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2019 के लोकसभा चुनाव में ये है PM मोदी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपराजय माने जा रहे हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव जीतकर दोबारा सरकार बना लेंगे। सरकार का आधा कार्यकाल बीत जाने के बाद भी उनका विजयरथ लगातार आगे बढ़ रहा है। पीएम मोदी ने लोगों को विश्वास दिलाया है कि वह देश के लिए काम कर रहे हैं। उनका सरकार और पार्टी पर जबर्दस्त नियंत्रण है। उन्होंने भ्रष्टाचार पर प्रहार किया है।
लेकिन, PM मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती दिख रही है, ऐसा लग रहा है वह 2019 तक शायद पटखनी नहीं दे पाएंगे। उनके मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के दूसरे संस्करण में इस चुनौती की ओर इशारा किया है। पीएम मोदी के लिए यह चुनौती है-विश्वसनीय रोजगार के आंकड़ों का अभाव।
दरअशल इकनॉमिक सर्वे 2016-17 के सेकंड अडिशन में बताया गया है कि, 'रोजगार एवं बेरोजगारी के आकलन के पैमाने पर कुछ समय से बहस चल रही है। हाल के वर्षों में रोजगार को लेकर विश्वसनीय पैमाने के अभाव ने इसके आकलन को बाधित किया है। इसके मद्देनजर सरकार को उचित नीतिगत कदम उठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।'
सर्वे के अनुसार ऐसा लग रहा है PM मोदी के कार्यकाल में रोजगार की स्थिति बदतर हुई है। एक अनुमान के मुताबिक नौकरी के लिए हो रहे तैयार लोगों की तुलना में नौकरियां कम पैदा हो रही हैं। हालांकि, सरकार के कई लोगों का मानना है कि बड़ी आबादी आंट्रप्रन्योर बन रही है। यानी, बड़ी संख्या में लोग जॉब नहीं कर अपना खुद का बिजनस खड़ा कर रहे हैं। लेकिन, ज्यादातर अनुमानों में बेरोजगारी आज देश की बड़ी समस्या बन चुकी है।
सर्वे में जॉब डेटा के दर्जनों मौजूदा सरकारी स्रोतों की सूची दी गई है, लेकिन उनकी सीमाएं भी बताई गई हैं। इनमें आंशिक कवरेज, अपर्याप्त सैंपल साइज, कम फ्रिक्वेंसी, लॉन्ग टाइम लैग्स, दोहरी गिनती, वैचारिक मतभेद और पारिभाषिक मुद्दे आदि शामिल हैं।
अरविंद सुब्रमण्यन ने एक इंटरव्यू में बताया कि, 'हमारे पास बढ़िया विश्वसनीय टिकाऊ आंकड़े नहीं हैं जिनकी बदौलत हम थोड़े विश्वास के साथ कह सकें कि रोजागर के मौके बढ़े हैं या घटे हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि जब हम एंप्लॉयमेंट डेटा में सुधार कर लेंगे तो हम इन चीजों को अच्छी तरह अंजाम दे पाएंगे।
सरकार नए सिरे से एंप्लॉयमेंट सर्वे करवा रही है, जो पहुंच और गहराई के मामलें में अद्वितीय है। इसके तहत हर तीन महीने में 7,500 गांवों और 5,000 शहरी ब्लॉकों के 10,000 से ज्यादा परिवारों से सवाल पूछे जा रहे हैं, ताकि वक्त-वक्त पर ज्यादा-से-ज्यादा सही जानकारी प्राप्त हो सके। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सर्वेक्षण का पहला आंकड़ा अगले साल दिसंबर महीने में आने की उम्मीद है। सरकार ने कागजों की जगह सीधे टैबलट्स पर डेटा फीड करने के लिए 700 रिसर्चरों को ट्रेनिंग दी है।
ज्यादा-से-ज्यादा नौकरियां पैदा करना नरेंद्र मोदी के चुनावी वादों में शामिल था। अगले चुनाव में उन्हें इस पर जवाब देना होगा। लेकिन, अगर सरकार को यह ही नहीं पता हो कि बेरोजगारी कितनी है और न ही ज्यादा नौकरियां पैदा करने के लिए पर्याप्त कदम भी नहीं उठा रही हो तो मोदी अपराजय नहीं रह पाएंगे।