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गोसेवक डॉ. पंकज दीक्षित से प्रो. योगेन्द्र यादव से बेबाक बातचीत
प्रो. योगेन्द्र - डॉ. साहब ! जीव सेवा की यह प्रेरणा आपको कहाँ से मिली ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जब मैं कभी मैं पशु चिकित्सालय जाता था, या रास्ते में किसी पशु-पक्षी को घायल देखता था मेरी अंतरात्मा रो पड़ती थी. उनके पीछे-पीछे जब मैं पशु चिकित्सालय जाता था तो देखता था कि वहां पर उनका उचित इलाज नही हो रहा है. उनकी तड़पन से मुझे कष्ट होता था. उसी पीड़ा को दूर करने का न जाने का कब संकल्प हो गया, और मैं जीव सेवा से जुड़ गया.
प्रो. योगेन्द्र – सबसे पहले आप जीव सेवा में किससे जुड़े ?
डॉ. पंकज दीक्षित – सबसे पहले मैं पक्षियों की सेवा से जुड़ा. यह अभियान मैंने 17 साल पहले शुरू किया. तब से अब तक अनवरत चल रहा है. शुरू-शुरू में मैंने लकड़ी के घोसले बनाये, उसमें उनके खाने के लिए पानी और दाना डाला.
प्रो. योगेन्द्र – इस समय आप का यह अभियान कितने जिलों में चल रहा है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इस समय यह अभियान 9-10 जिले में चल रहा है- सतना, इलाहाबाद, महोबा, छतरपुर, नौगाँव, रीवा, बाँदा, हमीरपुर
प्रो. योगेन्द्र – आपके जीवन में इसका बीजारोपण किस प्रकार हुआ?
डॉ. पंकज दीक्षित – एक बार मैं बाजार में, चित्रलोक स्टूडियों महोबा में बैठा हुआ था. पास में बह रही नाली के कीचड में एक गौरैया बार-बार चोंच मार रही थी. मुझे लगा कि वह प्यासी है, और पानी पीना चाह रही है. मैं तुरंत उठा, बाजार गया, कड़ाही जैसा पांच पात्र ले आया. फिर उसके दोनों ओर तार बांधे. फिर कुम्हार के पास गया, फिर ड्रिल से उसमें छेद करवाया. फिर इन्हें दीवार में, पेड़ों में टांग दिया.
प्रो. योगेन्द्र – क्या यह केवल पक्षियों के लिए ही है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – पहले तो यह केवल पक्षियों के लिए बनवाया और बाँधा था. किन्तु बाद में यह गिलहरी, गिरगिट जैसे जानवरों को भी पानी पीने के काम आने लगा.
प्रो. योगेन्द्र – गिलहरी या गिरगिट के प्यास का आभास आपको कैसे हुआ ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इसकी प्रेरणा मुझे कलेक्ट्रेट के पास स्थित काल भैरव मंदिर के पास मिली. मैंने यहाँ भी एक पात्र टांग रखा था. मैं उसी ओर देख रहा था. तभी एक गिलहरी आई, और वह बार-बार पानी पीने के लिए इधर-उधर फुदकने लगी. मेरे मन में आया कि यह जरूर प्यासी है. अन्यथा यह इस प्रकार की चेष्टा न करती. इसके बाद मैं गया और मैंने पानी के पात्र और पेड़ से दो लकडियों को बाँध दिया. थोड़ी देर के बाद वह गिलहरी आई, उसने पानी पिया और चहकती हुई, ख़ुशी का इजहार करती हुई, फिर पेड़ पर इधर-उधर फुदकने लगी. गिलहरी या गिरगिट जैसे जानवर जो उड़ नहीं सकते, वे भी मेरे रखे पात्रों से पानी पीते हैं.
प्रो. योगेन्द्र – पक्षियों को दाना चुगाने का विचार आपके जेहन में कहाँ से आया ?
