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अपने खासे अंदाज के लिये हमेशा मीडिया की सुर्खियों में बने रहने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पिछले एक महीने से फिर मीडिया के निशाने पर हैं. बिहार में सरकार किसी की रही हो लेकिन पिछले दो दशक से मीडिया पर एकाधिकार लालू प्रसाद का रहा है.
चाहे वे सत्ता में हो या विपक्ष में. इतना ही नही सत्ता से बेदखल होने के बाद भी सत्ताधारी दल के निशाने पर लालू प्रसाद यादव ही रहें हैं. इसकी वजह शायद यही रही है कि अपने मजबूत जनाधार के साथ ही अपनी बेवाक बयानवाजी के लिये खासे चर्चित रहे हैं. यही वजह है कि लालू के राजनीतिक विरोधियों ने कोई ऐसा अवसर नही छोड़ा जिसमें निशाने पर वे ना हो. यहा तक कि लालू विरोधियों ने उन्हे सत्ता से बेदखल करने के साथ ही जेल की सीखचों में बंद करवाना और चुनावी अधिकार से भी वंचित करवाने में कोई कसर नही छोड़ी.
लेकिन शायद लालू प्रसाद ही एक ऐसे राजनेता रहे हैं जिन्होनें विरोधियो की परवाह नही की और सारे संकटो के बाद एक बार फिर बिहार की सत्ता में बडे दल के रूप में भागीदार रहे हैं. बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद लालू के बहाने उनके राजनीतिक विरोधियों ने नीतीश सरकार को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की.लेकिन इन सबसे बेपरवाह लालू अपने दोनों बेटों उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और तेजप्रताप को सियासत का पाठ पढाने में लगे रहे.
ताजा हमला विपक्ष के संजय गांधी जैविक उद्यान की मिट्टी खरीद के बहाने से शुरू हुआ और यह सैकड़ो करोड़ो की संपत्ति तक गया. लेकिन इन आरोपों के बीच भी लालू ने राजगीर में अपने प्रशिक्षण शिविर को सफलता पूर्वक संपन्न करा और 27 अगस्त को भाजपा के खिलाफ गांधी मैदान में रैली का एलान कर यह जताने की कोशिश की है कि वे कमजोर नही पड़े.
लेकिन यह क्या राजद सुप्रीमो अभी राजगीर की खुमारी तोड़ भी नही पाये थे कि एक न्यूज चैनल ने अपनी शुरूआत ही लालू और बाहुवली पूर्व सांसद शहाबुद्दीन टेप कांड से शुरू कर दी . फिर क्या था विपक्ष भी इसी मौके की ताक में था और विपक्षी नेताओं ने राजभवन की य़ात्रा कर एक बार फिल लालू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. हालांकि इन मामलो पर लालू फिलहाल चुप है और बैक फूट पर नजर आ रहे हैं .
लेकिन असली सवाल यह है कि तिहाड़ जेल में बंद शहाबुद्दीन पर जिस तरह का आरोप लग रहा है वह करीब एक साल पुराना है और शायद इन्ही आरोपों के चलते शहाबुद्दीन को तिहाड़ भेजा गया है. राजद सुप्रीमो और शहाबुद्दीन का संबंध जगजाहिर है और राजद कोटे के एक मंत्री का शहाबुद्दीन से जेल में मिलना और कलेजा ठोक कर कहना कि हां वे मिले है यह इस बात का सबूत है कि लालू और शहाबुद्दीन का राजनीतिक संबंध मजबूत है. शहाबुद्दीन के चलते एक बार फिर मीडिया के राडार पर आये लालू इस संकट से किस तरह निकल पाते है देखना होगा लेकिन इतना तो जरूर कहा जायेगा कि मीडिया को भी सुर्खियों में आने के लिये लालू की अब भी जरूरत है.
अशोक मिश्र