
अखिलेश सरकार की पकड़ी गई एक और गलती, जानकर होंगे हैरान!

नोएडा प्राधिकरण के पूर्व इंजीनियर इन चीफ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से सीआइबी की जाँच के आदेश न हो इसके लिए उत्तर प्रदेश की पूर्व सपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को उनकी फीस के लिये 21.25 लाख रूपये खर्च किये थे।
इस बात का खुलासा इस मामले से जुडी नूतन ठाकुर की एक आरटीआई से पूंछे गये सवाल के जवाब में दी गयी जानकारी से मिला। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिये तत्कालीन समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को 8.80 लाख, हरीश साल्वे को 5.00 लाख, राकेश द्विवेदी को 4.05 लाख और दिनेश द्विवेदी को 3.30 लाख अर्थात कुल मिलाकर 21.25 लाख रुपये का भुगतान उनकी फीस के रूप में किया गया था।नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाई कोर्टकी लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमे उन्होंने यादव सिंह के भ्र्ष्टाचार की जाँच सीबीआई से करने की मांग की थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकार का और याचिकाकर्ता का पक्ष सुनाने के बाद इस मामले की जाँच सीबीआई से कराने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी और 16 जुलाई 2015 को सुप्रीम कोर्ट में पहली सुनवाई के दिन ही अदालत ने ख़ारिज भी कर दी थी। उस समय की तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार ने यादव सिंह को बचाने के लिये सुप्रीमकोर्ट में मामले की पैरवी करने के लिये चार अधिवक्ताओं को नियुक्त किया था। गौर तलब हैं कि नोएडा प्राधिकरण के पूर्व इंजीनियर इन चीफ यादव सिंह उस समय प्राधिकरण में रहते हुये अपने चहेतो को हज़ारो करोड़ के टेंडर बिना किसी नियम का पालन किये दे देने के आरोप में आज कल जेल में बंद हैं औरआयकर के छापे में उनके पास हज़ार करोड़ के आसपास सम्पति होने का पता भी चला था।
यादव सिंह मायावती की सरकार में बहुत ही रसुख वाले अधिकारी हुआ करते थे जबकि उन्होंने नोएडा प्राधिकरण में जुनियर इंजीनियर से नौकरी शुरू की थी। मायावती के शासनकाल में उनका कद किस कदर शक्तिशाली हुआ था इसका अंदाज़ इस बात से भी लगाया जा सकता हैं कि प्राधिकरण के चेयरमैन की नियुक्ति यादव सिंह के इशारे पर हुआ करती थी।
2012 में मायावती के चुनाव में हारने के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार ने न केवल निलंबित कर दिया था बल्कि यादव सिंह के खिलाफ जाँच भी बैठा दी थी। बाद में यादव सिंह के तार तत्कालीन अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के एक सांसद के माध्यम से जुड़े और फिर दोषमुक्त करते हुये समाजवादी पार्टी की सरकार ने यादव सिंह को तीनो ही प्राधिकरण की जिम्मेंदारी सोप दी थी।