डॉ. पंकज दीक्षित – एक बार मैं यहाँ की एक पहाड़ी स्थित धार्मिक स्थल पर बैठा था. वहां भी हमने पात्र टांग रखे थे. वहीँ पर मेरे मन में विचार आया कि मैंने इनके प्यास बुझाने का इंतजाम कर दिया. लेकिन इनकी भूख का का तो कोई इंतजाम किया नही. इस समय तो सूखा पड़ा है, ये खाना कहाँ से खाते होंगे. बस इसी विचार के बाद मैंने पानी के पात्र में दाने भी डालने शुरू कर दिए.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आप इन पात्रों का वितरण भी करते हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी, हाँ. मैंने इन पात्रों का नि:शुल्क वितरण करता हूँ. जिस व्यक्ति में जरा सी भी जीव दया का अंश देखता हूँ, और लगता है कि वह मेरे द्वारा दिए गये पत्रों में नियमित रूप से दाना-पानी डालेगा. उसे मैं यह पात्र मुफ्त में उसके घर पहुंचा देता हूँ.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आपके इस मिशन में जन-सहयोग प्राप्त होता है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी हाँ. बिना जन सहयोग के तो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. जैसे-जैसे लोगों को मालूम चल रहा है, लोग मेरे साथ जुड़ते चले जा रहे हैं.
प्रो. योगेन्द्र – इस कार्य के लिए आप धन की व्यवस्था कहाँ से करते हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इसके लिए जितने धन की जरूरत होती है, उसका अर्थोपार्जन मैं कर लेता हूँ. मेरी पास जो थोड़ी सी पूंजी है, उसे मैं जमीन के व्यवसाय में लगाता हूँ, उसकी बिक्री से जो लाभ मिलता है, उसका उपयोग इस पुनीत काम में करता हूँ.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आप इस काम के लिए किसी से डोनेशन नहीं लेते ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी नही. मैं इस काम के लिए किसी से डोनेशन नहीं लेता. अभी तक तो नही लिया. आगे भी नही लेने का इरादा है.
प्रो. योगेन्द्र – इस समय अखिलेश सरकार गौरैया संरक्षण के लिए विशेष सुविधायें उपलब्ध करवा रही है. क्या आपने इस सम्बन्ध में किसी अधिकारी से बात नही की ?
डॉ. पंकज दीक्षित – उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा गौरैया संरक्षण के लिए चलाया जा रहा अभियान स्वागत योग्य है. पर मैं या सरकार जो काम करना चाहती है, वह संवेदना से जुड़ा सवाल है. मैंने कई अधिकारियों से इस सम्बन्ध में चर्चा की. किन्तु उन लोगों की ओर से केवल हवाई बातें हुई. इन अधिकारियों ने तो केवल गुरैया दिवस के दिन ही पात्र एवं दाने वितरित किये. इसके बाद नहीं. इससे कहीं गौरैया संरक्षण हो सकता है.
प्रो. योगेन्द्र – क्या इन अधिकारियों ने गौरैया के लिए दाने पानी का इंतजाम नही किया ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इन अधिकारियों के पास न तो अनुभव है, और न ही ऐसे कामों की समझ. इन लोगों ने गमले में दाने पानी की व्यवस्था की. पक्षी खाने और पीने के लिये भी आये. लेकिन शिकारी जानवरों ने इन पर हमला बोला. कुछ को मार गिराया. कुछ इतने भयभीत हो गये कि दुबारा दाना-पानी के लिए आये ही नहीं.
प्रो. योगेन्द्र – पक्षियों को सबसे अधिक नुकसान किससे होता है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – पक्षियों को सबसे अधिक नुक्सान चिंगम से होता है. पक्षी उन्हें आटा समझ कर खा लेते हैं. जो पक्षी इन्हें खा लेते हैं, वे न तो दाना खा सकते हैं, और न पानी पी सकते हैं. बेचारे तड़फ-तड़फ कर मर जाते हैं.
प्रो. योगेन्द्र – क्या इसके लिए आपने कोई अवेयरनेस प्रोग्राम चलाया ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी हां. मैं हर साल स्कूलों में जाता हूँ. और उन्हें चिंगम खाने से मना करता हूँ. उन्हें बताता हूँ कि उनके द्वारा खाकर फेकी गयी चिंगम पक्षियों के लिए किस तरह जानलेवा हो सकती है. जब कुछ लड़कों ने इसका उपाय पूछा तो मैंने बताया कि यदि आप चिंगम खाना नहीं छोड़ सकते हैं, तो खाने के बाद उन्हें मिट्टी के अन्दर दबा दें.
