राष्ट्रीय

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने क्यों कही ये बात, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, गोदी मीडिया और हेडलाइन मैनेजमेंट

Shiv Kumar Mishra
16 May 2020 4:38 PM GMT
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने क्यों कही ये बात, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, गोदी मीडिया और हेडलाइन मैनेजमेंट
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और नवभारत टाइम्स ने पहले पन्ने पर बताया है कि कोरोना के कुल मरीजों के मामले में भारत चीन से भी आगे निकल गया।

सुप्रीम कोर्ट के तीन प्रमुख फैसलों के अलावा आज जो प्रमुख खबरें हैं उनमें एक तो केंद्र सरकार की हेडलाइन मैनेजमेंट वाली 20 लाख करोड़ के पैकेज की दैनिक व्याख्या और कोरोना संक्रमितों के मामले में भारत का चीन से आगे निकल जाना शामिल है। आइए, देखें हिन्दी के जो सात अखबार मैं देखता हैं उनके पहले पन्नों पर इन खबरों की क्या स्थिति है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि मीडिया की भारी निन्दा होती है और उसे गोदी मीडिया ही कहा जाता है। यह अलग बात है कि गोदी मीडिया में कुछ मीडिया संस्थान अपवाद हैं पर सुप्रीम कोर्ट के बारे में ऐसा कुछ नहीं कहा जाता है।

सबसे पहले तो केंद्र सरकार के प्रचार वाली 20 लाख करोड़ की योजना की आज की किस्त सभी अखबारों में (नवभारत टाइम्स छोड़कर) लीड है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की चर्चा नवभारत टाइम्स और राजस्थान पत्रिका और नवोदय टाइम्स ने पहले पन्ने पर की है। अदालतों के कुछ और फैसले तथा कुछ आदेश भी पहले पन्ने पर है आगे उनकी भी चर्चा करता हूं पर कोरोना का राउंड-अप और देश भर की स्थिति पहले पन्ने पर किसी भी अखबार में नहीं है। कोरोना से संबंधित कुछ खबरें जरूर पहले पन्ने पर हैं। और नवभारत टाइम्स ने पहले पन्ने पर बताया है कि कोरोना के कुल मरीजों के मामले में भारत चीन से भी आगे निकल गया।

बीस लाख करोड़ के पैकेज की आज की किस्त का शीर्षक दैनिक जागरण ने लगाया है, बेड़ियों से मुक्त हुआ अन्नदाता। जाहिर है इसमें इस बात का कोई महत्व नहीं है कि किसान अब तक बेड़ियों में क्यों था और पहले मुक्त क्यों नहीं किया गया और इस मुक्ति के लिए उसे महामारी की जरूरत पड़ी जिसमें सब कुछ बंद है और अर्थव्यवस्था की बुरी हालत है। ऐसे समय में हिन्दुस्तान ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, "किसानों के लिए एक देश एक बाजार की नीति होगी"। कहने की जरूरत नहीं है कि जब वह अपनी उपज स्थानीय बाजार में नहीं ले जा सकता है तो पूरे देश को बाजार बनाने का क्या मतलब। यही नहीं, जब खेत में फसल सूख गई, काटने वाले मजदूर नहीं मिले, बाजार नहीं मिला तो सरकार ने जो नीति बनाई है उसे दैनिक भास्कर ने शीर्षक दिया है, "अनाज, दाल, आलू, प्याज से स्टॉक लिमिट खत्म; किसान देश में कहीं भी बेच सकेंगे"। लगभग ऐसा ही शीर्षक राजस्थान पत्रिका का है।

अन्य अखबारों में यह सामान्य खबर की तरह है - खेती किसानी के लिए 11 बड़े कदम (नवोदय टाइम्स) 2. तीसरी किस्त में किसानों का ध्यान, कहीं भी किसी को भी बेच सकेंगे फसल (नवभारत टाइम्स) तीसरा शीर्षक अमर उजाला का है जो प्रचारात्मक या हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग नहीं लगता है। खेती के बुनियादी ढांचे के लिए एक लाख करोड़ का कोष, किसान कहीं भी बेच सकेंगे अपनी उपज। उपशीर्षक है, राहत पैकेज का तीसरा चरण : 65 साल पुराना आवश्यक वस्तु अधिनियम बदलेगा। हिन्दी अखबारों में सुप्रीम कोर्ट की तीन में से दो खबरों को अकले नवभारत टाइम्स ने पहले पन्ने पर रखा है।

नवभारत टाइम्स की इन खबर का शीर्षक है, "मजदूर ट्रैक पर सोएं तो क्या किया जा सकता है, पैदल चलें तो कैसे रोकें : कोर्ट"। इस खबर के साथ एक और खबर का शीर्षक है, सैलरी पर कंपनियों के खिलाफ ऐक्शन नहीं। इस खबर के मुताबिक, "कोर्ट ने कहा कि कुछ छोटी कंपनियां हो सकती हैं जिनकी आमदनी न हुई तो वे सैलरी कहां से देंगी"। यह खबर अमर उजाला में भी है। इसके अलावा, गुजरात के मंत्री का चुनाव रद्द भी पहले पन्ने पर है। केरल में शराब की बिक्री रोकने के आदेश पर स्टे वाली खबर पहले पन्ने पर नहीं है। हालांकि यहां अजान के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले की खबर पहले पन्ने पर है। इसके अनुसार मस्जिदों को माइक से तो नहीं पर अजान की इजाजत दे दी गई। ये दोनों खबरें राजस्थान पत्रिका में भी पहले पन्ने पर है।

राजस्थान पत्रिका ने भी सुप्रीम कोर्ट की खबर को पहले पन्ने पर प्रमुखता से लगाया है। शीर्षक है, मजदूरों को ना रोक सकते हैं ना निगरानी कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा, राज्यों को अपना काम करने दीजिए। दो अन्य खबरों के शीर्षक हैं, गुस्से में पैदल चल रहे हैं लोग (सॉलिसिटर जनरल ने कहा) और दूसरा, तो आप जाकर आदेश लागू करवाइए - (जस्टिस एसके कौल)। 2018 की जनवरी में चार जजों के प्रेस कांफ्रेंस कर हालत बयान करने के बाद काफी फैसले आ चुके हैं और उन जजों में से एक के फैसलों के साथ उनका व्यवहार और सम्मान अलग चर्चा में रहा है। यह सब केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार और पार्टी के प्रभाव से मुक्त नहीं है और आलम यह है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा की 'राजनीति' से आगे बढ़ते हुए बंटवारे की ओर बढ़ता लग रहा है।

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