रविश ने फिर की गोदी मीडिया की बात, और मचा हंगामा

देश के कारोबारी गौतम अडानी की कंपनी अडानी पॉवर लिमिटेड की तरफ से मिली कानूनी नोटिस के बाद प्रतिष्ठित पत्रिका ईपीडब्ल्यू के संपादक परंजय गुहा ठाकुरता ने इस्तीफा दे दिया तो सोशल मीडिया पर विभिन्न पत्रकारों ने तीखी प्रतिक्रिया दी.
इन पत्रकारों में एनडीटीवी के एंकर और वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार भी शामिल हैं. रवीश कुमार ने लिखा है कि ये घटना इस बात की प्रतीक है कि किस तरह कॉर्पोरेट घराने लंबी और महंगी कानूनी प्रक्रिया की आड़ में मीडिया को चुप कराते हैं. अडानी पॉवर लिमिटेड ने ईपीडब्ल्यू में छपी दो रिपोर्ट के हटाने और माफी मांगने की मांग की थी. ऐसा न करने पर पत्रिका पर मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी थी.
रविश कुमार ने लिखा परॉन्जॉय गुहा ठाकुर्ता ने अदानी पावर लिमिटेड के लेकर EPW में दो रिपोर्ट छापी। एक रिपोर्ट थी कि कैसे एक हज़ार करोड़ की कर वंचना की गई है और दूसरी कि कैसे सरकार ने 500 करोड़ का फायदा पहुँचाया। अदानी ग्रुप ने मानहानि का नोटिस भेज दिया और कहा कि दोनों रिपोर्ट हटा दें। EPW को संचालित करने वाले समीक्षा ट्रस्ट ने कहा कि दोनों रिपोर्ट हटा दें। परॉन्जॉय गुहा ठाकुर्ता ने मना कर दिया और इस्तीफ़ा दे दिया। The Wire पर दोनों स्टोरी है और वायर का कहना है कि नहीं हटायेंगे।
आप दोनों रिपोर्ट को पढ़ें और ज़ोर ज़ोर से गायें- गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों मीडिया।
गोदी मीडिया ही आप पाठकों की नियति है। जनता सत्ता कारपोरेट कुटुंब चुनती रहेगी। अकेला पत्रकार जोखिम उठाता रहेगा। मारा जाता रहेगा। बहस चलती रहेगी। ये सूचना हिन्दी में इसलिए दी कि हिन्दी के अख़बारों की अब औकात नहीं रही। वे आहत ज़रूर हो जायेंगे और गिनाने लगेंगे कि हमने ये किया वो किया। जबकि ये वो के अलावा यही किया कि रोज़ छपते रहे और आप पैसे देते रहे। अखबारों को भी पता है कि गोदी मीडिया ही सच्चाई है। यह जानकर आप पर क्या फर्क पड़ेगा, हम नहीं जानते। द वायर की स्टोरी का लिंक दे रहा हूँ । वायर हिन्दी में भी है ।
नोटिस भेजकर डराने का चलन ज़्यादा हो गया है। मानहानि की आड़ में ताक़तवर खेल खेल रहे हैं। कोई इन खूंखार वकीलों के आगे कैसे टिकेगा। केस मुक़दमा लड़ने के लिए कहाँ से पैसे लायेगा। इस डर के कारण ही कोई कारपोरेट पर सवाल नहीं उठाता है। ठाकुर्ता उन विरले पत्रकारों से हैं जो कारपोरेट और सरकार के जटिल खेल को समझते थे और भांडाफोड़ कर देते थे। अब वे भी हटा दिये गए। भारत की आम जनता तक तो ये पोस्ट पहुँचेगा नहीं। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि एक आवाज़ कुचल दी गई।
सवाल ठाकुर्ता का नहीं है। आपका ही है। जो युवा नौकरी और तमाम सवालों को लेकर मीडिया हाउस के बाहर घूम रहे हैं, उन्हें अब किसी वकील के पास जाना चाहिए। पूछना चाहिए कि आपके पास कोई नोटिस है जिसे भेज कर मीडिया हाउस से कह सकें कि ये ख़बर आपने क्यों नहीं छापी? पत्रकारिता को दब्बू बनाने में जनता क्यों साथ दे रही है? वो क्यों चुप है? क्या वो मरना ही चाहती है?
जनता को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। हिन्दू मुस्लिम विवाद के नए नए संस्करण लाँच होते रहेंगे। वो उसमें उलझ कर मौज करे। जब जनता ही पत्रकारों का साथ नहीं देगी तो पत्रकार क्या करे।
Satyagrah, newslaundry, scroll, wire और altnews की साइट पर जाते रहिए। पता नहीं ये भी कब तक रहेंगे। कोई केस मुक़दमा या संपादकों पत्रकारों पर छेड़खानी का आरोप लगाकर फिक्स करने की योजना बन ही गई होगी। फिर इनकी ख़बरों से आप हिन्दी अख़बारों के स्तर को मिलाते भी रहिए। काफी कुछ सीखेंगे। चैनल तो कूड़ा बन ही गए हैं।
जय हिन्द । जय भारत। जय गोदी मीडिया । ये नारा लगाते हुए ज़मीन पर साँप की तरह लोटिए। मुक्ति मिलेगी।