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प्रधानमंत्री जी, स्वागत है, पर आपने कुछ किया नहीं

Shiv Kumar Mishra
7 March 2021 6:07 AM GMT
प्रधानमंत्री जी, स्वागत है, पर आपने कुछ किया नहीं
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पुलिस ने कहा कि 7 मार्च को रात 8 बजे से पहले किसी भी बाहरी सामान को कोलकाता में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।“

संजय कुमार सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के सिलसिले में आज कोलकाता में रैली करने वाले हैं। इस मौके पर आज द टेलीग्राफ का पहला पन्ना। इससे पहले एबीपी लाइव डॉट कॉम की खबर का एक अंश भी देख लीजिए, "कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में और उसके आसपास 1,500 सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे।

सूत्रों ने कहा कि मुख्य मंच के पीछे एक केंद्रीय निगरानी नियंत्रण कक्ष स्थापित किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पूरे मैदान को लकड़ी के फट्टे एवं बल्ली से जोड़ा जाएगा। इसके अलावा एहतियात के तौर पर हेस्टिंग्स, कैथ्रेडल रोड, खिदिरपुर, एजेसी बोस रोड और हॉस्टिपल रोड जैसे व्यस्त हिस्सों पर विशेष रूप से मालवाहक वाहनों पर और अन्य वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। पुलिस ने कहा कि 7 मार्च को रात 8 बजे से पहले किसी भी बाहरी सामान को कोलकाता में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"

दोनों पत्रकारिता ही है और लोग कहते हैं कि संस्थान एक ही है। मुझे लगता है कि यह अंतर संपादकों से आता है। पर पिछले कई वर्षों में यह पद या जीव लुप्तप्राय होता जा रहा है। गिरि लाल जैन टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक होते थे तो प्रधानमंत्री के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पद मानते थे। अरुण शौरी के जलवे मैंने देखे हैं और अब मुझे दूसरे अखबारों का तो छोड़िए, द टेलीग्राफ के संपादक का नाम भी याद नहीं है। जब मैंने उनके बारे में ढूंढ़कर जाना तबसे बदल गए हों तो कह नहीं सकता क्योंकि 30 साल से इस अखबार का फैन हूं। संपादक बदलने से जरा नहीं बदला। इसलिए संपादक की भूमिका और महत्व पर चर्चा अंतहीन है। मैं विषयांतर हो गया।

मुख्य शीर्षक से ऊपर जो लिखा है उसका संदर्भ छोड़ दूं तो बाकी की हिन्दी होगी, "महामारी में सरकार कहां नाकाम रही? मनुष्यों के साथ सम्मान का व्यवहार करने में।" प्रधानमंत्री आज जब कोलकाता में हैं और बहुत संभावना है कि अखबार भी देखेंगे ही, तो यह शीर्षक अपने लिए नहीं लगाया है। प्रधानमंत्री के लिए ही है और बिल्कुल आम आदमी के हित में है। भले ही प्रधानमंत्री को आंख में आंख डालकर उनका काम याद दिलाना पसंद नहीं हो और मन की बात करने के आदी, यह बता चुके हों कि सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है पर उन्हें उनका काम बताए जाने की जरूरत है। लोग बताते रहते हैं। सबका अपना अंदाज है। सबकी क्षमता और योग्यता है। पर प्रधानमंत्री ऊंचा सुनते हैं इसमें कोई शक नहीं है।

लोक कल्याण मार्ग पर रहने या जिस सड़क पर बंगला मिले उसका नाम लोक कल्याण मार्ग कर देने से लोक कल्याण नहीं हो जाता है। वैसे ही जैसे अल्लाहाबाद का नाम प्रयागराज कर देने से वहां के अस्पतालों में भगवान या राजा का डर नहीं बैठ जाएगा। द टेलीग्राफ की आज की खबर की शुरुआत होती है, "अगर आप इसे पढ़ रहे हैं .... कोविड महामारी से आपका निपटना नाकाम घोषित किया जा चुका है"।

अखबार ने बताया है कि कलकत्ता क्लब में द टेलीग्राफ नेशनल डिबेट 2021 का आयोजन सुभाष बोस इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट ने किया था। विषय था, "सदन की राय में, महामारी के वर्ष में, भारत जीवन और आजीविका में संतुलन बनाए रखने में नाकाम रहा।" अखबार ने लिखा है कि विषय का प्रस्ताव करने वालों को कुछ करना ही नहीं पड़ा और यह एक ऐसा मुकाबला था जो आसानी से जीत लिया गया। महुआ मोइत्रा को कहना पड़ा कि उन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ा। सच यह है कि उन्हें 'गोले दागने' का मौका ही नहीं मिला। अखबार ने लिखा है कि मुकाबला था ही नहीं, प्रधानमंत्री जी, आपका पक्ष हार गया।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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