
क्यों? क्यों है इतनी खामोशी? क्या सिर्फ इसलिए मरने वाले सवर्ण थे, ब्राह्मण थे!

पांच नृशंस हत्याएं सूबे के राजधानी के बगल के जिले रायबरेली के ग्रामीण अंचल में हो जाती है। जिस देश में एक हत्या पर भूचाल आ जाता हो उस देश में पांच हत्याओं पर ख़ामोशी क्यों? यह घटना उस शहर में हुईं जिस पर गांधी परिवार अपना कॉपीराइट मानता है। इस पर हो रही कार्यवाही से मृतकों के परिवार संतुष्ट नहीं। उनके अनुसार इस बड़ी वारदात के सारे दोषी अभी नहीं पकड़े गए हैं। इसका मास्टर माइंड भी कोई और है जिसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
इतनी बड़ी निर्मम हत्या हुई फिर भी कहीं कोई हलचल नहीं। कोई प्रदर्शन नहीं। कोई एनजीओ धमाका नहीं। कोई मांग नहीं। कोई काला फीता नहीं और टीवी की कोई स्क्रीन भी काली नहीं। लोकतंत्र संकट में नहीं। अभिव्यक्ति को खतरा और धर्मनिरपेक्षता को भय नहीं। कोई अवार्ड वापसी भी नहीं, साहित्य के प्रगतिशील खेमे से कोई काव्यपाठ नहीं, कहीं कोई निबंध लेखन नहीं। कहीं वामपंथी उभार नहीं। पक्ष खामोश है और विपक्ष को सन्नाटा मार गया है। तीन तलाक और जौहर यूनिवर्सिटी से लेकर सेना तक हर मुद्दे पर बिना मांगे राय देने वाले आजम खां चुप हैं। क्यों? क्यों है इतनी खामोशी? क्या केवल इसलिए क्योंकि मरने वाले सवर्ण थे, ब्राह्मण थे।
आज जब प्रसाशन पर दबाब बढ़ता नजर आ रहा था तो सीएम योगी ने मृतकों को पांच पांच लाख रूपये देने की घोषणा हो जाती है। जबकि उन्हीं के एसपी इस घटना को महज एक हादसा बताते नजर आते है। अब इस देश में भीड़ कब किसको मार दे कोई पता नहीं है। पुरे देश में कोई अपने को सुरक्षित नहीं मान रहा है।
अभी तक कापीराईट परिवार का भी कोई स्टेटमेंट नहीं आया है। हर बात पर बढ़ चढ़ कर बोलेन बाले आज़म खान का भी कोई बयान नहीं आया। हाँ बीजेपी की तरफ से जरुर उनके श्रम मंत्री मौर्य ने जरुर बताया कि मरने वाले द्वंग और अपराधी थे। अब हर आदमी के साथ क्या होगा ये खुद सोच लो अब कोई भी अपने को सुरक्षित ना माने।