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अखिल गोगोई की जीत से असम में नई राजनीति का दौर शुरू होगा

Shiv Kumar Mishra
4 May 2021 4:55 AM GMT
अखिल गोगोई की जीत से असम में नई राजनीति का दौर शुरू होगा
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अखिल गोगोई की जीत से देश के किसान आंदोलन को बल मिलेगा।

डॉ सुनीलम

असम के शिवसागर विधानसभा क्षेत्र से अखिल गोगोई चुनाव जीत गए । 5 राज्यों में जहां भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां कोई ना कोई उम्मीदवार जीता है। लेकिन अखिल गोगोई की जीत विशेष महत्व रखती है। जीत का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि असम की भाजपा सरकार और कॉर्पोरेट की पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी वे चुनाव जीते हैं, यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि वह डेढ़ वर्षो से जेल में बन्द होने और चौतरफा हमले के बावजूद भी चुनाव जीते हैं।

असम सरकार ने उन पर यूएपीए लगाया है, एनआईए ने राष्ट्र द्रोह केप्रकरण तैयार किये हैं। तमाम मुकदमों में उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिल चुकी है लेकिन एनआईए कोर्ट उन्हें जमानत देने को तैयार नहीं है परन्तु शिवसागर की जनता की अदालत में उनकी जीत हो गई है।

अखिल गोगाई की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जब दो पार्टियों या मोर्चों के बीच ध्रुवीकरण होता है तब तीसरे का जितना लगभग असंभव हो जाता है। इसका उदाहरण बंगाल है।

दासियों साल तक राज करने वाली कांग्रेस और वाम मोर्चे को एक भी सीट नहीं मिली है। केरल में चुनाव एल डी एफ और यू डी एफ के बीच था वहां आर एस एस और कॉरपोरेट की पूरी ताकत लगाने के बाद भा ज पा को एक भी सीट नहीं मिल सकी । परन्तु ध्रुवीकरण के बावजूद शिवसागर के मतदाताओं ने अखिल को जिताया।

हालांकि चुनाव के शुरू होने के पहले असम के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा था कि वह अखिल गोगोई की मदद करेगा उनके लिए सीट छोड़ेगा परंतु सीट छोड़ना तो दूर अखिल गोगोई के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के खासमखास को टिकट देकर मैदान में उतार दिया। मैं असम की राजनीति का जानकार तो नहीं हूं लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि कांग्रेस पार्टी के गठबंधन ने अखिल गोगोई के लिए सीट छोड़ दी होती ,रायजोर दल के साथ गठबंधन कर लिया होता तो संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच सकता था। मैं वोट प्रतिशत के आधार पर नहीं व्यापक एकता से बनने वाले माहौल को ध्यान में रखकर यह कह रहा हूँ।

अखिल गोगोई की खासियत है कि वह खुलकर सांप्रदायिक ताकतों का विरोध करते है, फिर वह चाहे हिंदू कट्टरपंथी हो या मुस्लिम कट्टरपंथी। यही बात कांग्रेस गठबंधन को पसंद नहीं आई। उन्होंने कहा कि हिन्दू कट्टरपंथियों का विरोध और मुस्लिम कट्टरपंथियों का समर्थन नहीं चलेगा ।भारत सरकार ने जब असम में पड़ोसी देशों के हिंदुओं को बसाने के लिए नागरिकता कानून बनाया तब अखिल गोगोई ने सड़कों पर इसका विरोध किया। अखिल गोगोई ने कहा कि धर्म नागरिकता का आधार नहीं हो सकता। अखिल गोगोई असम में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर जाने जाते हैं। उनकी पहचान बड़े बांधों का विरोध करने वाले, जैव विविधता को बचाने के लिए संघर्ष करने वाले, जैव विविधता पार्क बनाने वाले कारपोरेट विरोधी नेता की है। जब गौहाटी में गरीबों को उजाड़ा गया तब अखिल गोगोई ने जमकर सड़कों पर उसका विरोध किया। मैं अखिल गोगोई के चुनाव क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने सात दिन गया था।

