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लखीमपुर में पत्रकार की खनन माफिया ने कराई हत्या, साथी के मरने पर मीडिया चुप क्यों?

पुलिस ने दुर्घटना का दर्ज किया मुकदमा, मिलीभगत से होता है खनन

लखीमपुर में पत्रकार की खनन माफिया ने कराई हत्या, साथी के मरने पर मीडिया चुप क्यों?
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लखीमपुर में पत्रकार की खनन माफिया ने कराई हत्या। पुलिस ने दुर्घटना का दर्ज किया मुकदमा। क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हो रहा खनन का खेल।घटना के दो घंटे बाद पहुची पुलिस,आक्रोशित लोगो ने किया लखीमपुर मैगल गंज मार्ग जाम।
लखीमपुर खीरी जिले में बेख़ौफ़ खनन माफिया ने एक पत्रकार की ट्रेक्टर ट्राली से कुचलवा कर के निर्मम हत्या करा दी गयी,वही चंद कदमो की दुरी पर बनी पुलिस चौकी ने घटना की जानकारी होंने के बावजूद भी घटना स्थल पर पहुचना मुनासिब नही समझा।

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मिली जानकारी के अनुसार थाना नीमगाँव के बेहजम कस्बा निवासी पत्रकार शैलेंद्र मिश्र उर्फ़ मिंटू रोज की तरह शाम करीब सात बजे अपने घर से निकल कर के इलाहाबाद बैंक के पास चोराहे पर पान की दुकान के पास खड़े थे। तब तक तेज़ रफ़्तार से उलटे हाँथ पर आ रहे ट्रेक्टर ने शैलेंद्र मिश्र को टक्कर मार दी। जिस से शैलेंद्र की घटना स्थल पर ही मौत हो गयी।
घटना की जानकारी होते ही लोगो की भीड़ जुटने लगी,लेकिन घटना स्थल से पांच सौ मीटर की दुरी पर बनी पुलिस चौकी ने घटना की जानकारी होने के दो घण्टे बाद भी मौके पर पहुचना जरुरी नही समझा। उस बात से मृतक पत्रकार के परिजनों ने आक्रोशित होकर के शव को रोड पर रख कर के जाम लगा दिया,जाम लगते ही प्रशासन के हाँथ पाँव फूलने लगे,लेकिन पत्रकार के परिवार को न्याय नही मिला।

तो दो बार बदलवाई गयी थी तहरीर
पत्रकार हत्या की घटना को छिपाने व खनन माफिया रियासत को बचाने के लिए दो बार तहरीर बदलवाई गयी थी। इसका खुलासा तब हुवा जब आज हमारे प्रतिनिधि ने उनके परिवार वालो से बात की। तो मृतक पत्रकार के भाई शिशु मिश्र ने बताया कि एसडीएम व थानेदार ने कहां कि कहा मुकदमा लड़ते लडते फिरोगे दुर्घटना लिखवाओगे तो कुछ क्लेम मिल जायेगा।जब इस बारे में नीम गाव थानाध्यक्ष संजय कुमार सिंह से बात की गयी तो उन्होंने ठीक है भइया ठीक है कह कर के फ़ोन काट दिया।

आखिर शाहजंहापुर हो या लखीमपुर खीरी हो यंहा तो पत्रकारिता का पेशा करना मौत को दावत देना जैसा है। पिछली सरकार में एक पत्रकार को पुलिस ने जलाकर मार डाला तो कुछ नहीं हुआ. तो ये सरकार क्या करेगी इस पत्रकार की मौत पर, और एसडीएम ने परिवार को ठीक समझाया कि आखिर जिन्दा रहकर जब कुछ नहीं कर पाए तो मरकर ही क्या कर लेगा एक पत्रकार। अरे पत्रकारों होश में आओ आज ये मरने वाला फिर अकेला रह गया तो मरना तुमको भी पड़ेगा। अपनी असलियत में वापस आओ और अपने संस्थान से बात करो आगर आप हमने सुरक्षित होने का वादा नहीं करोगे तो हम कवरेज नहीं करेंगे। तब भले ही कुछ हो अन्यथा इस तरह ही घटनाएँ होती रहेंगी।
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