प्रो. योगेन्द्र – या गोसेवा का कार्य कैसे शुरू हुआ ?
डॉ. पंकज दीक्षित – गोसेवा का कार्य 7-8 साल पहले शुरू हुआ. जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं पशु चिकित्सालय जाता, और उनके उपचार की खाना-पूर्ति देखता तो मेरा मन विदीर्ण हो जाता. मैंने अपने कुछ साथियों से गायों की ड्रेसिंग वगैरह सीखी. और इस काम में पिल पड़ा.
प्रो. योगेन्द्र – गायों के लिए सबसे खतरनाक क्या है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – गायों के लिए सबसे खतरनाक ब्लेड है. अमूमन लोग पालीथीन की थैलियों में खाने की चीजों के साथ दाढ़ी बनाने के बाद खराब ब्लेड भी डाल देते हैं. गाय खाने वाली चीजों के साथ इसे भी खा जाती है. इन ब्लेड से उसका गला एवं शरीर का अन्दुरुनी भाग कट जाता है. जिसका इलाज भी संभव नहीं है. ऐसी गाय तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ देती है.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आपने इसके लिए भी कोई अवेयरनेस प्रोग्राम चलाया ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी, हां. इसके लिए मैं शहर में स्थित हर हज्जाम की दूकान पर गया. उनके द्वारा फेकी गयी ब्लेड से गायों को कितना नुक्सान होता है, इसकी चर्चा की. ब्लेड रखने के लिए उन्हें एक थैली दी. उनसे कहा कि जब यह थैली भर जाये तो इसे आप जमीन के नीचे गाड़ दें, यदि ऐसा नही कर सकते हैं, तो मुझे एक फोन कर दें. मैं आपसे आकर थैली ले जाऊँगा और खुद उसे जमीन के नीचे गाड़ दूंगा.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आपके समझाने का उन पर असर हुआ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी हुआ. जब मैं उधर से गुजरा, एक दो बार उनसे थैली लेकर उसे जमीन में दफना दिया. इससे वे खुद ही शर्मिंदा हुए, और इसके बाद उन्होंने कहा कि अब आपको आने की जरूरत नहीं है. हम लोग खुद ही इसे दफना देंगे. तबसे वे खुद ही दफना देते हैं. इससे ब्लेड खाकर मरने वाली गायों की संख्या भी काफी कम हो गयी है.
प्रो. योगेन्द्र – गो-संरक्षण के लिए आपके मन में और क्या विचार हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इसके लिए एक विचार मेरे मन में है. हर गाँव में गोचर भूमि होती है. मैं इस संबध में लेखपाल एवं तहसीलदार से मिला, लगभग 650 बीघे गोचर जमीन है. यदि यह जमीन भूमिहीन किसानों को इस शर्त पर दे दी जाए कि वे एक या एक से अधिक गाय पालेंगे. और इस जमीन से जो भूसा-दाना उत्पन्न होगा, उससे गाय का भरण-पोषण करेंगे. तो मुझे लगता है कि एक-एक घर पर एक गाय भी नहीं आयेंगी.
प्रो. योगेन्द्र – क्या गोचरं जमीन पर लोगों ने कब्ज़ा नही कर लिया है?
डॉ. पंकज दीक्षित – आपकी बात सही है, लोगों ने गोचर जमीन पर कब्ज़ा कर लिया है. कहीं-कहीं तो पक्का निर्माण भी हो गया है. इस प्रकार करीब 70 प्रतिशत जमीन पर कब्ज़ा है. लेकिन यदि बाकी बची 30 प्रतिशत जमीन भी मिल जाए, तो गायों की समस्या हल हो सकती है.
प्रो. योगेन्द्र – इसके लिए आपके मन में और क्या योजना है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – हर गाँव में एक ग्राम गो-सेवा समिति बना दी जाए. वह कब्ज़ा रहित गोचर जमीन को अपने गाँव को गाय रखने की शर्त पर जमीन बाँट दें, और उन पर निगरानी रखे. बस इतना ही करना है.
