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पाकिस्तान पूरे विश्व के लिए स्थायी समस्या ,भारत से रिश्ता आसान नहीं

डा. राधेश्याम द्विवेदी
अमेरिका-चीन के बीच प्रतिस्पर्धा:-
पाकिस्तानी सरकार की रिपोर्ट के अनुसार उसकी एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. अधिकांश संपत्ति पर पंजाब प्रांत के चुनिंदा परिवारों का कब्जा है. आतंकी संगठन गरीब युवकों को बरगला रहे हैं. पाकिस्तान में अपने-अपने सैन्य ठिकानों को मजबूत बनाने के लिए अमेरिका और चीन के बीच एक प्रतिस्पर्धा चल रही है. अमेरिका उसे एफ-सोलह लड़ाकू विमान दे रहा है, चीन आतंकी सरगना हाफिज सईद को बचाने के लिए उसको संरक्षण दे रहा है. दक्षिण चीन सागर में बढ़ते सामरिक तनाव ने पाकिस्तान की अहमियत बढाई है. चीन वहां कृत्रिम बन्दरगाह बना रहा है, अमेरिका ने वहां सामरिक निगरानी बढ़ा दी है. पाकिस्तान स्थित अपने-अपने सैन्य ठिकानों को मजबूत बनाकर अमेरिका और चीन एक-दूसरे पर दबाव बढ़ाना चाहते हैं. पाकिस्तान पर तात्कालिक मेहरबानियों का यह बड़ा कारण है. इसे नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति से नहीं जोड़ना चाहिए. हमारे लिए संतोष की बात यह है कि संप्रग सरकार के समय रक्षा तैयारियों की जो अवहेलना की गयी, उस कमी को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जा रहा है. भारत के लिए यह सामरिक शक्ति अर्जन का समय है. इसमें मेक इन इंडिया का भी सहारा लिया जा रहा है.
पाकिस्तान का हौसला बढ़ाना:- अमेरिका और चीन निहित स्वार्थों के कारण पाकिस्तान का जिस प्रकार हौसला बढ़ा रहे हैं, उससे भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए आतंकी खतरा बढ़ने की उम्मीद है. जिस आतंकी सरगना का चीन ने बचाव किया वह पाकिस्तान में समानान्तर शरिया अदालत चला रहा है. उसके मदरसे चलते हैं. यहां जिहादी आतंकी तैयार होते हैं. विश्व की प्रत्येक आतंकी वारदात में पाकिस्तान के लोग शामिल रहते हैं. यदि विश्व समुदाय पाकिस्तान पर लगाम नहीं कसेगा, तो आतंकवाद को रोकना असंभव हो जाएगा. उसकी हकीकत किसी से छिपी नहीं है. पठानकोट जांच पर उसने जिस प्रकार पैंतरे बदले उस पर कोई यकीन नहीं कर सकता. कहा गया कि पाकिस्तान को बदनाम करने के लिए भारत ने खुद ही हमला कराया था. यह हास्यास्पद दलील थी. पाकिस्तान तो अपने कर्मों से ही बर्बाद है. ओसामा लादेन को छिपाने वाले, तालिबान, अलकायदा को संरक्षण देने वाले, हाफिज जैसे अनेक सरगनाओं को गतिविधि जांच लाने की छूट देने वाले मुल्क को बदनाम करने के अलग से प्रयास की क्या आवश्यकता हो सकती है ? पाकिस्तान में तो शिया मस्जिदों, ईसाईयों, स्कूलों आदि में आये दिन विस्फोट होते हैं. क्या यह माना जाए कि ये भी उसे बदनाम करने के प्रयास है.
पठानकोट हमला पाकिस्तानी करतूत:-पाकिस्तान पठानकोट हमले की सच्चाई जानता है. मुंबई हमले की भांति यह भी पाकिस्तानी करतूत थी. लेकिन वह सच्चाई का सामना नहीं करना चाहता, इसलिए भाग रहा है. जबकि पठानकोट प्रकरण पर पाकिस्तान का असली चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है. यह तय हुआ कि यहां निर्वाचित प्रधानमंत्री भारत का साथ संबंध सामान्य बनाने की इच्छा को क्रियान्वित करने की स्थिति में नहीं है. इस मामले में वह सेना के रहमोकरम पर रहने को विवश है. यही कारण है कि नवाज शरीफ को भी कई बातें बाद में पता चलती है. उनका राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और भारत स्थित उच्चायुक्त सेना के प्रवक्ता रूप में बयान जारी करते हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तान ने राष्ट्रीय हित में अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में कसर नहीं छोड़ी. नवाज शरीफ भी मोदी के प्रयासों के समर्थक थे, लेकिन आंतरिक हालात उन्हें लाचार बना देते हैं. वहीं भारत की विपक्षी राजनीति भी नरेन्द्र मोदी के विरोध पर केंद्रित है. यदि मोदी ने प्रारम्भ से ही पाकिस्तान के प्रति कठोरता दिखाई होती तो अब तक विपक्ष ने संघ परिवार को लपेटते हुए देश के भीतर नफरत का माहौल बना दिया होता.
