Begin typing your search...

स्त्रियों की धर्म दीक्षा का विरोध क्यों करते थे महात्मा गाँधी!

स्त्रियों की धर्म दीक्षा का विरोध क्यों करते थे महात्मा गाँधी!
X
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • Print
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • Print
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • Print
  • koo

कुछ व्यवहारिक कारणों से महात्मा बुद्ध अपने समय में स्त्रियों को धर्म दीक्षा के खिलाफ थे. किन्तु अंतत: उन्हें महाप्रजापति गौतमी एवं आनंद के समक्ष झुकना पड़ा. किन्तु यह महाप्रजापति गौतमी का एक लम्बा प्रयास है. वास्तव में स्त्रियाँ सिद्धार्थ के महात्मा बुद्ध के रूप में कपिलवस्तु लौटने के पहले ही धर्म दीक्षा लेने का मन बना चुकी थी. इसलिए जैसे ही तथागत कपिलवस्तु पहुंचे, उहोने तथागत के सामने अपनी इच्छा प्रकट की. वे बोली भगवन ! यह अच्छा होगा यदि स्त्रियों को भी तथागातु के धर्म विनय के अनुसार प्रव्रज्जित होने की अनुज्ञा मिले. इस पर महात्मा बुद्ध ने बड़े ही सपाट शब्दों में उत्तर दिया – रहने दे, ऐसे विचर को मन में उत्पन्न मत होने दे. किन्तु महाप्रजापति गौतमी हार नहीं मानी. दूसरी बार प्रयास किया, तीसरी बार प्रयास किया. हर बार तथागत ने उन्हें मना कर दिया. इस पर गौतमी को बहुत दुःख हुआ, उन्होंने तथागत के सामने सर झुकाया और रोती हुई वहां से चली गयी.


इसके बाद भी गौतमी निराश नही हुईं. जब तथागत वहां से चारिका के लिए निकले, तब गौतमी ने और शाक्य स्त्रियों के साथ मिल कर इस पर विचार करना शुरू कर दिया कि अब क्या किया जाये. सभी ने एक स्वर से कहा कि चाहे जो हो जाए, जब तक तथागत हमें धर्म दीक्षा नहीं देंगे, हम प्रयत्न करते रहेंगे और धर्म दीक्षित पुरुषों की तरह जीवन यापन करेंगे. इसके गौतमी सहित अन्य स्त्रियों ने अपने बाल काट डाले, काषाय वस्त्र धारण कर लिया और तथागत को मनाने के लिए निकल पड़ी. धीरे-धीरे गौतमी अन्य स्त्रियों के साथ कूटागार भवन पहुँची. उस समय तक उनके पाँव सूज गये थे, तमाम कांटे धंस गये थे, उनका पूरा शरीर धूल धूसरित हो गया था. उन्होंने तथागत से फिर अपनी प्रार्थना दोहराई, पर तथागत टस से मस नहीं हुए. इस पर गौतमी एवं अन्य स्त्रियाँ बहुत निराश हुई, वे दरवाजे के पास ही लगभग सुध-बुध खोई खड़ी थी, तभी उन पर तथागत के परम शिष्य आनंद की दृष्टि पड़ी. वे समीप गये, और पूछने पर उन्होंने अपनी आपबीती कह सुनाया.


इसके पश्चात् आनंद तथागत के पास गये, और गौतमी के प्रसंग को छेड़ दिया. उन्होंने गौतमी के बारे उन्हें याद दिलाया कि वे आपकी मौसी हैं. आपकी माताजी के देहांत के बाद उन्होंने ही आपको स्तनपान कराया है. यह अच्छा होगा भगवन कि स्त्रियों को भी प्रव्रजित होने की अनुज्ञा मिले. इस पर तथागत ने कहा कि आनंद ! रहने दो. कई बार मना करने के बावजूद भी आनंद नहीं माने. फिर उन्होंने कहा कि ब्राहमणों ने तो स्त्रियों को धर्म-कर्म और मोक्ष से पहले ही वंचित कर रखा है क्योंकि वे पुरुषों के मुकाबले निर्बल होती हैं. इसलिए वे शूद्रों एवं स्त्रियों को प्रव्रज्या नहीं लेने देते ? तो क्या तथागत की दृष्टि भी ब्राह्मणों के समान है ? क्या तथागत के धर्म और विनय के अनुसार चल कर स्त्रियाँ निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकती ? तब तथागत आहात होकर बोले – आनंद ! मुझे गलत मत समझो. मेरा मत है कि पुरुषों की तरह स्त्रियाँ भी निर्वाण प्राप्त कर सकती हैं, मैं पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा विशेष नही मानता. मैंने गौतमी की प्रार्थना व्यवहारिक कारणों से स्वीकार नही की. फिर अंत में भगवान तथागत बोले – अच्छा आनंद ! यदि महाप्रजापति का इतना आग्रह है, तो मैं उन्हें धर्म विनय में प्रव्रजित होने की आज्ञा देता हूँ. किन्तु इसके पहले स्त्रियों को मेरी ओर से आठ बातें स्वीकार करनी होगी. उन आठ बातों को गौतमी सहित सभी 500 स्त्रियों ने स्वीकार किया और प्रव्रज्या उप्सम्प्दा ग्रहण की. इस प्रकार स्त्रियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा देने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई.


प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गाँधीवादी-समाजवादी चिंतक, पत्रकार व् इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेटर – महात्मा गाँधी पीस एंड रिसर्च सेंटर घाना, दक्षिण अफ्रीका

Special Coverage News
Next Story