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23 जून, 1980। उस दिन दिल्ली में गर्मी का प्रकोप अपन चरम पर था। सबको बारिश का इंतजार था आग उगलते सूरज से बचने के लिए। आजकल की तरह तब जून के महीने में बीच-बीच में बारिश नहीं हो रही थी। दिल्ली सुबह अपने काम धंधों पर निकल रही रही थी। सब कुछ सामान्य ही था कि अचानक से दिन में एक-डेढ़ बजे एक खबर ने सबके पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी। कांग्रेस के नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी की एक विमान हादसे में जान चली गई। उनका राम मनोहर लोहियो अस्पताल में पोस्ट मार्टम हुआ। पोस्ट मार्टम डॉ आर.के. करौली की देखरेख में हुआ था। वे वहां तक मेडिकल सुपरिटेंडेट थे। उनका हाल ही ही निधन हुआ है।
खैर, अगले दिन यानी 24 जून को संजय गांधी की अत्येष्टि हुई। संजय गांधी की अंत्येष्टि को राजकीय सम्मान का दर्जा प्राप्त नहीं था। वे पांच माह पहले सांसद बने थे। इसलिए उनकी अंत्येष्टि को राजकीय सम्मान का दर्जा मिलने का सवाल नहीं था। इसके बावजूद सभी सरकार भवनों में झंडे झुका दिए गए थे। बाद में पता चला कि 24 जून, 1980 को ही चेन्नई में देश के चौथे राष्ट्रपति वी.वी.गिरी का निधन हो गया था। इसलिए पूरे देश में राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया गया था और दिल्ली के सरकारी भवनों पर भी लगे राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया गया था।
संजय गांधी के साथ किसकी गई थी जान
संजय गांधी के साथ उस हादसे में दिल्ली फ़्लाइंग क्लब के चीफ फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना की भी जान चली गई थी। दोनों ने सफदरजंग एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी। सुभाष सक्सेना एयरपोर्ट के करीब आईएनए कॉलोनी में ही रहते थे। वे उस मनहूस फ्लाइट में जाना ही नहीं चाहते थे। कहते हैं कि संजय गांधी के आग्रह के चलते उन्हें चलना पड़ा। अफसोस कि वो उन दोनों के जीवन की अंतिम उड़ान साबित हुई। उस हादसे के बाद सुभाष सक्सेना का परिवार आईएनए को छोड़ गया था। उनके पिता का नाम श्री आर.डी. सक्सेना और मां का नाम मोहिनी देवी था।
सुभाष सक्सेना की ननिहाल सीताराम बाजार के कूचा सोहनलाल की थी। कूचा सोहनलाल और कल्याणपुरा में दर्जनों सक्सेना परिवार रहा करते थे। हालांकि अब इनमें सक्सेना कायस्थ परिवारों की तादाद काफी कम रह गई है। इधर से सक्सेना परिवार ईस्ट दिल्ली के चित्र विहार,आई.पी.एक्सटेंशन के अलावा पीतमपुरा,पश्चिम विहार, नोएडा वगैरह में शिफ्ट करते रहे हैं।
इस बीच, अब तो सफदरजंग एयरपोर्ट को भी बंद हुए काफी समय हो गया है। इसे सुरक्षा कारणों से 2002 में बंद कर दिया। दरअसल इसे अमेरिका में 26/11 की भयंकर घटना को देखते हुए बंद किया गया। शायद ही दुनिया के किसी अन्य शहर का कोई हवाई अड्डा इतनी आबादी और आवासीय कॉलोनियों के बीच स्थित हो। नई दिल्ली के 10 मार्च, 1931 को विधिवत उदघाटन से दो बरस पहले 1929 में ही इसकी स्थापना हो गई थी। तब इसका नाम विलिंग्डन एयर फील्ड था। फिर इसका कुछ समय के बाद नाम कर दिया गया विलिंग्डन एयरपोर्ट। देश के आजाद होते ही विलिंग्डन एयरपोर्ट का नाम कर दिया गया सफदरजंग एयरपोर्ट।
लक्ष्मी बाई नगर में संजय गांधी झील
संजय गांधी की अकाल मृत्यु के बाद लक्ष्मी बाई नगर में संजय गांधी झील बनी। इसे बनाने में संजय गांधी के मित्र और कांग्रेस के नेता अर्जुन दास ने अहम भूमिका निभाई थी। उनका दफ्तर आईएनए कॉलोनी में ही थी। अर्जुन दास ने बाद में दिल्ली फ्लाइंग क्लब के मैनेजमेंट को संभालने की भी कोशिश की थी। दरअसल उनकी आईएनए मार्किट में कार रिपेयरिंग की वर्कशॉप थी। अर्जुन दास अपने धंधे के साथ-साथ कांग्रेस की राजनीति में भी सक्रिय हो गए। उनका देखते देखते दिल्ली कांग्रेस में रुतबा बढ़ने लगा। अब वे वर्क शॉप में कम ही बैठते। संजय गांधी के भी वे करीबी हो गए। वे कांग्रेस की रैलियों में भीड़ जुटाने का सफलता से काम करने लगे।
आईएनए मार्किट में उन्हें सब भाई साहब कहते। पर 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों को भड़काने के आरोप अर्जुन दास पर भी लगे। वह पंजाब में आतंकवाद का दौर था। अर्जुन दास की 3 सितंबर, 1985 को हत्या कर दी गई। उनकी हत्या से आईएनए मार्किट के उनके साथी-सहयोगी दहल गए। अब भी आईएनए मार्किट में अर्जुन दास की बातें करने वाले मिल जाएँगे। बहरहाल, संजय गांधी झीलके बाद राजधानी में संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर औरसंजय गांधी अस्पताल वगैरह बने। पर, सुभाष सक्सेना को भुला दिया गया।
विवेक शुक्ला के द्वारा लिखा गया लेख