छब्बीस ग्यारह आतंकी हमले के बाद पाकिस्तानी जाचं दल भारत आए, तो मनमोहन सिंह सरकार अमन पसंद हो गयी, पठानकोट हमले के बाद वही जांच दल भारत आता है, तो नरेन्द्र मोदी सरकार राष्ट्रीय हितों के खिलाफ कार्य करने वाली हो गयी. दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनका स्वास्थ्य मंत्री महान देश भक्त हो गए. मोदी पीठ में छूरा भोंकने वाले हो गए. कांग्रेसी दिग्गज मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद पाकिस्तान जाकर नरेन्द्र मोदी की सरकार को उखाड़ने में सहयोग देने की बात करते हैं. और यह दावा करते हैं कि इस सरकार के रहते पाकिस्तान से संबंध सामान्य नहीं हो सकते. ऐसे विपक्ष के चलते इस मामले को राष्ट्रीय सहमति बनाना कितना मुश्किल है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
आंतरिक सुरक्षा:- फिर भी राष्ट्रीय अथवा आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना केन्द्र की जिम्मेदारी है. मोदी ने पाकिस्तान और चीन सहित सभी पड़ोसियों से संबंध सामान्य बनाने के पूरी ईमानदारी से प्रयास किए. उसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली. ऐसे में सीमा पार के आतंकवाद को रोकने के लिए अब कठोर कदम उठाने होंगे. ध्यान रखना होगा कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है.जब ताशकन्द और शिमला की मेज पर जीती बाजी लौटानी पड़े तो युद्ध को टालना ही बेहतर है. केन्द्र को आन्तरिक और सीमा पार के संदिग्धों के प्रति अब कठोरता दिखानी होगी. पठानकोट में जब पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी संदिग्ध हो, जब कश्मीर घाटी में पाकिस्तान का झण्डा फहराने वाले मौजूद हो, तब समझ लेना चाहिए कि समस्या गंभीर है. आंतरिक सुरक्षा के लिए प्रदेशों के साथ साझा प्रयास करने की योजना को मोदी ने प्राथमिकता दी थी, लेकिन विपक्ष के अडंगे से ऐसा संभव नहीं हो सका. पाकिस्तान स्थायी समस्या:-पाकिस्तान हमारे लिए स्थायी समस्या है. जब उस देश का उच्चायुक्त विदेश नीति के संबंध में बड़े ऐलान करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि सत्ता का वास्तविक नियंत्रण किसके पास है. भारत स्थित पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल वासित की हैसियत देखिए, वह भारत के साथ बातचीत की संभावना से फिलहाल इन्कार करता है. उसने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच अविश्वास की मुख्य वजह कश्मीर है. दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया की बहाली के लिए कश्मीर मामले का समाधान जरूरी है. यह वही अब्दुल वासित है, जो अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से बातचीत के लिए हर वक्त तैयार रहता है. सच्चाई यह है कि पठानकोर्ट हमले में पाकिस्तानी हाथ के सबूत इतने पुख्ता थे, कि उसका जांच दल भी इनकार नहीं कर सकता था. इसीलिए उसने अब्दुल वासित को आगे करके बयान दिलवाया है. जिससे पठानकोट की जगह कश्मीर मसले को तूल दिया जा सके. फिलहाल जब पठानकोट की बात चल रही थी तब कश्मीर का मुद्दा बीच में लाने का औचित्य ही नहीं था. पाकिस्तान को सुधारने हेतु विश्व समुदाय को आगे आना होगा. क्योंकि यहां पनाह लेने वाले आतंकी विश्व के लिए समस्या बन रहे हैं.
