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नोटबंदी और GST जैसे तुगलकी, मूर्खतापूर्ण आर्थिक फैसलों से देश की अर्थव्यवस्था चौपट की मोदी ने
Special Coverage News
22 July 2017 10:01 AM GMT
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Modi economy notebandi and GST
नोटबंदी और जीएसटी जैसे तुगलकी और मूर्खतापूर्ण आर्थिक फैसलों से देश की अर्थव्यवस्था और बाजार की खाट खड़ी कर देने वाले नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली के तकरीबन हर आर्थिक फैसले ही देर-सबेर किसी न किसी सेक्टर की बत्ती गुल कर दे रहे हैं।
ताजा मामला सामने आया है जन धन खातों का। नोटबंदी के बाद बर्बाद हो चुके रियल एस्टेट और उसके चलते लोन देने के लिए लोगों को चिराग लेकर ढूंढते बैंक पहले ही माल्या, अम्बानी, अडानी जैसे धनकुबेरों के 8 लाख करोड़ के कर्ज हजम कर जाने से दिवालिया होने की कगार पर हैं...उस पर यह जन धन एकाउंट का बोझ बैंकों के लिए कोढ़ में खाज ही बनकर सामने आ गया है।
बैंक इससे बुरी तरह से घबराए हुए हैं क्योंकि शून्य जमाराशि वाले एक जन धन अकॉउंट पर बैंकों को 140 रुपये खर्च करना पड़ता है। जबकि ऐसे 7 करोड़ एकाउंट के चलते उन्हें लगभग एक हजार करोड़ का भारी भरकम खर्च उठाना पड़ रहा है। यानी खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना...
अर्थ क्षेत्र पर मोदी और जेटली मिलकर एक के बाद एक ऐसे मूर्खतापूर्ण बम गिरा रहे हैं कि अब तो लगने लगा है कि वे हालात भी ज्यादा दूर नहीं रह गए हैं, जब मनमोहन सिंह के आने के पहले देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सोना गिरवी रखकर कुछ पैसा देने के लिए दुनिया के सामने गिड़गिड़ा रहे थे...ताकि किसी तरह से देश को कुछ दिन और चलाया जा सके।
मोदी की तो लगभग हर योजना ही इतनी बुरी तरीके से फेल हुई है कि यही नहीं समझ आ रहा कि आखिर सरकार क्या सोच कर ये योजनाएं देश में ला रही है और कैसे इन योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है कि इनसे फायदा होना तो दूर, देश का बहुत ज्यादा नुकसान ही होता चला जा रहा है। मिसाल के तौर पर गंगा सफाई योजना, बुलेट ट्रेन योजना, नदी परिवहन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और स्मार्ट सिटी योजना...ये सब या तो शुरू ही नहीं हो पाईं या फिर शुरू होकर न जाने कितने हजारों-लाखों करोड़ के जनता के धन को हजम करने के बाद भी एक इंच भी नहीं बढ़ सकी हैं। विदेश से काला धन लाने के बारे तो खैर इस डर से अब कोई नहीं पूछता कि मोदी जी गुस्से में एक बार फिर से कहीं नोटबंदी न कर दें.
अश्वनी कुमार श्रीवास्तव
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