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Archived
अमेरिका की मैगजीन के खुलासे से भारत में मचा हड़कम्प, लगा दिया पीएम मोदी पर गंभीर आरोप!
शिव कुमार मिश्र
18 Jun 2017 6:23 AM GMT
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US Foreign Affairs magazine sad, Demonetisation one of most disruptive experiments,
एक अमरीकी पत्रिका ने लिखा है कि भारतीय प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसल से भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत ज़्यादा नुक़सान पहुंचा है। अमेरिका की एक टॉप मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले पर सवाल उठाए हैं।इस मैगजीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबंदी के विघटनकारी प्रयोग की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया है।
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि भारत की कैश आधारित अर्थव्यस्था के चलते मोदी के फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में सबसे ज्यादा नुक़सान पहुंचा है। फॉरेन अफेयर्स मैगजीन ने अपने ताजा संस्करण में राइटर जेम्स क्रेबट्री के हवाले से लिखा है कि नोटबंदी ने साबित कर दिया कि ये सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला एक्सपेरिमेंट था।
फॉरेन अफेयर्स मैगजीन ने अपने ताजा संस्करण में राइटर जेम्स क्रेबट्री के हवाले से लिखा, 'नोटबंदी ने साबित कर दिया कि ये सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला एक्सपेरिमेंट था। मोदी प्रशासन को अब अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए।' सिंगापुर के ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी एनयूएस में सीनियर रिसर्च फेलो क्रेबट्री भारत में नोटबंदी की काफी आलोचना करते रहे हैं।
क्रेबट्री लिखते हैं, 'पीएम मोदी की आर्थिक उपलब्धियां तो सही है मगर उनके ग्रोथ लाने वाले बदलाव ने लोगों को एक तरह से निराश किया है। नोटबंदी के लिए सरकार ने जितने पर बड़े स्तर पर काम किया उसने अर्थव्यवस्था पर उतना असर नहीं डाला। 2019 के चुनावों को देखते हुए मोदी सरकार को अपने पिछले कदम से सीखने की जरूरत है।'
क्रेबट्री आगे लिखते हैं, 'सच्चाई तो ये है कि छोटे अंतराल में ग्रोथ के लिहाज से मोदी की नोटबंदी बेकार रही। पिछले हफ्ते भारत ने 2017 के पहली तिमाही की जीडीपी के आंकड़े जारी किए। ये वही वक्त है जब नोटबंदी का इस दौरान सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा।'
पत्रिका के अनुसार मोदी प्रशासन को अब अपनी ग़लतियों से सीख लेनी चाहिए।रिपोर्ट में आगे कहा गया कि करोड़ों लोगों को 500 और 1000 के नोट बदलने के लिए कैश मशीन और बैंक की लंबी कतारों में लगना पड़ा। इस दौरान ग़रीबों को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा। भारत की नगदी आधारित अर्थव्यवस्था में कमर्शियल एक्टिविटी ठप हो गईं।
आपको बता दें कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को भारत में 500 व 1000 के नोट चलन से बाहर करने की घोषणा की थी। इसी तरह भारतीय लेवर रिपोर्ट भी बता चुकी है कि रोजगार की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो चुकी। छोटे छोटे रोजगार मृतप्राय हो चुके है।
शिव कुमार मिश्र
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