति निर्धारण के केंद्र में रखना होगा।''

एनएएक्‍यूएस को हासिल करने में उत्पन्न प्रमुख ढांचागत बाधाओं को दूर करने के लिए इस रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं :

· सभी सरकारें मानव संसाधन तथा नेतृत्व संबंधी महत्वपूर्ण जरूरतों को तेजी से पूरा करें (जैसे कि प्रशिक्षण कार्यक्रम और कर्मचारियों के वेतन मानकों का पुनरीक्षण)।

राज्य-केंद्र और अंतर विभागीय संवाद को मजबूत किया जाए।

·अनुपालन और जवाबदेही के लिए आंकड़ों को प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करने के उद्देश्य से निगरानी की क्षमता का विस्तार किया जाए।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में निवेश के लिए उल्लेखनीय वित्तीय संसाधन जुटाए जाएं।

स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े हितधारकों को शामिल किया जाए।

स्थानीय प्रमाण आधार को मजबूत किया जाए।

सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल से जुड़ी विदुषी बहुगुणा ने कहा ''अगर वायु प्रदूषण से जुड़े मौजूदा कानूनी और नियामक कार्ययोजना को हवा की गुणवत्ता में सुधार और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करना है तो यह कदम उठाना बेहद जरूरी है।''

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