
तेलंगाना की दो लड़कियों ने बाल विवाह के खिलाफ दिखाई बहादुरी

15 साल के किसी भी बच्चे से उनका पसंदीदा समय पूछिए, तो ज्यादातर का जवाब एक जैसा होगा गर्मी की छुट्टियां। बच्चों और स्कूल का रिश्ता ही ऐसा होता है कि वे गर्मी की छुट्टियों के लिए दिन गिनते हैं और जब छुट्टियां शुरू होती हैं, तो वापस दोस्तों और क्लासरूम में लौटने के दिन गिनने लगते हैं। लेकिन सभी 15 साल के बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं होते। कुछ के लिए छुट्टियां मौजमस्ती नहीं बल्कि मुसीबत लेकर आती है। ऐसी ही सच्ची घटना है तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले के दो अलग-अलग गांवों की अपर्णा और रेवती (बदला हुआ नाम) की, जो बाल विवाह के कारण अपने भविष्य को खोने के कगार पर खड़ी थीं। ये कहानी है साहस, हस्तक्षेप और खोए हुए बचपन को वापस पाने की जंग की।
अपर्णा की कलम बनी बचपन की ढाल
अपर्णा को लगा गर्मी की छुट्टियां शुरू हैं, तो अब राहत मिलेगी। अब वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के साथ ही मां की रसोई में मदद भी करेगी क्योंकि उसकी मां अक्सर शिकायत करती थीं कि अपर्णा के पास कभी घरेलू कामों के लिए समय नहीं होता। मां कहती थी “जब मैं तुम्हारी उम्र की थी, तो पूरा घर संभालती थी, तुम सिर्फ इमरजेंसी में ही मदद करती हो।” इसलिए, अपर्णा ने ठान लिया था कि वह इस बार छुट्टियों में मां को खुश करेगी। कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा। मां खुश थीं।
फिर एक दोपहर, कुछ ऐसा हुआ जो अपर्णा ने कभी सोचा भी नहीं था। उसने अपने माता-पिता को कुछ रिश्तेदारों के साथ बातचीत करते हुए सुना। उसमें उसका नाम बार-बार लिया जा रहा था। जिज्ञासावश वह दरवाजे के पास गई और जब ध्यान से सुना तो उसके होश उड़ गए। उसके माता-पिता उसकी शादी की योजना बना रहे थे।
रिश्तेदारों को “एक अच्छा रिश्ता” मिला था और बड़े-बुजुर्ग पहले ही सगाई तय कर चुके थे। बस कुछ ही दिनों में शादी कर देने की योजना थी। इतना सुनते ही हैरान-परेशान अपर्णा कमरे में घुस गई और कहा “मैं शादी नहीं करना चाहती! मेरी उम्र सिर्फ 15 साल है, अम्मा! आप ऐसा नहीं कर सकतीं।” उसने मिन्नत की लेकिन माता-पिता ने सब अनसुना कर दिया क्योंकि वो लड़के के परिवार की सामाजिक स्थिति और रिश्तेदारों की स्वीकृति से खुश थे, बेटी के जीवन के बारे में सोच ही नहीं रहे थे। उन्होंने कहा “चिंता मत करो, हम सिर्फ सगाई करेंगे… फिर देखेंगे।”
अपर्णा जानती थी इसका क्या मतलब है। एक बार सगाई हो गई तो शादी जल्द ही कर दी जाएगी। उस रात अपर्णा खाना नहीं खा सकी लेकिन वह झुकने को तैयार नहीं थी। उस रात जब सब अपने कमरे में चले गए, तो अपर्णा ने चुपचाप एक पत्र लिखना शुरू किया। उसने अपनी पीड़ा को एक शिकायत पत्र में लिखा और तुरंत मदद की मांग की।
अगली सुबह, उसने अपने दोस्तों से मुलाकात की और उन्हें वह चिट्ठी पकड़ा दी। उसने उनसे कहा कि एक प्रति पुलिस को और एक ‘कंजर्वेशन ऑफ नेचर थ्रू रूरल अवेकनिंग’ (सीओएनएआरई) को दे दें। सीओएनएआरई, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) का एक सहयोगी संगठन है जो नागरकुरनूल जिले में बच्चों की सुरक्षा और बाल विवाह, बाल श्रम, और बाल शोषण जैसे अपराधों के खिलाफ काम करता है। सीओएनएआरई, जेआरसी के 250 से अधिक साझेदारों में से एक है, जो देश के 418 से अधिक जिलों में बच्चों के अधिकारों पर काम कर रहा है।
