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राहुल , अखिलेश, तेजस्वी ---- जय श्री राम!

Special Coverage News
9 Aug 2017 7:53 PM IST
राहुल , अखिलेश, तेजस्वी ---- जय श्री राम!
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बात बीते 27 जुलाई की है. राज्य में एन डी ए की नयी सरकार बनने के बाद 28 जुलाई को विधान सभा का एक दिवसीय सत्र आहूत की गयी थी जिसमें नीतीश कुमार को अपना बहुमत साबित करना था. इस बावत कांग्रेस विधायक दल की बैठक होटल चाणक्या में बुलायी गयी थी , मैं शाम करीब 4 बजे होटल पहुंचा तो कई माननीय विधायक वहां बैठे थे लेकिन सबके चेहरे से खुशी गायब थी.


एक कार्यकर्ता ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया. मैने पूछा क्या हाल है. उसने रूआंसे शब्द में बोला अब क्या पुत्र मोह के कारण हमलोग बर्बाद हो गये. मैने पूछा कैसे उसने जो बताया तो मुझे घोर आश्चर्य हुआ. उसने कहा राहुल के चलते केन्द्र से बेदखल हुए , अखिलेश के चलते यू पी में मिट्टी पलीद हुई और अब तेजस्वी के चलते बिहार में सत्ता गयी.यानि सोनिया गांधी , मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद के पुत्र मोह के चलते यह सब हुआ. मैं कुछ देर तक सोचता रहा कि क्या सही में इन तीनों युवाओं के चलते उनकी पार्टी को काफी नुकसान हुआ है या ये विरोधियों की सोची समझी साजिश का एक अंग है.


हालांकि इस कांग्रेसी कार्यकर्ता के उदगार को फिर शोसल मीडिया में भाजपा समर्थकों ने भी सही बतलाया और उनकी जमकर खिल्ली उडायी और इसमें प्रकाश सिंह बादल के बेटे का भी नाम जोड़ा. लेकिन क्या बास्तव में ये तीनो युवा नेता नाकाबिल है जिनकी वजह से इनकी पार्टी संकट मे आ गयी है. इसके लिये हमें थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा. पहले राहुल गांधी की बात करें. याद कीजिये 2000 -- 2004 का जमाना . केन्द्र में एन डी ए की सरकार थी. पूरी तरह से फील गुड की सरकार,. दूर - दूर तक कांग्रेस की सत्ता में आने की कोई संभावना नही . फील गुड इतना की बाजपेयी जी ने पहले ही चुनाव कराया . परिणाम केन्द्र में यूपीए की सरकार बनी. राहुल युवराज बने , सरकार पूरे पांच साल चली. फिर 2009 में लोकसभा का चुनाव. राहुल गांधी की टीम विजयी. कई राज्यों में भी कांग्रेस का जलवा. लेकिन यह सुरेश कलमार्डी , कनिमोझी, डी राजा जैसैे नेताओं के पाप के कारण सरकार की भद्द पिटी. जिसका परिणाम 2014 का लोकसभा चुनाव रहा. कांग्रेस बुरी तरह पराजित . भ्रष्टाचार की खिलाफत करने वाले राहुल के सिर पर हार का ठीकरा फूटा और विरोधियो ने तो उनका नाम पप्पू रख दिया. उस राहुल गांधी को जिसने शिवसेना की मांद में जाकर उसका जबाब दिया तो किसान आन्दोलन के लिये सडको पर आये. दलितो के घर पर जाकर भोजन किया.


अब चले अखिलेश की ओर . 2010 में सत्ता में आने के पहले पूरे यू पी का दौरा साईकिल से किया . जीत हासिल हुई तो पांच साल सरकार चलायी युवाओं के लिये काम किया . लेकिन पिता और चाचा के भ्रष्टाचार की लडाई में बलि का बकरा बने,यानि अखिलेश की सारी सफलता ताक पर .


अब बात करें तेजस्वी यादव की . 2010 में राजनीति में आये तेजस्वी ने पांच साल तक पार्टी के लिये काम किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखा. लेकिन 2015 में विधान सभा चुनाव में महागठबंधन को बहुत मिलने पर उप मुख्यमंत्री के पद पर बैठे. लगभग दो साळ के कार्यकाल में तेजस्वी ने कोई ऐसा काम नही किया जिससे महागठबंधन की सरकार के चेहरे पर दाग लगें. लेकिन उनके पिता के मामले को लेकर तेजस्वी भी विरोधियो के रड़ार पर आये और उन्हें सत्ता से बेदखल ही नही होना पड़ा उनके चलते कांग्रेस की भी फजीहत हुई.


अब सवाल उठता है कि इन तीनो युवा नेताओं को एक सोची समझी राजनीति के तहत बदनाम किया जा रहा है या राजनीति के बड़े घराने से ताल्लुक रखने के कारण इन्हें हाशिये पर धकेलने की कोशिश हो रही है. जबाव साफ है राजनीति घरानो के काऱण ही ये सत्ता के केन्द्र विंदू बने यानि इतनी जल्दी सत्ता इनके पास आयी. यही फायदा इन्हें नुकसान भी पहंचाया है. लेकिन अब इन तीनो की राजनीतिक गतिविधि को देंखे तो ये तीनो युवा नेता फिलहाल निराश नही दिख रहे. अपनी ताकत कमजोर होने के बावजूद गुजरात मामले में राहुल एंड कंपनी की कामयाब रणनीति यह बताने के लिये काफी है वे हार नही माने हैं.


यही हाल अखिलेश और तेजस्वी का है. दोनों ने आज से ही यानि 9 अगस्त से अपने अभियान की शुरूआत की है इसका परिणाम क्या होगा खुदा जाने . लेकिन इतना तय है कि इन नेताओ की टीम में अनेक अनुभवी और काबिल युवा और बुजुर्ग नेता है जिन्होनें राजनीति के उतार चढाव को नजदीक से देखा है. भारत के लोकतंत्र की यह खूबसूरती रही है कि वह हर किसी को मौका देती है. इसलिये राहुल , अखिलेश और तेजस्वी के राजनीति की इति श्री मानने वाले को शायद यह भान नही हो कि जिनका वे जय श्री राम यानि अंत समझ रहें हों वे अपने माथे पर लगे कलंक को वे जय श्री राम ( यानि भाजपा विरोध )के बहाने ही धोनें मे कामयाब हो. लेकिन इसके लिये उन्हें काफी दिनों तक इंतजार ही नही संघर्ष भी करना पड़ेगा.

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