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कांग्रेस की नई मीडिया टीम ने एक दिन में बाजी पलट दी, अब राहुल पप्पू नहीं एक अच्छे नेता बने जानिए पूरा मामला!

Shiv Kumar Mishra
4 July 2022 2:49 AM GMT
कांग्रेस की नई मीडिया टीम ने एक दिन में बाजी पलट दी, अब राहुल पप्पू नहीं एक अच्छे नेता बने जानिए पूरा मामला!
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शकील अख्तर

कांग्रेस की मीडिया डिपार्टमेंट की नई टीम ने एक दिन में बाजी पलट दी। अगर जयराम रमेश, पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेते नहीं आए होते तो राहुल गांधी का यह झूठा वीडियो भी उसी तरह स्थापित हो जाता जैसे आलू से सोना बनाने के झूठे वीडियो को भाजपा और मीडिया ने कर दिया था।

पिछले आठ साल से यह किसी के समझ में नहीं रहा था कि कांग्रेस का यह मीडिया डिपार्टमेंट क्या कर रहा है? राहुल गांधी के खिलाफ लगातार चरित्रहनन का कार्यक्रम चलता रहा और मीडिया डिपार्टमेंट के लोग अपनी राजनीति चमकाने और छवि बनाने में लगे रहे।

किसी भी पार्टी का मीडिया डिपार्टमेंट क्यों होता है? हर सरकार में भी जन सम्पर्क विभाग होता है। क्या करता है वह? अपने मुख्यमंत्री और अपनी सरकार के कामों को सामने लाता है। अगर कोई उनकी छवि खराब कर रहा है तो उसको काउंटर करता है। सच को सामने लाता है। यही काम होता है ना! या जनसम्पर्क का डायरेक्ट खुद अपनी छवि चमकाने में लग जाता है। रोज टीवी पर आता है। प्रेस कान्फ्रेंसें करता है। और अपने मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को मजाक का विषय बनने देता है?

राजनीतिक दलों के मीडिया डिपार्टमेंट भी यही काम करते हैं। अपनी पार्टी और नेता की छवि बनाना। भाजपा में कोई सोच सकता है कि वहां मीडिया डिपार्टमेंट का हेड प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह या जेपी नड्डा को किनारे करके केवल खुद अपनी खबरें चलवाता रहे? एक आदमी को रख ले जो चैनल चैनल जाकर कहे कि बस हमारे बास की खबर चलाते रहो। राहुल, प्रियंका से हमें मतलब नहीं।

कांग्रेस गजब की पार्टी है। कभी कभी तो लगता है यहां सदाव्रत खुला हुआ है। किसी को किसी से मतलब नहीं। खाओ, पियो, साथ में बांध भी लो और खिसको! पिछले आठ साल से तो यही चल रहा था। विपक्ष में तो पार्टी को ज्यादा आक्रामक होकर सत्ता पक्ष की कमियां सामने लाना चाहिए। अपनी पार्टी और नेता द्वारा जनता के हित में उठाई गई आवाज को बल देना चाहिए। मगर यहां तो मैं कितना ज्यादा से ज्यादा टीवी पर आ जाऊं। राज्यसभा मिल जाए। इससे आगे कोई सोच ही नहीं सका। चाहे इसके लिए मीडिया के साथ दुराभिसंधि भी करना पड़ी हो। कि हम तुम्हारे खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे। तुम चाहे जितना राहुल का चरित्र हनन करो। बस हमें टीवी पर दिखाते रहो।

आज क्या हुआ? सारे एक से एक जहरीले एंकर, एंकरनियां, पत्रकार लाइन से खड़े होकर राहुल की जय जयकार करने लगे। इसलिए सिर्फ इसलिए कि कांग्रेस की मीडिया डिपार्टमेंट की नई टीम ने कहा कि हमारी जय जयकार नहीं सच की जय जयकार करो। तुम हमारी चापलूसी करके झूठ को नहीं दिखा सकते। भारत में कानून है, संविधान है और हम कांग्रेस हैं। जिसने अंग्रेजों के सामने कभी घुटने नहीं टेके। उस समय भी मीडिया का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के खिलाफ था। मगर कांग्रेस अंग्रेजों के साथ उस मीडिया से भी लड़ी। आज की तरह कोई कांग्रेस का नेता ऐसा नहीं था जो मीडिया से कहता हो कि हमें नेता बना दो कांग्रेस और गांधी, नेहरू के खिलाफ जो लिखना हो लिखो। उन्हीं परिस्थितियों में नेहरू को नेशनल हेराल्ड निकालना पड़ा था। आजादी के आंदोलन की सही तस्वीर पेश करने के लिए। दूसरे अंग्रेजी अख़बार जो अंग्रेज समर्थक थे उनके झूठ का काउंटर करने के लिए। यहां यह बताना जरूरी होगा कि उस समय हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता स्वतंत्रता संग्राम के साथ थी। लेखक और पत्रकार खतरे उठाकर गांधी और नेहरू का साथ दे रहे थे। खुद भगत सिंह पत्र पत्रिकाओं में लिखते थे। और युवाओं से नेहरू का साथ देने की अपील करते थे।

जयराम रमेश को यह सारा इतिहास मालूम है। पढ़े लिखे आदमी हैं। वैसे कांग्रेस में एक अलग तरह का माहौल बन गया है कि यहां पढ़े लिखे का मजाक बनाया जाता है। खुद जयराम इसके शिकार रहे। उनका नाम आते ही कांग्रेस के कुछ नेता हंसने लगते थे। और व्यंग्य से कहते थे कि वे तो बहुत पढ़े लिखे आदमी हैं।

अब उसी पढ़े लिखे आदमी ने बताया कि किस तरह सच के लिए, अपने नेता के लिए लड़ा जाता है। कल्पना कीजिए कि अगर जयराम रमेश और उनकी नई टीम नहीं आई होती और यह वायनाड वाली विडियो जिसे उदयपुर का बनाकर प्रसारित किया गया आ गई होती तो क्या होता? देश विदेश सब जगह राहुल के खिलाफ माहौल बन गया होता। राहुल और कांग्रेस के पुतले फुंके जा रहे होते। और मीडिया डिपार्टमेंट के लोग दफ्तर में बैठकर पत्रकारों से कह रहे होते कि राहुल ने गलत तो कहा है!

