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"न अपील, न वकील, न दलील" ऐसा था आपातकाल

Special Coverage News
26 Jun 2016 8:24 AM GMT
न अपील, न वकील, न दलील ऐसा था आपातकाल
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लखनऊ

25 जून सन 1975 को अपनी सत्ता और कुर्सी सदा सर्वदा बनाए रखने की नियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर देश के बुद्धिजीवियों तथा अपने विरोधी राजनेताओ को मीसा- डी०आई०आर० जैसे काले कानूनों के अंतर्गत कारागारो में बंद कर दिया. आपातकाल की 41व़ी बरसी पर प्रदेश भर के लोकतंत्र रक्षक आज प्रतिवर्ष की भातिं जीपीओ पार्क हजरतगंज स्थित गाँधी प्रतिमा पर एकत्र हुए और दीप जलाकर एवं आपातकाल के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराया.


समिति के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज किशोर मिश्र ने कहा कि 25 जून 1975 को आज़ाद भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेडियों में जकड़ गया था. आपातकाल के कालखंड को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी उन कालरात्रियों को याद करके तन बदन में सिहरन उठ जाती है. तानाशाही सरकार ने "न अपील, न वकील, न दलील" के सिद्धांत पर आपातकाल का विरोध करने वाले समस्त राजनेताओ, विद्याथियो को जेल की काल कोठरियों में डाल दिया गया था, और अनेकों प्रकार की अमानवीय यातनाए देकर आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया, उन्होंने कहा कि जनता के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात कर तत्कालीन तानाशाह ने आचार्य विनोवा भावे तक को अपमानित किया था किन्तु 7 तालों के भीतर कुम्भकरणी नींद सोयी सरकार कों उखाड़ फेकने की कसम खा चुके लोकतंत्र रक्षक "हटे नहीं, डिगे नहीं, डटे रहे". लोकशक्ति और तानाशाह के मध्य हुए इस जबरदस्त संघर्ष में तानाशाह को मुंह की खानी पड़ी और अलोकतांत्रिक शक्तियों को धूल धूसरित करते हुए लोकतंत्र पुनः बहाल हुआ.


विधान परिषद् सदस्य अशोक बाजपेयी ने आपातकाल की यातनाओं को जिक्र करते हुए कहा कि अहिंसक आन्दोलन करके जेल जाने वाले लोगों को रात-रात भर बर्फ की सिल्लियों से बाँध कर लिटाना, नाखूनों में कील ठोकना, पंखो से उल्टा लटकाने जैसी ना जाने कितनी ही अमानवीय यातनाए लोकनायक जयप्रकाश तथा अन्य अनेको लोकतंत्र समर्थक राजनैतिक बंदियों को दी गई| उन्होंने स्व० श्री मोरारजी देसाई को बयालीसबां संविधान संशोधन (मूलाधिकार ख़त्म करने वाला) निरस्त करने का श्रेय देते हुए कहा कि अब कोई भी तानाशाह आपातकाल लगाने जैसी हरकत नहीं कर पायेगा.


इंटरनेशनल सोसिलिस्ट कौंसिल के सचिव दीपक मिश्रा ने आपातकाल का विरोध जताते हुए कहा कि स्वंत्रत भारत में आपातकाल जैसे हालात बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है| आपातकाल बुनियादी तौर पर फांसीवादी मानसिकता की देन है. जबतक शस्त्र और शोषण रहेगा तबतक आपातकाल की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता| 1975 से लेकर 1977 तक की लड़ाई इस बात की साक्षी है कि आपातकाल जैसी परिस्थितियों में समाजवादी सोच के लोग ही सबसे आगे आते है. एशियाई क्षेत्र में अभी भी आपातकाल के संकट छाए हुए है जिससे लड़ना बुद्धिजीवियों, समाजवादी सोच के लोगो और लोकतंत्र रक्षकों की जिम्मेदारी है.


लोकतंत्र सेनानी एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि आपातकाल में लोकतंत्र रक्षकों को स्वमूत्र तक पिलाई गयी और उनका मनोबल गिराने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की अमानवीय यातनाये दी गई, किसी के नाख़ून खीचें गये तो किसी के गुप्तांगो में मिर्च ठूसी गई किन्तु लोकतंत्र रक्षको ने उस बर्बर तानाशाह के सामने सर झुकाने से मना कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप ना जाने कितने ही लोकतंत्र सेनानियों की कारागार के अंदर ही मृत्यु हो गई.


समिति के प्रदेश महामंत्री रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि अपना सिंहासन को बचाने की नियत इंदिरा गाँधी ने देश में एमरजेंसी लगा दी और मनमाना शासन चलाने लगी, आपातकाल के दौरान कानून का राज़ ख़त्म हो गया और बर्तानिया सरकार से भी ज्यादा बर्बर यातनाए राजनैतिक बंदियों को दी गई. उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान किये गए जनान्दोलनों और संघर्षो का ही परिणाम है कि देश में लोकतांत्रिक सरकारे शासन कर रही है.


लोकतंत्र सेनानी भारत दीक्षित ने आपातकाल के उन उन्नीस महीनों को याद करते हुए कहा कि जेल के अंदर प्रतीत नहीं होता था कि आपातकाल का न्रसंश राज कभी ख़त्म होगा और अब हम लोग कभी जेल की काल कोठरियों से बाहर निकल पायेगे. लोकतंत्र रक्षकों के संघर्ष को याद करते हुए उन्होंने कहा आपातकाल के दौरान हुए संघर्ष में समूचा देश जुड़ गया था, और वक्त साक्षी है कि अगर देश में कभी अलोकतांत्रिक शक्तियों ने सर उठाने की कोशिश की है तो इस देश का युवा इसी प्रकार उसका दमन करेगा.


इससे पूर्व लोकतंत्र सेनानियों राज्यपाल श्री रामनाईक को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को संबोधित एक ज्ञापन भी सौपा जिसमे प्रधानमन्त्री से लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भातिं सभी सुविधाए एवं सम्मान देने, समस्त जनपद मुख्यालयों पर लोकतंत्र सेनानियों की स्मृति में एक विजय स्तम्भ की स्थापना करने, तानाशाह के विरुद्ध संघर्ष में अपने प्राण न्योछावर करने वाले लोकतंत्र सेनानियों को शहीद का दर्जा देने, आपातकाल के कालखंड को पाठ्यक्रम में सम्मलित करने एवं लोकतंत्र सेनानियों के लिए पारिवारिक पेंशन( सम्मान राशि) योजना लागू करने की मांग की गई.



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