देश में शायद ही ऐसा कोई उम्मीदवार होगा जिसने 10 -15 अलग-अलग वैचारिक मुद्दों पर पर्चे छापे होंगे तथा हर मतदाता के पास उन पर्चो को पहुंचा कर विभिन्न मुद्दों की जानकारी दी होगी। पूरे शिवसागर विधानसभा में सभी बुथों पर 25 साल से कम उम्र के 10 से 20 युवा और युवतियां शिवसागर में पहुंचे थे। हर बूथ स्तर पर उन्होंने कार्यालय स्थापित किया था। जहां वे एक साथ रहते थे 1 दिन में 20 लोग मिलकर 70 घरों में जाकर परंपरागत तरीके से एक बर्तन में पर्चे रखकर सौंफ के साथ मतदाताओं को पर्चे दिया करते थे तथा कम से कम 15 मिनट मतदाता परिवार के साथ चर्चा किया करते थे।

अखिल गोगोई की जीत में उनकी वृद्ध माताजी और बहनों की बहुत अहम भूमिका है। वे सुबह से शाम तक गाड़ियों के काफिले के साथ पंचायतों में जाती थी। महिलाएं बड़े पैमाने पर इकट्ठा होकर उनके दर्शन करती थी। माताजी कहती थी कि मेरा बेटा आपके मुद्दों को लेकर जेल गया है आप ही उसको बाहर निकाल सकते हैं। मेरे बेटे को वोट दो! इसका भावनात्मक असर होता था अखिल गोगोई की टीम के प्रमुख वेदांता जैसे तमाम साथी थे जो दिनभर नुक्कड़ सभाएं किया करते थे।

अखिल गोगोई ने जिस तरह से चुनाव लड़ा वह तरीका अनुकरणीय है। यदि अखिल गोगोई जेल से बाहर होते तथा कांग्रेस ने उनके लिए सीट छोड़ी होती तो वे भारी मतों से चुनाव जीतते। कांग्रेस के चुनाव अभियान का सबसे दुखद पहलू यह है कि उन्होंने अखिल गोगोई जैसे सेकुलर व्यक्ति को भाजपा का एजेंट बताने का कुकृत्य किया ताकि मुसलमानों को अलग किया जा सके लेकिन कांग्रेस की यह नीति पूरी तरह असफल रही। शिवसागर कभी सीपीआई का गढ़ हुआ करता था, बाद में कांग्रेस पार्टी का गढ़ बना लेकिन अब आने वाले समय में शिवसागर असम की नई राजनीति का गढ़ बन कर उभरेगा।

अखिल गोगाई के साथ अन्ना आंदोलन की कोर कमेटी में साथ काम करने तथा जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय में राष्ट्रीय संयोजक मंडल के साथ काम करने के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि अगर अखिल गोगाई को जीवित रहने दिया गया तो वे असम के भावी नेतृत्वकर्ता होंगे। अखिल गोगोई की टीम पूरे चुनाव के प्रचार में यह कहते रही कि इस बार भी भाजपा को हॉफ करेंगे और 2026 में साफ करेंगे यानी खुद सरकार बनाएंगे।

संयुक्त संघर्ष मोर्चा के द्वारा भाजपा हराओ अपील का शिव सागर के चुनाव में असर पड़ा। योगेंद्र यादव जी के साथ मैंने अखिल गोगोई से अस्पताल में मिलकर गुवाहाटी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सभा को संबोधित किया। मेधा पाटकर जी एवम

संदीप पांडेय जी ने शिव सागर में बड़ी चुनावी रैली की जिसमें उनके साथ बिहार के पूर्व सांसद भी मौजूद रहे।

अखिल गोगोई की जीत से देश के किसान आंदोलन और जन आंदोलन को बल मिलेगा। वे जेल में रहने के बावजूद आज भी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य हैं तथा जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय मंडल के सदस्य हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा अब खुल कर अखिल गोगाई के पक्ष में खड़ा हो गया है ।उसने आज अखिल गोगाई की तत्काल रिहाई की मांग की है। आने वाले समय मे कई राज्यों के मुख्यमंत्री अखिल गोगाई की रिहाई के लिए सक्रिय दिखाई पड़ेंगे।

जेल से रिहा होने के बाद अखिल गोगाई सड़क से विधान सभा तक नई भूमिका में दिखलाई देंगे। कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्च का बदला रुख देखना दिलचस्प होगा। अखिल गोगोई की बहादुरी और जज्बे तथा शिव सागर के मतदाताओं की परिपक्वता और राइजोर दल के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को मेरा सलाम!

लेखक डॉ सुनीलम पूर्व विधायक एवं अध्यक्ष किसान संघर्ष समिति , राष्ट्रीय संयोजक- जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय; वर्किंग ग्रुप सदस्य-अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति - संयुक्त किसान मोर्चा

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