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मोदी वैश्विक नेता बनने की आतुरता में जिस तेजी से दौडे, उससे पड़ोसी देशों से सम्बंध बिगड़े, चीन से दोस्ती फिर दूरी!
चीन के साथ ताजा तनाव और टकराव के लिए काफी हद तक भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता और विदेश नीति में जल्दबाजी जिम्मेेदार है। चीजों को ठीक से समझे बिना प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी वैश्विक नेता बनने की आतुरता में जिस तेजी से दौडे उससे पहले से चले आ रहे मसले और जटिल हुए हैं। विदेश नीति का संतुलन गडबडाया और पाकिस्तान के साथ ही चीन के साथ भी भारी गतिरोध पैदा हो गया है। याद आ रहा है शपथ लेने से पहले ही किस त्वरा से मोदी जी का पाकिस्तान – प्रेम छलका था। अनुकल आधार भूमि तैयार करने के कूटनीतिक प्रयासों के बिना नवाज शरीफ को बुलाना और फिर बिन बुलाये ही पाकिस्तान के चक्कर लगा आना। हो सकता है उन्हों ने सद्भावना में ऐसा किया हो और उनकी मंशा पडोसी देश से संबंध सुधारने की रही हो , पर स्वाभाविक दुश्मन देश के साथ भावना प्रेरित आतुरता से बात नहीं बनती । अंतत: तमाम कटु अनुभवों के बाद प्रधान मंत्री का मोह भंग हुआ और भारतीय सेना को सर्जिकल स्टा्इक तक करनी पडी।
चीन के साथ संबंध बनाने में भी शुरुआती आतुरता दिखा प्रधान मंत्री अचानक सब छोड अमेरिका के बगलगीर हो गये। खिसियाये – झुंझलाये गर्वोन्मत्त चीन धमकी भरे अंदाज में अब दो ही विकल्प दे रहा है – भारत डोकलम से अपनी सेना पीछे हटाये या जंग के लिए तैयार रहे। वह भारत और कूटनीतिक प्रयासों की परवाह नहीं कर रहा। वह भारतीय सीमा से सटे इलाके पर सडक वगैरह बनाने और सामरिक मजबूती के प्रयास बीते दो दशक से कर रहा है और उसने बडे सैन्य अड्डे बना लिये हैं।