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श्राप से त्रस्त है यह शाही परिवार, 40 साल बाद बजी शहनाई

श्राप से त्रस्त है यह शाही परिवार, 40 साल बाद बजी शहनाई
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बेंगलुरु: मैसूर के महारज यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार राजस्थान के डूंगरपुर की राजकुमारी त्रिशिका कुमारी सिंह के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। देश- विदेश के कई राजघराने इस शाही शादी में शामिल हुए। करीब 40 साल बाद मैसूर के राजमहल में शादी की शहनाई बजी, इससे पहले अम्बा विलास राजमहल मे दिवंगत महाराज श्रीकांतदत्त नरसिम्हराज वडियार ने 1976 में प्रमोदा देवी से शादी की थी।

दिवंगत महाराज श्रीकांतदत्त नरसिम्हराज वाडियार और रानी प्रमोदा देवी की अपनी कोई संतान नहीं थी। इसलिए रानी प्रमोदा देवी ने अपने पति की बड़ी बहन के बेटे यदुवीर को गोद लिया और वाडियार राजघराने का वारिस बना दिया।

यह पहली बार नहीं हुआ जब वाडियर राजघराने में दत्तक पुत्र को राजा बनाया गया हो। पिछले 400 सालों से इस राजघराने में राजा-रानी को बेटा नहीं हुआ। यानी राज परंपरा आगे बढ़ाने के लिए राजा-रानी 400 सालों से परिवार के किसी दूसरे सदस्य के पुत्र को गोद लेते आए हैं।

1612 में दक्षिण के सबसे शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद जब वाडियार राजा के आदेश पर विजयनगर की अकूत धन संपत्ति लूटी जा रही थी तब विजयनगर की तत्कालीन महारानी अलमेलम्मा हार के बाद एकांतवास में थीं।

लेकिन उनके पास सोने, चांदी और जवाहरात के काफी गहने थे। वाडियार ने महारानी के पास दूत भेजा कि उनके गहने अब वाडियार साम्राज्य की शाही संपत्ति का हिस्सा हैं इसलिए उन्हें दे दें। अलमेलम्मा ने जब गहने देने से इनकार किया तो शाही फौज ने ज़बरदस्ती ख़ज़ाने पर कब्ज़े की कोशिश की।

दुखी होकर महारानी अलमेलम्मा ने श्राप दिया कि जिस तरह तुम लोगों ने मेरा घर ऊजाड़ा है उसी तरह तुम्हारा देश वीरान हो जाए। इस वंश के राजा- रानी की गोद हमेशा सूनी रहे। इसके बाद अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली।
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