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नीतीश से पटखनी खाने के बाद, बीजेपी की अक्ल ठिकाने पर

नीतीश से पटखनी खाने के बाद, बीजेपी की अक्ल ठिकाने पर
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नई दिल्ली: कल नरेंद्र मोदी कैबिनेट का विस्तार किया गया जिसमें कुछ नए चेहरे शामिल किए गए जिसमे पांच मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया। इस मंत्रिमंडल पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह का स्टैंप है ये बात साफ तौर पर उभर कर सामने आयी है।

पहले मंत्री बनने के लिए लॉबिंग में खूब खींचतान होती थी लेकिन अब ऐसा कोई झंझट नहीं है। अब ये एक तरह का नॉमिनेशन है। वे जिसे चाहते हैं, उसे चुनकर मंत्री बना देते हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश समेत चार और राज्यों में चुनाव होने वाला है।


भारत का समाज और उसका सामाजिक समीकरण एक राजनीतिक सच्चाई है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। बीजेपी को बिहार में नीतीश कुमार से 'पटखनी' खाने के बाद उन्हें यह बात समझ में आई है।

इसीलिए इन्होंने अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाया है जबकि उन्हें कोई ख़ास राजनीतिक अनुभव नहीं है। उन्हें इसलिए लिया गया क्योंकि वो कुर्मी समाज से हैं और पिछड़ों में कुर्मी समाज का अच्छा प्रभाव है और पूर्वी उत्तर प्रदेश में वो अच्छी तदाद में हैं।

एक आम धारणा थी कि बीजेपी ब्राह्मण और बनियों की पार्टी है। जब ब्राह्मण-बनिया समीकरण पर बीजेपी निर्भर थी तब यह बहुत छोटी पार्टी थी। लेकिन कल्याण सिंह के मामले से यह सबक मिला कि जब तक पिछड़े वोट बैंक का एक महत्वपूर्ण धड़ा टूटकर इनके पास नहीं आएगा तब तक ये जीत दर्ज नहीं कर पाएंगे।

वर्ष 2007 में मायावती ने साबित किया कि यदि ब्राह्मणों को ठीक-ठाक प्रतिनिधित्व दिया जाए तो ये 'विनिंग कार्ड' हो सकता है। इसीलिए पार्टी ने उत्तर प्रदेश चुनाव को देखते हुए यह फैसला लिया है कि अभी किसी भी बड़े और महत्वपूर्ण नेता को न हटाया जाए, जिसे बनाना है, उसे बस बनाओ।

मोदी-शाह को एहसास था कि अगर ब्राह्मण भाजपा से अलग हुए तो मायावती के जीत के आसार बन सकते हैं। नजमा और कलराज, एक मुसलमान और एक ब्रह्मण को हटाने का मतलब आने वाले उत्तर प्रदेश के चुनावों के संदर्भ में समझ आता है।
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