भारत पाक रिश्तों की राह आसान नहीं:-जब भी भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार होने की उम्मीद की मद्धिम-सी रोशनी नजर आती है, उसी समय कोई-न-कोई ऐसी घटना घट जाती है जो उस रोशनी पर अंधेरे की चादर डाल देती है. हालांकि भारत में विपक्षी दल पठानकोट के वायुसेना के ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमलों की जांच में सहायता देने के उद्देश्य से आए पाकिस्तानी जांच दल का विरोध कर रहे थे, लेकिन सरकार और उसके समर्थक यह मान कर चल रहे थे कि इससे भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी. इसी मौके पर पाकिस्तान ने दावा पेश कर दिया है कि उसने भारतीय नौसेना के एक कमांडर को बलोचिस्तान में गिरफ्तार कर लिया है और वह भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करता था तथा वहां पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रहे बलोचियों को सहायता पहुंचाता था.उसकी गिरफ्तारी द्वारा पाकिस्तान अपने उस आरोप को सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है जिसे वह बहुत लंबे समय से लगाता आ रहा है. आरोप यह है कि बांग्लादेश की ही तर्ज पर भारत सरकार बलोच पृथकतावादियों को समर्थन और सहायता दे रही है और उसका लक्ष्य उसे पाकिस्तान से अलग करना है. जाधव की गिरफ्तारी पर पाकिस्तानी मीडिया में भी बहुत सनसनी फैली हुई है और जैसा कि प्रसिद्ध पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका ने कहा है, "पाकिस्तान को उसका अजमल कसब मिल गया है." फर्क यह है, और यह बहुत बड़ा फर्क है कि जहां अजमल कसब का पाकिस्तान सरकार से कोई संबंध नहीं था, वहीं गिरफ्तार भारतीय का संबंध नौसेना और रॉ से है, यानी बलूचिस्तान में भारत का हस्तक्षेप सिद्ध होता दीख रहा है. पाकिस्तान सेना की ओर से एक वीडियो भी जारी किया गया है जिसमें गिरफ्तार भारतीय का इकबालिया बयान है.
भारत का इंकार:-भारत का कहना है कि कुलभूषण जाधव नामक यह व्यक्ति नौसेना से 2001 में ही स्वेच्छिक अवकाश ले चुका है और वह ईरान में कारोबार कर रहा था. उसका रॉ या भारत सरकार की किसी भी एजेंसी से कोई संबंध नहीं है. हो सकता है उसे ईरान से अपहृत करके बलूचिस्तान ले जाया गया हो और वहां उसकी गिरफ्तारी दिखा दी गई हो. उसके पास से हुसैन मुबारक पटेल के नाम का एक भारतीय पासपोर्ट भी बरामद हुआ है. कोई भी जासूस अपने ही देश का पासपोर्ट लेकर नहीं चलता. पाकिस्तान के इस कदम ने नरेंद्र मोदी सरकार और उसके समर्थकों के इस दावे पर पानी फेर दिया है कि पाकिस्तानी जांच दल को, जिसमें खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक उच्चाधिकारी भी शामिल है, पठानकोट आने की इजाजत देकर उसने भारत की ओर से इसी तरह का दल पाकिस्तान भेजकर मसूद अजहर जैसे आतंकवादी सरगनाओं से पूछताछ का रास्ता साफ कर लिया है. माना जा रहा था कि भारत के इस कदम की पाकिस्तान में सराहना की जाएगी कि उसने आईएसआई के आला अफसर और जांच दल के अन्य सदस्यों के लिए अपने बेहद संवेदनशील वायुसैनिक ठिकाने के दरवाजे खोल दिए. लेकिन हुआ इसका उल्टा ही है. कुलभूषण जाधव से अभी तक भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को मिलने की इजाजत नहीं मिली है और उसके मिलने की संभावना भी बहुत ज्यादा नहीं लगती.
विरोधी हित:-बलूचिस्तान में चीन ग्वादर बंदरगाह बना रहा है और वहां चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडॉर बनाने की योजना भी है. उधर ईरानी बलूचिस्तान में भारत बहुत दिनों से सक्रिय है. अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए उसे वैकल्पिक मार्गों की तलाश है. पाकिस्तानी सीमा के नजदीक जाहेदान में वह अपने वाणिज्यिक दूतावास के जरिये पाकिस्तान पर नजर रखता आया है. यह बहुत स्वाभाविक है कि भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के खिलाफ जासूसी करें क्योंकि सभी देश अपने दोस्तों और दुश्मनों पर नजर रखते हैं. अमेरिका द्वारा जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की जासूसी कराना इसका ताजा उदाहरण है. लेकिन भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के जासूसों के साथ मानवीय व्यवहार नहीं करते और अक्सर पकड़े जाने के बाद उनका जीवन जेलों में सड़ते-सड़ते खत्म हो जाता है. इसके विपरीत शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ एक दूसरे के जासूसों को पकड़ने के बाद उनकी अदला-बदली कर लिया करते थे. जाने-माने भारतीय रक्षा विशेषज्ञ सी. राजामोहन का विचार है कि अब समय आ गया है जब भारत और पाकिस्तान को भी यही व्यवस्था अपना लेनी चाहिए.लेकिन ऐसा हो पाएगा, इसमें संदेह है. अभी तक के घटनाक्रम को देख कर तो यही लगता है कि भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों में कदमताल चलती रहेगी और वे किसी न किसी कारण से
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