प्रो. योगेन्द्र – जब इतनी अच्छी योजना आपके मन में है, तो इसके लिए आपने प्रयास नहीं किया ?
डॉ. पंकज दीक्षित – किया. इस सम्बन्ध में मैंने महोबा के जिला जज डॉ. गोकले शर्मा से बात की. उन्होंने डी.
एम. साहब को इस सम्बन्ध में फोन भी किया. इन अधिकारियों की इतनी व्यस्तता होती है कि बात आगे नही बढ़ी.
प्रो. योगेन्द्र – इसके आलावा व्यक्तिगत रूप से कोई और समाजसेवा आप करते हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी हाँ, मैं नियमित रूप से ब्लड डोनेट करता हूँ. अभी तक मैंने 24 बार ब्लड डोनेट किया है. इनमे से एक भी मेरा फेमिली मेंबर नही है. केवल एक मेरा परिचित था, बाकी सभी तो अपरिचित थे.
प्रो. योगेन्द्र – जीव सेवा का यह जो कार्य करते हैं, इसके लिए आपने कहीं से प्रशिक्षण भी लिया है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इलेक्ट्रो होम्योपैथी में मैं डाक्टरेट हूँ.
प्रो. योगेन्द्र – क्या यह पैथी आपके गोसेवा में उपयोगी है?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी नहीं.
प्रो. योगेन्द्र – फिर आपने गो-चिकित्सा के क्षेत्र में कैसे महारत हासिल की ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इस कार्य में दो लोगों का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. उनमे से एक डॉ. राजेश राजपूत ने आलमपुरा महोबा में अपनी व्यक्तिगत जमीन पर प्राणी सेवा केंद्र बनाया और मुझे भेंट कर दिया. इस सेवा केंद्र में सब कुछ मेरे बारे में ही दिया हुआ है, केवल उन्होने अपना मोबाइल न. ही लिखा हुआ है. दूसरे व्यक्ति जिनका मेरे गो-चिकित्सा में बहुत योगदान रहा है, वे हैं डॉ. ज्ञान सिंह राजपूत. गो – चिकित्सा की मिशाल हैं. अपनी गाढ़ी कमाई से गो-चिकित्सा का कार्य करते हैं. हर रोज 10-12 बोतल ग्लूकोज की बोतल लेकर निकलते हैं. जहाँ कहीं गाय दिखी, कमजोर गाय दिखी, उसे पिला देते हैं. इन दोनों लोगों से बहुत मदद मिली. इन दोनों लोगों का मैं बहुत सम्मान करता हूँ.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आपने और लोगों को प्रशिक्षण दिलवाया ?
डॉ. पंकज दीक्षित – मैंने आसपास के गांवों के कई लोगों को गो-चिकित्सा का प्रशिक्षण दिलवाया. धीरे-धीरे वे लोग अच्छा काम करने लगे हैं. कुछ लोगों को और जोड़ा है, जो नियमित रूप से गो-चिकित्सा हेतु समय दान कर रहे हैं.
प्रो. योगेन्द्र – आप लोग गो-चिकित्सा किस प्रकार करते हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – गाय की चिकित्सा करने के पहले हम लोग डिस्कशन करते हैं. इसके बाद ट्रीटमेंट डिसाइड होता है. इस कारण कोई त्रुटि होने की गुंजाइश नही होती है. स्थानीय लोगों की भी मदद लेते हैं.
प्रो. योगेन्द्र – इसके आलावा जीव सेवा के किसी और क्षेत्र में आप करते हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी हाँ. चीटें-चीटियों की सभी सेवा करता हूँ. जिन पेड़ों के नीचे हमें चीटें-चीटियाँ दीखते हैं, उनकी जड़ को हम सींच देते हैं. इस पेड़ को लोहे की जाली से ढक भी देते हैं. सिचाई करने से उसकी गंध वहां रहने वाले सभी चीटें-चीटियों को मिल जाती है, फिर हम वहां पंजीरी डाल देते हैं. इसी तरह मैंने कई स्थान बना रखे हैं, एक दिन में 2-3 किलो पंजीरी डालता हूँ. अपने घर में भी एक गमला रखा हुआ है, जिसमे भी नियमित रूप से पंजीरी डालता हूँ.
