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मोदी जी इस चोर की माँ को कब मारोगे!

मोदी जी इस चोर की माँ को कब मारोगे!
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When will Modiji kill the thief's mother
आज देश मे जो भी भ्रस्टाचार हो रहा है उसकी जननी है चुनाव ओर उनमे लगने वाला अंधाधुन्द पैसा , प्रत्येक विधानसभा सीट पर कम से कम 5 करोड़ रुपया खर्च होता है प्रत्येक प्रत्याशी पर,
जब कोई भी व्यक्ति इतना खर्च कर के चुनाव जीतता है, तो जाहिर सी बात है वो उसको वापस पाने की जुगत लगायेगा ही ओर उस धन को ईमानदारी से वापस पाना नामुमकिन है. इसीलिए यही से शुरू होती है भ्रस्टाचार की गंगा?

आज एक मामूली से पार्षद के चुनाव में भी लाखों खर्च होना मामूली बात है वो भी छोटे शहरों में दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो पार्षद के चुनाव में भी करोड़ो खर्च दिए जाते है. सांसद के चुनाव में ये आंकड़ा 10 करोड़ से ऊपर का बैठता है. ऐसा नही है कि चुनाव आयोग को इसकी खबर नही है, उन्हें सब पता है परंतु फिर भी आंखे बंद रखनी पड़ती है. क्योंकि जानते है इससे कम खर्च में चुनाव जीतना नामुमकिन है.

अब इस पर काबू कैसे पाया जाए ये सबसे बड़ा सवाल है. इसके लिए स्टेट फंडिंग जैसे विकल्पों पर विचार किया गया है. परंतु वे अभी अमली जामा नही पहन पाए है. इस पर बहुत ज्यादा चिंतन मनन की आवश्यकता है और कोई ऐसा रास्ता निकालने की आवश्यकता है. जिसमे चुनावो पर होने वाले खर्च पर पूर्णतया काबू रखा जाए और जो थोड़ा खर्च होना है वो भी सरकार द्वारा वहन किया जाए ताकि योग्य उम्मीदवार जो पैसे से मजबूत न हो वे भी चुनाव लड़ सके अन्यथा आज चुनाव सिर्फ पैसे वालो का शगल हो कर रह गया है.

इसमें उन लोगो की हालत का अंदाजा लगाया जाना चाहिए जो चुनाव लड़ते तो है, परंतु हार जाते है. ऐसे लोग जो पैसा लगाते है. चुनावो के बाद उनकी स्तिथि हारे हुए जुआरी जैसी हो जाती है. चुनावो से पहले एक सर्वे होना चाहिए. जिसमें जनता से जानना चाहिए कि वे किसे अपना नेता मानते है और उसके बाद फिर उनमें से उम्मीदवार चुन कर उनको सरकार की ओर से चुनावी खर्च दिया जाना चाहिए. ताकि चोर की माँ को मारा जा सके जिससे चोर पैदा ही न हो.

विनीत जैन
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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