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फिर एक मरीज की जिंदगी बचाने के लिए केजीएमयू के डाक्टरों ने 'लीवर' भेजा दिल्ली

फिर एक मरीज की जिंदगी बचाने के लिए केजीएमयू के डाक्टरों ने लीवर भेजा दिल्ली
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लखनऊ: राजधानी स्थित किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डाक्टरों ने आज पुलिस की मदद से एक नया इतिहास रच दिया। केजीएमयू के डॉक्‍टर्स और लखनऊ पुलिस ने मिलकर आज एक और जिंदगी को बचाने की कोशिश में जुटे। दोनों के सहयोग से एक ब्रेन डेड व्यक्ति की मौत के बाद उसका लीवर जिंदगी बचाने के लिए दिल्ली भेजा गया।

देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में शुमार किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के डाक्टरों ने आज फिर एक
मरीज की जिंदगी
बचाने के लिए एक ब्रेन डेड व्यक्ति की मौत के बाद उसका लीवर दिल्ली भेजा। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तत्काल पुलिस से सम्पर्क साधा। और दोनों के सहयोग से लीवर दिल्ली भेजा गया। बता दें ऑर्गन डोनेट के बाद लीवर की 6 घंटे और कि‍डनी की 24 घंटे की लाइफ होती है।

लीवर को एयरपोर्ट तक ले जाने के लिए गुरुवार सुबह एक एम्बुलेंस से लीवर को केजीएमयू से यातायात पुलिस द्वारा ग्रीन कॉरीडोर बनाकर हजरतगंज, राजभवन, कटाई पुल, अर्जुनगंज, अहिमामऊ शहीद पथ, आमौसी एयरपोर्ट तक ले जाया गया। इस दौरान शहरवासियों ने भी एम्बुलेंस को निकलने में सहयोग प्रदान किया। आपको बता दें, केजीएमयू के डॉक्टर इससे पहले 21 अप्रैल 2016 को भी एक लीवर दिल्ली को भेज चुके हैं।

लीवर को एयरपोर्ट ले जाने के लिए पुलिस ने एम्बुलेन्स के जाने के रास्ते पर मोर्चा संभाला था जिससे 28 किलोमीटर की यात्रा 23 मिनट में पूरी कर एम्बुलेंस अमौसी हवाई अड्डे पर पहुंच गई। गोरखपुर के सुन्दर सिंह की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गई थी। उनका ब्रेन डेड हो गया था। इसके उनके परिवार ने अंगदान करने की ठानी और केजीएमयू के डॉक्टरों के संपर्क किया। उनके परिवार ने अंगदान कर दिया। केजीएमयू के डॉ. अभिजीत चन्द्रा के नेतृत्व में उनका लीवर दिल्ली भेजा गया साथ की दोनों किडनी एसजीपीजीआई भेजी गईं। लीवर को एक लाल रंग के वि‍शेष बॉक्‍स में ऑर्गन प्रिजर्वेटि‍व सॉल्‍यूशन और बर्फ के मि‍श्रण में रखा गया था। व्यक्ति की मृत्यु के छह घण्टे बाद तक लीवर और किडनी 24 घण्टे तक प्रत्यारोपित की जा सकती है।

एसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन ने बताया कि मरीज का जीवन बचाने के लिए न केवल संस्‍थान, बल्‍कि आम आदमी भी ग्रीन कॉरीडोर की मदद ले सकता है। इसके लिए शर्त है कि 2 घंटे पहले एसपी ट्रैफिक को सूचना देनी होगी, जिससे तैयारी की जा सके। ट्रैफिक पुलिस जनता के सहयोग के लिए हमेशा तत्पर रहती है। उन्होंने बताया एम्बुलेंस को एयरपोर्ट तक पहुंचाने में जनता का भी बहुत योगदान रहा।

जानें, क्या है ग्रीन कॉरीडोर
आपात स्थिति में किसी मरीज के इलाज के लिए ग्रीन कॉरीडोर मानव अंग को एक निश्चित समय के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए बनाया जाता है। इस समय यह सुविधा बेंगलुरु, दिल्ली, कोची, चेन्नई और मुंबई में उपलब्ध है। अगर फ्लाइट के जरिए उस ऑर्गन को ले जाया जाता है तो एयरपोर्ट अथॉरिटी को भी मदद के लिए कहा जाता है। किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की अपील पर ग्रीन कॉरीडोर लखनऊ की पुलिस ने बनाया। इसमें पुलिस एम्बुलेंस को गुजरने वाले पूरे रूट को खाली करवाती है। एम्बुलेंस के आगे पुलिस की इंटरसेप्‍टर गाड़ी चलती है, ताकि उसकी स्पीड में कोई ब्रेक न लगे, इसलिए इस प्रक्रिया को 'ग्रीन कॉरीडोर' नाम दिया गया है।
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