राहुल के खिलाफ कांग्रेस के लोगों ने ही सबसे ज्यादा विष वमन किया है। भाजपा जब कुछ कहती है तो लोगों की समझ में आता है कि विरोधी पार्टी है। कहेगी ही। मगर जब खुद कांग्रेसी ही और वह भी राहुल के नजदीकी वाले ऐसी बातें करते हैं तो मीडिया और जनता के लिए उन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं होता।

एक घटना बताते हैं। मीडिया डिपार्टमेंट के एक बड़े पदाधिकारी से एक बड़ी एंकर मिली। पहले तो उसने राहुल को दस गालियां दीं। फिर बोली कि अगर आप कांग्रेस के अध्यक्ष बनें तो हम आपका समर्थन कर सकते हैं। पदाधिकारी जी खुश। खुशी छिपाए नहीं छिपी। कितना सम्मान है हमारा। राहुल का अपमान जो उस एंकरनी का मुख्य उद्देश्य था वह उन्हें नहीं दिखा। अपना सुनहरा भविष्य और टीवी का समर्थन दिखने लगा।

आज सभी एंकर और एंकरनियां, कांग्रेस दफ्तर से जाकर उन्हें बताने वाले और वालियां कि वहां राहुल के खिलाफ कितना माहौल है बढ़ चढ़कर राहुल के एक विडियो जिसमें वे सड़क पर एक घायल की मदद करते दिख रहे हैं, की तारीफों में लगे हैं।

यह मीडिया डिपार्टमेंट की नई टीम की धमक का परिणाम है। राहुल के इस काम में कुछ नया नहीं है। नबंर एक तो बहुत स्वाभाविक है। हर सामान्य आदमी, संवेदनशील इंसान यह करता है। इस हिंसक, क्रूर, नफरती, स्वार्थी बना दिए गए माहौल में भी। दूसरे राहुल और प्रियंका या जिसे यह परिवारवाद कहते हैं वे हमेशा से यह करते रहे हैं। जाने कितने प्रसंग हैं। खुद एक पत्रकार की चप्पल उठाए प्रियंका उसे अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था कर रही हैं का विडियो भी थोड़ी से देर के लिए आया था। राहुल के भी सड़क पर घायल का मदद करने से लेकर आडवानी तक को सहारा देने के कई हैं। खुद इन पत्रकारों की मदद के कई वाकये हैं। राहुल खुद कोरोना में थे। और किसी पत्रकार के परिवार को उस समय नहीं मिल रहे एक जीवनदायी इंजेक्शन की जरूरत थी तो राहुल के लिए आए इंजेक्शन को उठाकर प्रियंका ने वहां पहुंचा दिया। सब पत्रकार पहले भी जानते थे। कोरोना में सबसे ज्यादा मदद ली। मगर कहते नहीं थे। और राहुल, प्रियंका क्या? परिवारवाद कहते हैं ना! तो परिवार में अगर अच्छाइयां होंगी तो बच्चों में क्यों नहीं आएंगी?

पिता राजीव गांधी ने अपने परिवार के घोर विरोधी अटल बिहारी वाजपेयी को इलाज के लिए अमेरिका पहुंचाया ही था। और कभी जिक्र तक नहीं किया। लेकिन खुद राजीव की दर्दनाक हत्या के बाद वाजपेयी खुद पर काबू नहीं रख पाए और बोले कि आज मेरी जो जिन्दगी है वह राजीव गांधी की ही देन है। कहां तक बताएं! इन्दिरा गांधी के घोर विरोधी जयप्रकाश नारायण और इंदिरा के पिता के व्यक्तिगत विरोधी लोहिया ने कहा था कि अगर कुछ हो जाए, जरूरत पड़े तो हमारी सबसे अच्छी देखभाल इन्दिरा ही कर सकती है। और बताएं? इससे पहले की भी पीढ़ी का? नेहरू का! नेहरू ने कैसे उन सरदार पटेल को जिन्हें आजतक उनके प्रतिस्पर्धी के तौर पर पेश किया जाता है परिवार की सहायता की। लड़की मनिबेन पटेल और बेटे दहयाभाई पटेल दोनों को सांसद बनाया।

यह सब मानवीय गुण हैं। सारी राजनीति, आदर्श, सिद्धांत इसीके लिए हैं। मगर इसके लिए प्रेम, सत्य, सद्भाव का माहौल बनाना पड़ता है। लोकतंत्र में यह काम नेता करते हैं। राहुल कर रहे हैं। वे तो इतने असंपृक्त हैं कि उन पर इस प्रंशसा या निंदा का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता है। कर्मण्येवाधिकारस्ते के अनुपम उदाहरण हैं। मगर ऐसे में ही उनके आसपास के लोगों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है कि वे देखें कि इतने निष्काम आदमी की छवि कहीं गलत तो नहीं बन रही है। मीडिया की नई टीम अब सही ट्रैक पर है। इससे राहुल की बाधाएं कम होंगी। और काम करने की गति बढ़ेगी।

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