प्रो. योगेन्द्र – घर में रखे गमले के चीटें-चीटियाँ आपको परेशान या नुक्सान नहीं करते हैं?
डॉ. पंकज दीक्षित – मैं जमीन पर ही सोता हूँ. आज तक एक भी चीटें-चीटी ने मुझे काटा नहीं. न ही किसी अन्य खाद्यान्न में खाने के लिए चढ़ी या किसी प्रकार का नुक्सान किया.
प्रो. योगेन्द्र – आज कल आपके द्वारा चिड़ियों के पानी पीने के पात्र की बहुत चर्चा है, इसे आप लोगों तक कैसे पहुंचाते हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – कभी अपने निजी वाहन से, कभी ट्रेन से, कभी रोडवेज बस से पहुंचा देता हूँ. जैसी सुविधा होती है, इस नेक कार्य में सभी मेरा सहयोग करते हैं.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आप किसी गोशाला के निर्माण के सम्बन्ध में भी सोच रहे हैं ?
डॉ. पंकज दीक्षित – इस सम्बन्ध में मैंने बदौसा के संजय पांडे से बात की है. वे बड़े ही नेक इन्सान हैं. गायों के प्रति उनके मन में विशेष लगाव है. इसके लिए उन्होंने जमीन मुहैया करवा दी है. मेरे ही निर्देशन में पीपल, बरगद के छायादार वृक्ष लगाने का काम चल रहा है. इसी भूखंड में हम बरसीम भी लगायेंगे. वहां पर एक जलाशय भी बनाना है. जिससे गायों के पीने के पानी की समस्या हल हो सके.
प्रो. योगेन्द्र – क्या आप मानते हैं कि गोशाला ही गायों के संरक्षण का अंतिम पर्याय है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – जी नहीं. गायों की जगह तो लोगों के घरों में है. इसका भी प्रयोग मैंने शुरू किया है. कुछ लोगों को मैंने दूध देने वाली गायें दी हैं. जो उसकी सेवा भी कर रहे हैं, और दूध भी खा रहे हैं. मैं गोशाला के पक्ष में कभी नहीं रहा हूँ. लेकिन शुरुआती दौर में इसी रास्ते से गुजरना पड़ेगा. जब लोग जागरूक हो जायेंगे, तो फिर गोशाला की जरूरत ही नहीं रहेगी.
प्रो. योगेन्द्र – क्या गोसेवा आपका मिशन है ?
डॉ. पंकज दीक्षित – मुझे इसका नशा है. इसमें जो आनंद है, दूसरी किसी चीज में नहीं दिखा. जिस दिन किसी गाय की सेवा कर लेता हूँ, वह दिन बड़े आनंद से गुजरता है.
प्रो. योगेन्द्र –अपनी शिक्षा दीक्षा के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिये.
डॉ. पंकज दीक्षित – मैंने दो विषयों में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. बाटनी में एम.एससी. हूँ, और इंग्लिश में एम.ए. किया है. इसके आलावा इलेक्ट्रो होमोपैथी में डाक्टारेट भी किया है.
प्रो. योगेन्द्र – अपने परिवार के बारे में थोड़ी जानकारी दीजिये. क्या वे लोग आपके इस कार्य में सहयोग करते हैं?
डॉ. पंकज दीक्षित – मेरी पत्नी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं. एक बिटिया है. दोनों मेरे इस कार्य में सहयोग देते हैं. इसके आलावा मेरे माता-पिता का भी भरपूर सहयोग रहता है.
प्रो. योगेन्द्र – जिस पुनीत कार्य में आप लगे हैं, उसके लिए आपको बहुत ढेर सारी शुभकामनायें ! आपने हमसे बेबाकी से बात की, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
विश्लेषक, भाषाविद, गाँधी-समाजवादी चिंतक, पत्रकार व्
इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेटर – महात्मा गाँधी पीस एंड रिसर्च सेंटर घाना, दक्षिण अफ्रीका