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सेहत के लिए हानिकारक साबित होंगे गुजरात में कांग्रेस के बापू!
शिव कुमार मिश्र
4 Jun 2017 1:36 PM GMT
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क्या गुजरात में बापू बनायेगे मोदी की राह आसान!
गुजरात विधानसभा चुनाव में अब महज कुछ महीने बाकी हैं. कांग्रेस के लिए चुनाव में बहुत कुछ दांव पर है. लेकिन राज्य में उसके सबसे बड़े कद्दावर नेता कितने दिन साथ रहेंगे, यही तय नहीं है. गुजरात की सियासत के 'बापू' यानी शंकर सिंह वाघेला इन दिनों कांग्रेस की बैठकों से किनारा कर रहे हैं. ट्विटर पर पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई आला नेताओं को अनफॉलो कर चुके हैं. पार्टी की हाईकमान के साथ बातचीत के बाद भी पूछा जाए तो महज इतना कहते हैं कि 'मैं अभी कांग्रेस में हूं.' तो क्या बापू गुजरात में कांग्रेस की सेहत के लिए वाकई 'हानिकारक' होने जा रहे हैं?
क्या है वाघेला की टीस?
नेताओं की हजारों ख्वाहिशें होती हैं लेकिन वाघेला की टीस एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ सूबे का सीएम ना बन पाने की है. 1996 में बीजेपी छोडकर कांग्रेस के समर्थन से राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन 1997 में ही राजनीतिक हालात की वजह से इस्तीफा देना पड़ा. गुजरात के कद्दावर और जमीनी नेताओं में शुमार होने के बावजूद उन्हें बहुत कम वक्त तक राज्य की सबसे ताकतवर कुर्सी नसीब हो पाई है. 1995 में उनकी ये तमन्ना पूरी होते-होते रह गई. बीजेपी को बहुमत मिलने के बाद ज्यादातर विधायक वाघेला के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज देखना चाहते थे. लेकिन बीजेपी आलाकमान ने केशुभाई पटेल का राज्याभिषेक कर दिया. बीजेपी नेतृत्व पर दबाव डालकर चंद महीनों के भीतर ही वो सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहे. बाद में बीजेपी तोड़कर अपनी राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाई. इस दांव ने उन्हें कांग्रेस की बैसाखियों के सहारे मुख्यमंत्री तो बनाया लेकिन सिंहासन एक साल से ज्यादा उनके पास नहीं टिका. वाघेला ने नया दांव खेला और कांग्रेस का दामन थामा. अब जब उनके करियर का क्लाइमेक्स नजदीक है, वाघेला चाहते हैं कि कांग्रेस उन्हें बतौर सीएम उम्मीदवार पेश करे. दिक्कत ये है कि कांग्रेस बिना किसी चेहरे के मैदान में उतरना चाहती है.
कैसा है गुजरात में 'बापू' का कद?
77 साल के वाघेला जनसंघ से अपनी राजनीति की शुरुआत करने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे. जनसंघ के जनता पार्टी में विलय और बाद में जनता पार्टी के विघटन और 1980 में बीजेपी की स्थापना के समय वो बीजेपी के बड़े नेताओं में शामिल थे. 1980 से 1991 तक वाघेला गुजरात बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रहे. पांच बार लोकसभा सदस्य और एक बार राज्यसभा सदस्य रह चुके वाघेला केन्द्र में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. कांग्रेस में शामिल होने के बाद शंकर सिंह वाघेला गुजरात के कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके हैं और फिलहाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. एक समय में वो बीजेपी के अंदर गुजरात में नरेन्द्र मोदी से भी बड़े नेता थे.
गुजरात में कांग्रेस की हालत
कभी गुजरात को सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा नेता दे चुकी कांग्रेस 1995 से राज्य की सत्ता के बाहर है. पार्टी लगातार पांच विधानसभा चुनाव हारने के बाद अस्तित्व के लिए जूझ रही है. इस दौरान 182 सीटों वाली विधानसभा में उसे कभी 62 से ज्यादा सीटें नसीब नहीं हुईं. आम तौर पर मोदी के उदय को कांग्रेस की इस हालत की वजह माना जाता है. लेकिन हकीकत ये है कि मोदी युग से करीब सात साल पहले ही पार्टी सत्ता से बाहर हो चुकी थी.
साफ है कि पिछले 22 साल में कांग्रेस गुजरात में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में नाकामयाब रही है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर 10 से 12 फीसदी रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि 2017 में क्या कांग्रेस इस अंतर को खत्म कर पाएगी? फिलहाल इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता. ऐसे में कांग्रेस के पास बड़ा और कद्दावर चेहरा शंकर सिंह वाघेला का भी है. क्या कांग्रेस वाघेला की शर्तों पर गुजरात में चुनाव लड़ेगी या फिर कोई कर्नाटक की तर्ज पर कोई फॉर्मूला बनाएगी जिससे सबको संतुष्ट किया जा सके? गुजरात कांग्रेस में वाघेला के अलावा भरत सिंह सोलंकी, अहमद पटेल, शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोढवाडिया, सिद्धार्थ पटेल और मधुसूदन मिस्त्री सरीखे दिग्गज हैं, जिनके बीच आलाकमान को संतुलन साधना है.
शिव कुमार मिश्र
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