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Archived
काँग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वालों ने संस्थापक आडवाणी मुक्त भाजपा बनाया
शिव कुमार मिश्र
25 July 2017 8:23 AM GMT
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Congress free India's slogan made Advani free BJP
मिथिलेश त्रिपाठी
चैम्पियंस ट्राफी में भारत के हारने से भारत की जनता को जितना दुःख हुआ कुछ उतना ही दुःख भाजपा की तरफ से राष्ट्रपति पद के उमीद्वार रामनाथ कोविद के नाम की घोषणा के बाद हुआ। मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि जैसे चैम्पियंस ट्रॉफी में सबकुछ तय था वैसे ही भाजपा में भी तय था कि पार्टी की तरफ से लालकृष्ण अडवाणी राष्ट्रपति पद के उम्मीद्वार नहीं होंगे। तीन सदस्यीय समिति बनाना भी एक औपचारिकता थी। होना भी वही था जो पीएम मोदी की सोच थी।
अंत में हुआ भी वही सबकी सोच से परे बिहार के राज्यपाल श्रीमान रामनाथ कोविद को NDA का राष्ट्रपति उम्मीद्वार चुना गया। राष्ट्रपति पद के उम्मीद्वारों की एक लम्बी सूची में लालकृष्ण आडवाणी के अलावा मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, आनंदीबेन पटेल, फिल्म अभिनेता रजनीकांत, पूर्व मुख्य न्यायधीश पी० सदाशिव, सुमित्रा महाजन, मोहन भागवत, राम नाइक, द्रोपदी मुर्मू, हुकुमदेव नारायण यादव और थावर चंद गहलोत जैसे अनेकों नाम हवा में उछले लेकिन अंत समय एकदम सटीक क्रिकेटिया अंदाज में रामनाथ कोविद का नाम आया।
पिछले चार साल में देश और भाजपा के अंदर आए राजनीतिक बदलाव ने आडवाणी को हाशिये पर लाकर रख दिया। भाजपा आज कितनी भी बड़ी पार्टी बन गयी हो या कितनी ही ऊंचाई पर क्यों ना पहुँच गयी हो लेकिन आज भाजपा जो कुछ भी है और जिस भी ऊंचाई पर है, वह सब अटल और आडवाणी की डाली हुई बुनियाद की वजह से ही है। अटल और आडवाणी ने न सिर्फ भाजपा रूपी वृक्ष बोया, सालों साल इसे अपने ख़ून-पसीने से सींचा, बल्कि इसे इतना फल देने लायक भी बनाया कि आज यह दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा कर रही है।इतना ही नहीं, इन दोनों नेताओं ने भाजपा में कांग्रेस वाला यह कु-संस्कार नहीं पड़ने दिया कि किसी वंश विशेष का बच्चा ही सत्ता राज करे। इन्होंने छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं को भी बड़ा होने का मौका दिया, जिसकी वजह से बचपन में चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी एक दिन इतने बड़े हो गए कि स्वयं आडवाणी को भी किनारे बैठ जाना पड़ा।
जिस नरेंद्र मोदी को आडवाणी ने गढ़ा आज उन्ही आडवाणी को मोदी ने राजनीति के एकांतवाश का रास्ता दिखाया। हिन्दू वर्ण व्यवस्था के पितृपुरुषों का एकांत ऐसा ही होता है। जिस मकान को जीवन भर बनाता है, बन जाने के बाद ख़ुद मकान से बाहर हो जाता है। आडवाणी की भूमिका भाजपा में महज एक वरिष्ठ नेता की ही नहीं है। एक ऐसे पिता और गुरु की भी है, जिन्होंने न जाने कितने अपने राजनैतिक बच्चों को गढ़ा और बड़ा किया। हिन्दू राजनीति की अगुवा इस पार्टी के अधिकांश नेताओं के करियर में आडवाणी ऩे पिता और गुरू दोनों की भूमिका निभाई।
पिछले चार साल के दौरान जब भी आडवाणी को देखा गया एक गुनाहगार की तरह नज़र आए हैं। बोलना चाहते हैं मगर किसी अनजान डर से चुप हो जाते हैं। जब भी चैनलों के कैमरों के सामने आए, बोलने से नज़रें चुराने लगे। आप आडवाणी के तमाम वीडियो निकाल कर देखिये। ऐसा लगता है उनकी आवाज़ चली गई है। जैसे किसी ने उन्हें शीशे के बक्से में बंद कर दिया है। उनकी चीख बाहर नहीं आ पा रही है। उनके सामने से कैमरा गुज़र जाता है। आडवाणी होकर भी नहीं होते हैं। आडवाणी अपने एकांत के वर्तमान में ऐसे बैठे नज़र आते हैं जैसे उनका कोई इतिहास न हो। भाजपा आज अपने वर्तमान में शायद एक नया इतिहास देख रही है। आडवाणी उस इतिहास के वर्तमान में नहीं हैं। जैसे वो इतिहास में भी नहीं थे।
भारतीय जनता पार्टी का यह संस्थापक विस्थापन की ज़िंदगी जी रहा है। सत्ता से वजूद मिटा कांग्रेस का लेकिन नाम मिट गया आडवाणी का। आज की भाजपा आडवाणी मुक्त भाजपा है। उस भाजपा में आज कांग्रेस, सपा, बसपा और पार्टियों से आये हुए लोग हैं, लेकिन संस्थापक आडवाणी नहीं हैं। भाजपा में एक 'मार्गदर्शक मंडल' है जिसका ना ही दर्शक है और ना ही कोई मार्ग।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर आडवाणी देश के राष्ट्रपति बनते तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद वह दूसरे बड़े नेता होते, जिनका इतना बड़ा राजनीतिक कद था जिसके सामने सभी उम्मीदवार बौने साबित होते।
शिव कुमार मिश्र
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