अपर्णा की हिम्मत का तुरंत असर हुआ। सीओएनएआरई, पुलिस और चाइल्ड हेल्पलाइन के सदस्य उसके घर आए और अभिभावकों से बात की। शुरुआत में माता-पिता ने ऐसी किसी योजना से इनकार किया, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि बाल विवाह एक अपराध है, तो उन्होंने मान लिया। उन्होंने हलफनामा देकर वादा किया कि वे 18 साल से पहले अपर्णा की शादी के बारे में सोचेंगे भी नहीं। अपर्णा खुशी से झूम उठी मानो उसे नई जिंदगी मिल गई हो। वह छुट्टी के अधूरे होमवर्क को पूरा करने के लिए अपने कमरे में लौट गई।
दोस्त बने रेवती का सहारा
रेवती ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था। वह अपनी मां के साथ रहती है, जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं और घर चलाने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। हर साल स्कूल की छुट्टियों में रेवती अपनी मां के साथ खेतों में काम करने जाती है। वह धूप में काम करते हुए एक अलग जीवन का सपना देखती थी। एक ऐसी जिंदगी जहां वह पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और नौकरी करने वाली हो; जहां उसकी मां को संघर्ष न करना पड़े। हर साल की तरह इस साल भी, छुट्टियों की शुरुआत में रेवती खुश थी कि वह मां के साथ खेत में काम करेगी। लेकिन उसकी मां के पास कुछ और ही योजना थी।
आर्थिक तंगी और रिश्तेदारों के दबाव से परेशान होकर उन्होंने रेवती के लिए रिश्ता देखना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि शादी के बाद रेवती सुरक्षित रहेगी, उसे अच्छा खाने-पहनने को मिलेगा, और उनकी जिम्मेदारी भी खत्म हो जाएगी। लेकिन रेवती के लिए शादी का मतलब सुरक्षा नहीं था। इसका मतलब था उसके सपनों का अंत।
रेवती अपनी मां के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी, लेकिन शादी भी नहीं करना चाहती थी। उसने अपने दोस्तों को फोन किया और अपनी पीड़ा बताई। वह रोती रही और दोस्त उसे सांत्वना देते रहे। फोन काटने के बाद, उसके बेचैन दोस्तों ने आपस में मिलकर एक निर्णय लिया कि वे रेवती की मदद करेंगे।
शादी के दिन, दोस्तों ने चाइल्ड हेल्पलाइन और कंजर्वेशन ऑफ नेचर थ्रू रूरल अवेकनिंग’ को रेवती की शादी की सूचना दी।
मिली जानकारी के आधार पर टीम तुरंत शादी के हॉल में पहुंची और विवाह को रुकवाया गया। रेवती को बचाकर एक शेल्टर होम में भेजा गया। अगले दिन, रेवती की मां और कुछ रिश्तेदार चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पास आए, जहां उन्होंने लिखित हलफनामा दिया कि जब तक रेवती 18 साल की नहीं हो जाती, वे उसकी शादी नहीं करेंगे। उन्हें बाल विवाह कराने के कानूनी परिणामों के बारे में बताया गया, उसके बाद ही उन्हें रेवती को घर ले जाने की अनुमति दी गई।
इन दोनों मामलों पर बात करते हुए, सीओएनएआरई के एम.ए. सलीम ने कहा “अपर्णा और रेवती दोनों गरीब और समाज के हाशिए पर रहने वाले परिवारों से हैं, जहां 15 साल की उम्र में शादी को सामान्य बात माना जाता है। लेकिन इन दोनों लड़कियों और उनके दोस्तों ने सदियों पुरानी इस परंपरा को चुनौती दी और हमारे संगठन, पुलिस प्रशासन और चाइल्ड हेल्पलाइन के सहयोग से सुरक्षित बच सकीं। हमें खुशी है कि हमारे सतत जागरूकता कार्यक्रम सही लोगों तक पहुंच रहे हैं और स्कूल की लड़कियां अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा पा रही हैं।” बता दें कि नागरकुरनूल में बाल विवाह की दर 32.1 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत 23.3 फीसदी से खासी अधिक है।
हरीश प्रजापति, बाल अधिकार कार्यकर्ता