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नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक, सुनते ही बीजेपी ने बाँट दी मिठाई !

नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक, सुनते ही बीजेपी ने बाँट दी मिठाई !
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बिहार की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक घोषणा से जहा उनके राजनीतिक विरोधियो की बांछे खिल गयी है वही प्रधानमंत्री के रूप में देखने वाले उनके समर्थकों में मायूसी है. वजह साफ है नीतीश ने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पी एम की उम्मीदवारी से खुद को अलग करने का एलान किया है. वजह भी उन्होने बतायी है कि उनका छोटा दल है जिसकी राजनीतिक हैसियत ऐसी नही जो प्रधानमंत्री बना सके.


मुख्यमंत्री की इस घोषणा से उत्साहित एनडीए के नेताओ ने जहा सत्य का ज्ञान होने की बात कह कर चुटकी ली है तो 2024 तक पी एम पद की नो वैकेंसी होने का दावा किया है. अब सवाल यह उठता है कि नीतीश ने यह घोषणा तब की है जब मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने को हैं और बिहार में महागठबंधन के एक नेता लालू प्रसाद मोदी को लोकसभा भंग करने की चुनौती दे रहे हैं. लालू ने आगामी 27 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में एक रैली भी बुलायी है और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत महागठबंधन भी बनाने का एलान किया है. ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार जैसे सुलझे नेता खुद को पी एम की दौर से अलग कर रहें है .


राजनीतिक पंडितो की माने तो वजह साफ है. नीतीश मानते हैं कि भाजपा के विरोधियो को एक मंच पर लाना और एक नेता के नेतृत्व में चुनाव लडना आसान नही है.कारण सभी दलो के क्षेत्रीय क्षत्रपों की महत्वाकांक्षा और उस राज्य की भौगोलिक स्थिति अलग - अलग है. कुछ राज्य तो ऐसे हैं जिन्हें मोदी बने या कोई और उनके हितो की कोई अनदेखी नही की जा सकती, जैसे कश्मीर या पूर्वोत्तर के राज्य .फिर दक्षिण के मतदाताओं और कांग्रेस के मूड को कौन जाने . ऐसी स्थिति में नीतीश ने खुद को अलग रखना ही ज्यादा हितकर समझा.


लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या नीतीश ने खुद कभी पी एम का उ्मीदवार होने की घोषणा की थी. क्या राजनीति में हां का अर्थ हां और ना का अर्थ ना होता है. जबाव साफ है नही . तो फिर नीतीश के इस एलान के आखिर मायने क्या हैं. संकेत साफ है नीतीश बिहार विधान सभा चुनाव के पहले बनने वाले महागठबंधन का हश्र देख चुके है जब मुलायम सिहं जैसे समाजवादी नेता सब कुछ मिलने के बाद भी भाग खड़े हुए वही यू पी चुनाव में कांग्रेस ने नीतीश से बात करने के बजाय अखिलेश के साथ जाना पसंद किया .


मामला साफ है अगर देश में भाजपा का विकल्प महागठबंधन को बनना है तो कांग्रेस के अलावे सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को अपना अस्तित्व बचाने के लिये एक मंच पर आना होगा इसके लिये सभी को पहल करनी होगी नही तो दिल्ली दूर है. अब देखना है कि नीतीश के इस एलान के बाद बीजेपी विरोधियो का अगला कदम क्या होता है. हालांकि अभी लोकसभा चुनाव के दो साल देर है और दो साल का वक्त कुछ कम भी नही होता. फिलहाल बिहार क्या देश की राजनीति के चाणक्य ने अपना मास्टर स्ट्रोक चल दिया है.

अशोक मिश्र पटना

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