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माधव बोले, 'मानता हूं कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन फेल हो गया है!' जब फेल हो गया तो हटते क्यों नहीं?
यहां सरकारी प्रवक्ता बनके आने से पहले गोधरा के साबरमती में जले और राम मंदिर आंदोलन में स्वाहा हुए हिंदुओं के घर में झांक आओ, और फिर अखलाक, अफजल, बुरहान के घरों की हालत से उनकी तुलना कर लो

कश्मीर मामले में काश PMO India नरेंद्र मोदी #RSS के मूल विचार पर चले होते तो आज अमरनाथ यात्रियों के मरने की नौबत नहीं आती! वरिष्ठ पत्रकार संदीप देव ने कहा कि मेरा पुराना फेसबुक पोस्ट कोई ढूंढ़ सके तो पाएंगे कि जब भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी थी तो मैंने यह कहते हुए इसका स्वागत किया था कि मोदी संघ की मूल फिलोसोफी की ओर बढ़ रहे हैं। अब कश्मीर समस्या का समाधान शीघ्र होगा!
लेकिन आज अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि PM मोदी तो उस ओर नहीं ही बढ़ रहे हैं, संघ से सीधे भाजपा में आए राम माधव ने संघ की मूल विचारधारा को ही जैसे भुला दिया है! अब वह संघी नहीं, पावर-मैनेजर हैं! माधव अब कह रहे हैं कि 'मानता हूं कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन फेल हो गया है!' अरे जब फेल हो गया है तो हटते क्यों नहीं?
मैंने संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी की जीवनी लिखी है, जिस कारण संघ के अधिकतर दस्तावेजों को पढ़ा है। कश्मीर पर स्वयंसेवकों के बलिदान पर उसमें लिखा है। संघ की अवधारणा है कि जम्मू और लद्दाख को अलग राज्य बनाया जाए, कश्मीर को उससे अलग कर उसे केंद्र के अधीन सेना के हवाले किया जाए और धीरे-धीरे धारा-370 को समाप्त कर वहां देश के अलग अलग हिस्से से लोगों को बसाया जाए। इससे वहां कश्मीरीयत की आड़ में जो इस्लामी राज्य की अलगाववादी अवधारणा रूप ले रही है वह जड़ से समाप्त हो जाएगी!
लेकिन अफसोस नेहरू ने देश में ऐसी बीमारी का बीज बो दिया है कि हर प्रधानमंत्री चाहे-अनचाहे उसी सेक्यूलरिज्म, कश्मीरियत जैसी अलगाववादी अवधारणा की गिरफ्त में फंस जाता है। तुर्रा यह कि देश का पूरा लेफ्ट बौद्धिक बिरादरी इसके लिए इतना शोर मचाता है कि कोई प्रधानमंत्री चाहकर भी नेहरूवाद से खुद को मुक्त ही नहीं कर पाता!
भाजपा वैसे भी सबसे अधिक मीडिया के दबाव में रहने वाली पार्टी है। इसके नेता सोचते कुछ हैं, लेकिन ज्योंही टीवी चैनल खोलते और अंग्रेजी अखबार का पन्ना पलटते हैं, इनकी सोच बदल जाती है!
अच्छा है कि संघ राजनीति में नहीं है, कम से कम उसका मूल चरित्र तो बना हुआ है! अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की नीति तो मीडिया और बौद्धिक तबके में बैठे वामपंथी तय करते हैं!
हिंदुओं ने जिस बड़ी आशा से भाजपा को वोट दिया था, उसमें सेक्यूलरिज्म और कश्मीरीयत के नाम पर वामी-इस्लामी गुंडागर्दी को समाप्त करना सबसे ऊपर था! अफसोस हिंदू केरल, बंगाल और कश्मीर तक आज भी मारा ही जा रहा है!
पाक पर सर्जिकल स्ट्राइक और कश्मीर में आतंकियों पर जो कार्रवाई हुई है, हो रही है और आगे भी होगी- उसका हम सब ने स्वागत किया, आगे भी खूब स्वागत करेंगे, लेकिन समाधान स्थायी चाहिए और वह संघ की अवधारणा पर चल कर ही मिलेगा! संविधान विशेषज्ञों ने भी इस पर हामी भरी है! कोई दिक्कत नहीं है इसको लागू करने में! सुब्रमण्यम स्वामी कई बार सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं इसके बारे में!
कोई मूढमति यहां सरकारी प्रवक्ता बनके आने से पहले गोधरा के साबरमती में जले और राम मंदिर आंदोलन में स्वाहा हुए हिंदुओं के घर में झांक आओ, और फिर अखलाक, अफजल, बुरहान के घरों की हालत से उनकी तुलना कर लो, मेरी बात समझ में आ जाएगी कि हिंदुओं का कोई नहीं है! वह अनाथ है! वह अपने देश में ही मारे जाने, ठुकराए जाने, बेईज्जत होने, जलालत झेलने को अभिशप्त है!
और हां, स्वयं हिंदू ही हिंदू का नहीं है, वह पहले अपनी जात का है- यही मूल समस्या है और इसे पूरी राजनीतिक बिरादरी समझती है!
संदीप देव वरिष्ठ पत्रकार
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